उफ! इतनी ठंड़... गिरता ही जा रहा तापमान आसान नहीं है ब्रह्ममुहूर्त में माघ स्नान!

ईश्वर को प्राप्त करने के लिए तप करना इतना आसान नहीं है। इसका प्रमाण देखना है तो इस कड़ाके की ठंड में उन साधु-श्रद्धालुओं को देखों जो सुबह-सवेरे गंगा-नर्मदा में डुबकी लगाते हैं और जप, तप, पूजन, भगवान के नाम रूप और गुणादि में रम जाते हैं। तब साधारणजन के मुख से स्वाभाविक रूप से यही बात निकलकर सामने आती है- उफ! इतनी ठंड-गिरता ही जा रहा तापमान। आसान नहीं है ब्रह्ममुहूर्त में माघ स्नान! आपको बता दें कि अभी यह माघ महीना चल रहा है जो सनातन धर्मावलंबियों के लिए स्नान-ध्यान और दान के लिए विशिष्ठ है। सनातन शास्त्र, संत और सद्ज्ञानी बताते हैं कि माघ मास में ब्रह्ममुहूर्त में उठकर जो साधक गंगा आदि किसी पवित्र नदी में स्नान करता है और ईश्वर का ध्यान करता है उसे आम दिनों में किये गये तप से कहीं हजार गुना फल प्राप्त होता है। स्नान ध्यान उपरांत किये गये दान का फल तो इतना अमूल्य है कि उससे केवल साधक के परिवार ही नहीं, बल्कि समाज व राष्ट्र को भी शुभ-लाभ की प्राप्ति होती है। माघ के महीने में सत्संग की परम्परा बहुत पुरानी है। तीर्थराज प्रयाग में मुनि भारद्वाज द्वारा पौराणिक काल से चली आ रही सत्संग की परम्परा आज भी विद्यमान है। यहां यह भी समझ लें कि सत्संग के लिए प्रयाग जाना ही जरूरी नहीं है, बल्कि जहां सत्संग होता है वह स्थान भी तीर्थराज ही समझने योग्य है। क्योंकि सत्संग में सदा स्नान-ध्यान और दान आदि की चर्चा होती है। सद्गुरूओं की भाषा में स्नान से तात्पर्य देह शुद्धि और देश शुद्धि। ध्यान से तात्पर्य मनोविकारों पर विजय और अंत:करण की निर्मलता। जबकि दान से तात्पर्य धन अर्थात द्रव्य शुद्धि। कहने का आशय यह है कि माघ के महीने में मनुष्य को अपने तन-मन और धन को पवित्र बनाकर परमात्मा को प्राप्त करने का अच्छा अवसर होता है। इसीलिए शास्त्रों में कहा गया है कि माघ स्नान से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।