कांग्रेस पर धन बरसाती हैं कई कंपनियां

नई दिल्ली. कांग्रेस ने चुनाव आयोग (ईसी) को वित्त वर्ष 2019-20 के लिए चंदे का ब्योरा दिया है। इसमें बताया गया है कि 1 अप्रैल 2019 से 31 मार्च 2020 के बीच पार्टी को 20 करोड़ रुपए का चंदा कंपनियों से मिला है। इस तरह आईटीसी इस वक्त कांग्रेस की सबसे बड़ी दानकर्ता कंपनियों में शामिल हो गई है। कांग्रेस ने बताया है कि आईटीसी ने पिछले वित्त वर्ष में उसे 13 करोड़ दान किए। इसके अलावा सहायक कंपनी आईटीसी इन्फोटेक और रसेल क्रेडिल लिमिटेड ने क्रमश: 4 करोड रुपए और 1.4 करोड़ रुपए दान किए। हालांकि, इलेक्टोल ट्रस्ट अब भी कांग्रेस के सबसे बड़े दानकर्ता बने हैं। भारती एयरटेल ग्रुप और डीएलएफ जैसे कंपनियों की तरफ से खड़े किए गए प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट और जनकल्याण ट्रस्ट की तरफ से कांग्रेस को पिछले वित्त वर्ष क्रमश: 30 करोड़ रुपए और 25 करोड़ रुपए दान राशि मिली। बता दें कि इलेक्टोरल ट्रस्ट 25 कंपनियों का समूह है, जिसे मुख्य तौर पर कॉरपोरेट घरानों की ओर से स्वैच्छिक दान मिलता है और यह दान की राशि बाद में राजनीतिक दलों को चंदे के तौर पर दी जाती है। इलेक्टोरल ट्रस्ट की खास बात यह है कि इसमें योगदान देने वालों की पहचान गुप्त रखी जाती है। ऐसे में वित्त वर्ष 2019- 20 में आईटीसी कांग्रेस पार्टी की सबसे बड़ी दानकर्ता कंपनी बनकर उभरी है। बता दें कि इससे पहले 2018-19 में आईटीसी और आईटीसी इन्फोटेक ने भाजपा को 23 करोड़ रुपए दान किए थे। आईटीसी के अलावा जिन अन्य कॉरपोरेट घरानों ने कांग्रेस को चंदा दिया, उसमें मध्य प्रदेश की ग्वालियर एल्को! (करीब 5 करोड़ रुपए) और बीजी शिर्के कंस्ट्रक्शन लिमिटेड (करीब 4 करोड़ रुपए) शामिल हैं। दूसरी तरफ व्यक्तिगत दानकर्ताओं में कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल 3 करोड़ रुपए दान के साथ पार्टी में सबसे ज्यादा दान देने वाले नेता हैं। हाल ही में उन्होंने कांग्रेस पार्टी में हर स्तर पर बदलाव के लिए अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र भी लिखा था। इसके अलावा सोनिया गांधी ने 50 हजार रुपए और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपनी पार्टी को 54 हजार रुपए दान किए थे।

    किसी भी राजनीतिक दल की चंदे की रिपोर्ट में सिर्फ 20 हजार रुपए से ज्यादा के योगदान का ही जिक्र होता है। कांग्रेस ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि उसे 139 करोड़ रुपए 20 हजार रुपए से ऊपर के चंदे के रूप में मिले हैं। इलेक्शन कमीशन को सौंपी गई चंदे की रिपोर्ट में यह अनिवार्य है कि पार्टियां दानकर्ताओं के नाम, पते, पैन नंबर, दान के तरीके और दान की तारीख का जिक्र करें। इसे हर साल 30 सितंबर तक जमा करना जरूरी होता है। इसके बाद चुनाव आयोग इस जानकारी को सार्वजनिक डोमेन में डाल देता है।