6 वर्षों की कठिन तपस्या के बाद वैशाख पूर्णिमा के दिन पीपल वृक्ष के नीचे बुद्ध को हुआ ज्ञान प्राप्त


पूरी दुनिया महात्मा बुद्ध को सत्य की खोज के लिये जाना जाता है। राजसी ठाठ बाट छोड़कर सिद्धार्थ सात सालों तक सच को जानने के लिये वन में भटकते रहते हैं। उसे पाने के लिये कठोर तपस्या करते हैं और सत्य को खोज निकालते हैं। फिर उस संदेश को पूरी दुनिया तक ले गए। उन्होंने सबको मानवता का पाठ पढ़ाया। सृष्टि को समझने की एक नई नजऱ पैदा की।



दु:खों का कारण और निवारण बताया
वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा भी कहते हैं। यह गौतम बुद्ध की जयंती है और उनका निर्वाण दिवस भी। इसी दिन भगवान बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी। आज बौद्ध धर्म को मानने वाले विश्व में 50 करोड़ से अधिक लोग इस दिन को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। इसी कारण बिहार स्थित बोधगया नामक स्थान हिन्दू व बौद्ध धर्मावलंबियों के पवित्र तीर्थ स्थान हैं। गृहत्याग के पश्चात सिद्धार्थ सात वर्षों तक वन में भटकते रहे। यहां उन्होंने कठोर तप किया और अंतत: वैशाख पूर्णिमा के दिन बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें बुद्धत्व ज्ञान की प्राप्ति हुई। तभी से यह दिन बुद्ध पूर्णिमा के रूप में जाना जाता है। बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए बुद्ध पूर्णिमा सबसे बडा त्योहार का दिन होता है। इस दिन अनेक प्रकार के समारोह आयोजित किए गए हैं। अलग-अलग देशों में वहां के रीति-रिवाजों और संस्कृति के अनुसार समारोह आयोजित होते हैं। आज 18 मई शनिवार को दुनिया भर में बौद्ध उपासकों द्वारा बुद्ध पूर्णिमा का त्यौहार बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है।
ज्ञान की प्राप्ति
35 वर्ष की आयु में वैशाखी पूर्णिमा के दिन सिद्धार्थ पीपल वृक्ष के नीचे ध्यानस्थ थे। बुद्ध ने बोधगया में निरंजना नदी के तट पर कठोर तपस्या की तथा सुजाता नामक लड़की के हाथों खीर खाकर उपवास तोड़ा। समीपवर्ती गाँव की एक स्त्री सुजाता को पुत्र हुआ। वह बेटे के लिए एक पीपल वृक्ष से मन्नत पूरी करने के लिए सोने के थाल में गाय के दूध की खीर भरकर पहुँची। सिद्धार्थ वहाँ बैठा ध्यान कर रहा था। उसे लगा कि वृक्षदेवता ही मानो पूजा लेने के लिए शरीर धरकर बैठे हैं। सुजाता ने बड़े आदर से सिद्धार्थ को खीर भेंट की और कहा- 'जैसे मेरी मनोकामना पूरी हुई, उसी तरह आपकी भी हो।' उसी रात को ध्यान लगाने पर सिद्धार्थ की साधना सफल हुई। उसे सच्चा बोध हुआ। तभी से सिद्धार्थ 'बुद्ध' कहलाए। जिस पीपल वृक्ष के नीचे सिद्धार्थ को बोध मिला वह बोधिवृक्ष कहलाया और गया का समीपवर्ती वह स्थान बोधगया।
बुद्ध की मृत्यु
गौतम बुद्ध की मृत्यु के बारे में महा परिनिब्बाना सुत्ता में लिखा गया है वैसाख के महीने में पूर्ण चन्द्रमा के वक्त बुद्ध निर्वाना के स्थिति में आखिरी बार गए और इस समय वो पावा नामक जगह पर थे। कुंडा नामक लोहार ने बुद्धा को खाना अपने हाथों से बनाकर परोसा जिसका नाम था शूकर मार्दव। शूकर मार्दव अस्सल में है क्या इसके बारे में दो चीज कहीं जाती हैं, एक तो ये है की शूकर मार्दव सूअर का मास है और दूसरी चीज ये की शूकर मार्दव एक किस्म का गगन धूलि है जो की सूअरों के पाओं के नीचे दबने से बनता है। बुद्धा ने शूकर मार्दव को देखते ही कुंडा को वो खाना सिर्फ उन्हें परोसने के लिए कहा और बाकी जमीन के नीचे दबाने के लिए कहा। ये खाने के बाद बुद्ध बीमार पड़ गए और उन्होंने अपने शिष्य अनंदा से कुंडा को कहने के लिए कहा की उनकी मृत्यु उसके बनाये हुए खाने से नहीं हुई है और उसने बड़ा ही पुण्य प्राप्त किया है क्योंकि बुद्ध ने आखिरी खाना उसी के हाथ का खाया था। बुद्ध इस वक्त 80 साल के थे और उन्हें अपनी मौत का पहले से ही आभास हो गया था।
बुद्ध का जीवन
गौतम बुद्ध का जन्म ईसा से 563 साल पहले जब कपिलवस्तु की महारानी महामाया देवी अपने नैहर देवदह जा रही थीं, तो रास्ते में लुम्बिनी वन में हुआ। यह स्थान नेपाल के तराई क्षेत्र में कपिलवस्तु और देवदह के बीच नौतनवा स्टेशन से 8 मील दूर पश्चिम में रुक्मिनदेई नामक स्थान है, वहां आता है। जहां एक लुम्बिनी नाम का वन था। उनका नाम सिद्धार्थ रखा गया। उनके पिता का नाम शुद्धोदन था। जन्म के सात दिन बाद ही मां का देहांत हो गया। सिद्धार्थ की मौसी गौतमी ने उनका लालन-पालन किया। सिद्धार्थ ने गुरु विश्वामित्र के पास वेद और उपनिषद् तो पड़े ही, राजकाज और युद्ध-विद्या की भी शिक्षा ली। कुश्ती, घुड़दौड़, तीर-कमान, रथ हांकने में कोई उसकी बराबरी नहीं कर पाता। सिद्धार्थ के मन में बचपन से ही करुणा भरी थी। उनसे किसी भी प्राणी का दुख नहीं देखा जाता था। यह बात इन उदाहरणों से स्पष्ट भी होती है। घुड़दौड़ में जब घोड़े दौड़ते और उनके मुंह से झाग निकलने लगता तब सिद्धार्थ उन्हें थका जान कर वहीं रोक देते और जीती हुई बाजी हार जाते थे। खेल में भी सिद्धार्थ को खुद हार जाना पसंद था क्योंकि किसी को हराना और किसी का दुखी होना उनसे नहीं देखा जाता था।