जीवन में साथ, समूह और संघ एक वैचारिक साम्य का परिणाम है। जब दो लोगों के विचार मेल खाते हैं तब वे मित्र होते हैं अथवा आपस में संबंधी बनते हैं। इसके आगे एक ऐसी विचारधारा और नीति जिसे अनेक लोग पसंद करते हैं वो समूह बन जाता है... और इससे भी आगे एकसंघ बन जाता है।
लेकिन यह है सब हमारे वैचारिक मेल का खेल! अन्यथा कभी एक नहीं हो सकते कृष्ण और कंस। गिद्धों के साथ नहीं उड़ सकते हंस! वास्तव में भगवान कृष्ण करुणामयी हैं कर्मयोगी हैं। जबकि कंस एक क्रूर प्रवृत्ति है, जिसमें प्रवृत कर्मयोग के विपरीत कायरता का आचरण है। लिहाजा कृष्ण और कंस कभी एक साथ नहीं रह सकते। यानी करुणा और क्रूरता कभी साथ ईमानदारनहीं हो सकते। जैसे सूर्य और अंधकार, ज्ञान और अज्ञान, राम और 'काम' कभी साथ नहीं लोगों रह सकते। हंस भी कभी गिद्धों के साथ नहीं उड़ सकते। क्योंकि हैं तो ये दोनों पक्षी लेकिन इनमें विचारधारा का बड़ा फर्क है। हंस सदा शाकाहार करता है, अमृत पान करता है। पावित्रता, धवलता, सरलता का प्रतिगामी है। इसके विपरीत गिद्ध आमिष भोगी है अर्थात मांसाहारी है, हिंसक है। गिद्ध एक दानवीय प्रवृत्ति है। गिद्ध एक दानवीय दृष्टि भी है जो औरों के मांस अर्थात 'धन-सम्पदा' व अन्य सांसारिक वस्तों की छीना-झपटी करने में प्रवृत रहती है। ऐसी हालत में सदा शाकाहारी और सात्विक हंस कभी मांसाहारी, हिंसक और 'हड़पू' गिद्ध के साथ नहीं उड़ते। यानी ईमानदार, सद्चरित्र और नीतिवान लोग कभी झूठ-कपट करने वाले अन्यायी और हिंसक लोगों के साथ नहीं रहते।