सगुण काव्यधारा और रामभक्त शाखा के महान कवि थे गोस्वामी तुलसीदास


सम्पूर्ण भारतवर्ष में गोस्वामी तुलसीदास के स्मरण में तुलसी जयंती मनाई जाती है। श्रावण मास की सप्तमी के दिन तुलसीदास की जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष यह 27 जुलाई 2020 के दिन गोस्वामी तुलसीदास जयंती मनाई जाएगी। गोस्वामी तुलसीदास ने सगुण भक्ति की रामभक्ति धारा को ऐसा प्रवाहित किया कि वह धारा आज भी प्रवाहित हो रही है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामभक्ति के द्वारा न केवल अपना ही जीवन कृतार्थ किया वरन सभी को श्रीराम के आदर्शों से बांधने का प्रयास किया। वाल्मीकि जी की रचना 'रामायण' को आधार मानकर गोस्वामी तुलसीदास ने लोक भाषा में राम कथा की रचना की। 



तुलसीदास जीवन : तुलसीदास जी जिनका नाम आते ही प्रभु राम का स्वरुप भी सामने उभर आता है। तुलसीदास जी रामचरित मानस के रचियेता तथा उस भक्ति को पाने वाले जो अनेक जन्मों को धारण करने के पश्चात भी नहीं मिल पाती उसी अदभूत स्वरुप को पाने वाले तुलसीदास जी सभी के लिए सम्माननीय एवं पूजनीय रहे। तुलसीदास जी का जन्म संवत 1589 को उत्तर प्रदेश के बाँदा जि़ला के राजापुर नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम आत्माराम दुबे तथा माता का नाम हुलसी था। तुलसीदास जी ने अपने बाल्यकाल में अनेक दुख सहे युवा होने पर इनका विवाह रत्नावली से हुआ, अपनी पत्नी रत्नावली से इन्हें अत्याधिक प्रेम था परंतु अपने इसी प्रेम के कारण उन्हें एक बार अपनी पत्नी रत्नावली की फटकार " लाज न आई आपको दौरे आएहु नाथ" अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति ता। नेकु जो होती राम से, तो काहे भव-भीत बीता।। ने उनके जीवन की दिशा ही बदल दी और तुलसी जी राम जी की भक्ति में ?से डूबे कि उनके अनन्य भक्त बन गए। बाद में इन्होंने गुरु बाबा नरहरिदास से दीक्षा प्राप्त की। तुलसीदास जी का अधिकाँश जीवन चित्रकूट, काशी और अयोध्या में व्यतीत हुआ। तुलसी दास जी अनेक स्थानों पर भ्रमण करते रहे उन्होंने अनेक कृतियों की रचना हैं, तुलसीदास द्वारा रचित ग्रंथों में रामचरित मानस, कवितावली, जानकीमंगल, विनयपत्रिका, गीतावली, हनुमान चालीसा, बरवै रामायण इत्यादि रचनाएं प्रमुख हैं।
तुलसीदास जी समाज के पथप्रदर्शक : तुलसीदास जी ने उस समय में समाज में फैली अनेक कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया अपनी रचनाओं द्वारा उन्होंने विधर्मी बातों, पंथवाद और सामाज में उत्पन्न बुराईयों की आलोचना की उन्होंने साकार उपासना, गो-ब्राह्मण रक्षा, सगुणवाद एवं प्राचीन संस्कृति के सम्मान को उपर उठाने का प्रयास किया वह रामराज्य की परिकल्पना करते थे। इधर उनके इस कार्यों के द्वारा समाज के कुछ लोग उनसे ईर्ष्या करने लगे तथा उनकी रचनाओं को नष्ट करने के प्रयास भी किए किंतु कोई भी उनकी कृत्तियों को हानि नहीं पहुंचा सका। आज भी भारत के कोने-कोने में रामलीलाओं का मंचन होता है। उनकी इनकी जयंती के उपलक्ष्य में देश के कोने कोने में रामचरित मानस तथा उनके निर्मित ग्रंथों का पाठ किया जाता है। तुलसीदास जी ने अपना अंतिम समय काशी में व्यतित किया और वहीं विख्यात घाट असीघाट पर संवत? 1680 में श्रावण कृष्ण तृतीया के दिन अपने प्रभु श्री राम जी के नाम का स्मरण करते हुए अपने शरीर का त्याग किया।
