शिव पुत्री हैं नर्मदा, बालू भरिम समान जीवन रेखा न मिटाओ, जो चाहो कल्याण!

भारत वसुंधरा पर गंगा आदि सरिताएं अनेक हैं। उन्हीं में से एक दक्षिण गंगा अर्थात नर्मदा हैं। नर्मदा अर्थात जो नर्म हैं सबको आनंद देने वाली हैं। एक अन्य अर्थ यह भी नर्मदा- न मृदा अर्थात जो कभी नहीं मरती। क्षीण नहीं होती। सदा अक्षुण्ण रहती हैं। यह एक पौराणिक रहस्य है कि हर कल्प में अनेक नदियां विलुप्त हो जाती हैं यहां तक कि सागर भी क्षीण हो जाते हैं, लेकिन नर्मदा ऐसी है जो गुजरे साल कल्प से यथावत हैं। इनमें कभी क्षीणता नहीं आई। आगे भी नर्मदा अपने स्वरूप में सदा प्रवाहित होती रहें, इसके लिए हम सबकी जिम्मेदारी बनती है कि नर्मदा के स्वरूप को संवारें। अपने प्रबल प्रवाह के कारण रेवा कहलाई नर्मदा की वन खनिज संपदा का अनुचित दोहन बंद हो। जब भी कोई नर्मदा का चुल्लू भर जल भी ले तब ये समझे कि नर्मदा हमारी माँ हैं। हमारा पोषण और कृतार्थ कर रही हैं। जिन्हें विकृत होने से बचाएं इन्हें सजाएं-संभालें। क्योंकि शिव पुत्री हैं नर्मदा, बाल भस्मि समान। जीवन रेखा न मिटाओ, जो चाहो कल्याण! पौराणिक कथाओं के अनुसार ताण्डव नृत्य करते समय भगवान शंकर के स्वेद अर्थात पसीने से प्रकट नर्मदा शिव पुत्री कहलाई। जिन्होंने शिव की अखण्ड भक्ति की जिससे प्रसन्न हुए शिव-पार्वती ने नर्मदा को इस धरती पर जल रूप में प्रवाहित होने का वरदान दिया। साथ ही सदा अक्षुण्ण बना रहने का आशीर्वाद प्रदान किया। तब नर्मदा को भगवान विष्णु ने भी आशीर्वाद दिया और कहा कि जाओ नर्मदे! तुम धरती पर दक्षिण गंगा के रूप में पूजित होओगी। ऐसी मां नर्मदा के घाटों पर बिछी बालू (रेत) अब क्षीण होती जा रही है जो कि भगवान शिव की भस्मि है। इसे न उठाएं। इसे न बेचें। यह तो मां नर्मदा का श्रृंगार है। उसे न बिगाड़ें। वास्तव में नर्मदा हमारी जीवन रेखा है जिसकी रेत उठाकर व अन्य संपदाओं का दोहन कर हम उनके स्वरूप को न बिगाड़ें। नर्मदा अवतरण दिवस पर यही संकल्प सबसे सार्थक होगा।