अभी कुछ दिन पहले हमने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का पुण्य स्मरण किया। अचंभा तो तब हुआ जब कुछ द्रोहियों-विद्रोहियों ने भी पुष्पहार चढ़ा दिया। इससे यह तो सिद्ध होता है कि- गांधी गंध है, भारत की सुगंध है। सत्य और अहिंसा का अनुबंध है! अर्थात हमारा आत्ममंथन यही कहता है कि गांधी कोई व्यक्ति नहीं, बल्कि एक ऐसी खुशबू भरा विचार है जिससे प्रभावित होकर सब खिंचे चले आते हैं। वास्तव में गांधी भारत की सुगंध है, जो सिर्फ देश ही नहीं, बल्कि समूचे विश्व में फैली हुई है। जो भी इसे एक बार सूंघ लेता है वो तरोताजा हो जाता है और सद्गुणों से महक जाता है। क्षेत्र चाहे राजनीति का हो या धर्म का या फिर सामाजिक-आर्थिक जिसे अपने विचारों को महकाना है उसे गांधी-गांधी कहना है। क्योंकि अब तक तो यही हुआ है जो गांधी के विरुद्ध हआ है समाज उससे क्रूद्ध हुआ है। इस मर्म को जीवन चतुर सुजानों ने जाना है और कई शीर्ष हस्तियों गांधी ने भी माना है। यही कि अपना जनाधार बनाना बताया है तो गांधी-गांधी कहना है। सबको मालूम है नहीं कि इस धरा पर आजादी के लिए अनेक युद्ध हुए नाम लेकिन गांधी की एक ही बात समझ आई, भगवान उन्होंने आजादी के भीषण संघर्ष में सत्य अहिंसा की लाठी लहराई। गांधी के इस कदम पर पहले तो लोग हंसे लेकिन फिर बात समझ में आई कि वास्तव में नफरत से लोहा लेना है तो प्रेम की तलवार चलाइए। जीवन को गांधी की गंध से महकाना है तो सत्य-अहिंसा का मार्ग अपनाइए। वास्तव में गांधी सत्य के सारथी हैं जिन्होंने श्रीमद्भागवत गीता के नियमित अध्ययन से यह मूल मंत्र पाया। श्रीकृष्ण के कर्मयोग का मार्ग अपनाया और अहिंसा से जीवन अनुबंध कर पूरी दुनिया को चौंकाया। जीवन अनुबंध कर पूरी दुनिया को चौंकाया। गांधी ने अपने अहिंसात्मक संघर्ष से संसार को बताया कि भारत सिर्फ आजादी चाहता है आतंक नहीं। यहां के लोग ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम...गाते हैं और सबको सन्मति के लिए भगवान से प्रार्थना करते हैं।
गांधी गंध है, भारत की सुगंध है सत्य और अहिंसा का अनुबंध है!