तुलसीदास जी की मुख्य रचनाएं : तुलसीदास जी संस्क्रत भाषा के विद्वान थे अपने जीवनकाल में उन्होंने ने अनेक ग्रंथों की रचना की तुलसीदास जी रचित श्री रामचरितमानस को बहुत भक्तिभाव से पढ़ा जाता है, रामचरितमानस जिसमें तुलसीदास जी ने भगवान राम के चरित्र का अत्यंत मनोहर एवं भक्तिपूर्ण चित्रण किया है। दोहावली में तुलसीदास जी ने दोहा और सोरठा का उपयोग करते हुए अत्यंत भावप्रधान एवं नैतिक बातों को बताया है। कवितावली इसमें श्री राम के इतिहास का वर्णन कवित्त, चौपाई, सवैया आदि छंदों में किया गया है। रामचरितमानस के जैसे ही कवितावली में सात काण्ड मौजूद हैं। गीतावली सात काण्डों वाली एक और रचना है जिसमें में श्री रामचन्द्र जी की कृपालुता का अत्यंत भावपूर्ण वर्णन किया गया है। इसके अतिरिक्त विनय पत्रिका कृष्ण गीतावली तथा बरवै रामायण, हनुमान बाहुक,  रामलला नहछू, जानकी मंगल, रामज्ञा प्रश्न और संकट मोचन जैसी कृत्तियों को रचा जो तुलसीदास जी की छोटी रचनाएँ रहीं। रामचरितमानस के बाद हनुमान चालीसा तुलसीदास जी की अत्यन्त लोकप्रिय साहित्य रचना है। जिसे सभी भक्त बहुत भक्ति भाव के साथ सुनते हैं।
हनुमान चालीसा की भी रचना की : रामचरितमानस के अलावा तुलसीदास जी ने पवित्र हनुमान चालीसा की भी रचना की थी। हनुमान चालीसा बजरंगबली केा समर्पित है। यहां तक कि मशहूर संकट मोचन मंदिर की स्थापना भी तुलसीदास जी ने ही की थी। कहते हैं स्वयं बजरंगबली ने तुलसीदास को मंदिर वाले स्थान पर ही दर्शन दिए थे। साथ ही रामलीला की शुरुआत भी तुलसीदास जी ने ही की थी।
माता-पिता द्वारा त्याग दिए गए थे : इन्हीं सब बातों के कारण जन्म के केवल चार दिन बाद ही तुलसीदास के माता और पिता ने उन्हें त्याग दिया था। उन्होंने चुनिया नाम की एक औरत को उन्हें सौंप दिया था। पांच साल तक उनका पालन पोषण करने के बाद चुनिया की मृत्यु हो गई थी। इसके बाद तुलसीदास जी को भीख मांगने की नौबत आ गई। कहते हैं चुनिया की मौत के बाद स्वयं माता पार्वती हर शाम को तुलसीदास जी को खाना खिलाने आती थीं। 
नरहरिदास ने रामायण की कथा सुनाई : शुरुआत में तुलसीदास का नाम रामबोला था क्योंकि जन्म के समय उन्होंने सबसे पहले राम का नाम लिया था। यह बात उन्होंने स्वयं विनय पत्रिका में कही है। उन्हें तुलसीदास नाम उनके गुरु नरहरिदास ने दिया था। नरहरिदास रामानंद के चौथे शिष्य थे। चुनिया की मृत्यु के कुछ समय के बाद ही नरहरिदास ने तुलसीदास को गोद ले लिया था। उसके बाद वो उन्हें अपने साथ अयोध्या ले गए जहां उन्होंने तुलसीदास को रामायण की कथा सुनाई थी। अपने एक उद्धरण में तुलसीदास जी ने कहा था कि जब उनके गुरु ने उन्हें रामायण सुनाई थी तब उन्हें उसका अर्थ नहीं समझ आया था, लेकिन जब वे बड़े हुए तो उन्हें इस पवित्र ग्रंथ की सीख समझ आयी। 
पत्नी की डांट खाई तुलसीदास ने : तुलसीदास जी की शादी और गृहस्थ जीवन के त्याग से जुड़ी एक बहुत ही चर्चित कहानी है। उस कहानी के अनुसार तुलसीदास जी का विवाह एक ब्राह्मण की कन्या रत्नावली से हुआ था। एक बार जब वह हनुमान जी के मंदिर गए थे तो रत्नावली अपने भाई के साथ मायके चली गयी थी। उसी रात तुलसीदास उनसे मिलने वहां पहुंच गए थे। तुलसीदास को वहां देख रत्नावली को बहुत आश्चर्य हुआ। उसने उनसे कहा कि जितना प्रेम वे उसके नश्वर शरीर से करते हैं यदि उसका आधा भी वे ईश्वर से करते तो वे ईश्वर को प्राप्त कर लेते। पत्नी के इस कथन ने तुलसीदास पर गहरा प्रभाव डाला और उन्होंने अपना गृहस्थ जीवन ही त्याग दिया जिसके बाद वे प्रयाग के शहर चले गए।
तुलसीदास के जन्म से जुड़ रहस्य : तुलसीदास जी ने अपना अधिकांश जीवन बनारस में गंगा के किनारे ही व्यतीत किया था। वह स्थान आज तुलसी घाट के नाम से जाना जाता है। तुलसीदास का जन्म उत्तरप्रदेश के कासगंज जिले के सूकर क्षेत्र गांव में हुआ था। कहते हैं तुलसीदास जी ने अपनी मां के गर्भ में पूरे बारह महीने बिताने के बाद जन्म लिया था। जन्म के समय वह रोए नहीं थे, और करीब पांच वर्ष के बालक के समान दिखाई पड़ते थे। इतना ही नहीं पूरे तीस दांतों के साथ उनका जन्म हुआ था। ज्योतिषियों के अनुसार तुलसीदास जी का जन्म अभुक्त मूल नक्षत्र में हुआ था यानी यह उनके पिता के लिए एक अशुभ संकेत था।