दौड़ में वो कभी आगे नहीं निकल पाते जो किसी के तेज कदमों पर बाधा डालते हैं। ऐसे लोग चाहे कितना ही दौड़ लें, लेकिन अंतत: रहते जहां के तहां हैं। इसलिए सतर्क हो जाइए- अगर जो किसी की प्रतिभा को दबाओगे।...तो तुम भी कहीं के नहीं रह जाओगे! वास्तव में जिसे जिन्दगी की रेस में आगे निकलना है तो अपने लक्ष्य सदा याद रखिए और दूसरों पर ध्यान देकर अपने ही कदमों की रफ्तार बढ़ाइए। ...तो फिर तुम उस मंजिल तक जरूर पहुंच जाओगे जहां जीत का झण्डा लहराता है। समाज में हर पल एक प्रतियोगिता है। नौकरी, व्यापार, उद्योग से लेकर श्रम-परिश्रम कुछ भी हो सब दूर संघर्ष है। प्रतिद्वंद्विता है। जिसमें आगे वही निकलते हैं जो अपने कला-कौशल को साबित करने में अपना पूरा ध्यान लगाते हैं। लेकिन सभी तो नहीं लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं जो जिंदगी के मैदाने-ए- जंग में उतरने के बजाए जीत का शॉर्टकट तलाशने में ही बहुत सारा समय व्यर्थ गंवा देते हैं। ये वही लोग हैं जो बिना परिश्रम किये ही अपार धन- सम्पदा और ऐश्वर्य प्राप्त कर लेना चाहते हैं। ये एक तरह की अकर्मण्यता अथा कहें तो कायरता ही है। वास्तव में जो जंग से बाहर खड़े रहकर जीत की कामना करते हैं, वे कभी योद्धा नहीं बन सकते। यहां यह कहना भी यथार्थ होगा कि जब कोई बिना जंग लड़े जीत के जतन करता है वो समझ लो झूठ-कपट का सहारा जरूर लेता है जो संविधान की नजर में अपराध है, तो शास्त्र की दृष्टि में पाप! वास्तव में झूठ बोलकर, किसी को छलकर किसी को उसके हक से वंचित कर स्वयं रख लेना बड़ा पाप है। यह एक ऐसी दुष्प्रवृत्ति है जिसके कारण महाभारत का युद्ध हुआ। धर्मराज युधिष्ठर, अर्जुन, भीम, नकुल, सहदेव आदि पांडव महान पराक्रमी थे, जबकि दुर्बुद्धि दुर्योधन, दुशासन आदि कायर थे। जो पांडवों से छलपूर्वक उनका हक छीन लेते हैं और उनके मार्ग में सदा रोड़े अटकाते हैं। लेकिन अंतत: कौरवों की पराजय हुई और पांडवों ने महाभारत युद्ध अर्थात जीवन युद्ध में विजय प्राप्त की।
अगर जो किसी की प्रतिभा को दबाओगे ....तो तुम भी कहीं के नहीं रह जाओगे!
• Jagdish joshi