राहुल गांधी की भाषा सोशल मीडिया के ट्रोल्स जैसी


नई दिल्ली. राजनीति में शुचिताएं संस्कृति और शालीनता का होना आवश्यक है। विरोध का तरीका ऐसा नहीं होना चाहिए, जिससे किसी के मान-सम्मान को ठेस पहुंचे। खास कर तो जन प्रतिनिधियों और नेताओं की भाषा और भी बेहद संयमित व शालीन होनी चाहिए। भारतीय लोकतंत्र हमेशा से इसके लिए जाना जाता है। यहां की संसदीय परंपरा में पक्ष-विपक्ष तर्कपूर्ण और मुद्दा आधारित बहस करते आए हैं। लेकिन, हाल के वर्षों में यह परंपरा पीछे छूटती जा रही है। राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री को लेकर जो बात कही, उनकी भाषा सोशल मीडिया के ट्रोल्स जैसी है। ये किसी ऐसी पार्टी के नेता की भाषा नहीं हो सकती जो देश की आजादी के आंदोलन की वारिस रही हो, इस समय देश की विपक्षी पार्टी है, जो अपनी पार्टी का अध्यक्ष रह चुका हो। राहल गांधी ने जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया वह सही नहीं है। नरेंद्र मोदी देश के चुने हुए प्रधानमंत्री हैं एक संवैधानिक पद पर हैं। राहुल गांधी से उम्र में भी बड़े हैं और तजुर्बे में भी बड़े हैं। इसलिए उनके बारे में इस तरह बोलना, यह भाषा हमारे समाज में लोग पसंद नहीं करते हैं। चाहे अमीर हो या गरीब हो, अगर उम्र में या ओहदे में बड़ा है तो उसके लिए इस प्रकार की अमर्यादित भाषा को लोग पसंद नहीं करते हैं। ऐसा पहली बार नहीं है जब राहुल गांधी या कांग्रेस के किसी नेता ने नरेंद्र मोदी को लेकर इस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया हो या निजी हमला किया हो इसके पहले कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और मणिशंकर अय्यर से लेकर कई अन्य नेता भी पीएम मोदी के खिलिाफ ऐसी भाषा का इस्तेमाल कर चुके हैं और कांग्रेस को इसका नुकसान भी झेलना पड़ा है। सोनिया गांधी का मौत का सौदागर वाला बयान हो या मणिशंकर अय्यर के तमाम बयान जिनमें उन्होंने मोदी के लिए गलत भाषा का इस्तेमाल किया, ये बातें कांग्रेस पर ही उलटी पड़ रही हैं। मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं और वो राहुल गांधी से उम्र में भी बड़े हैं। ऐसे में राहुल गांधी जितनी बार मोदी पर सीधा प्रहार करेंगे इससे उन्हीं का नुकसान है, मोदी मजबूत होंगे। साल 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस ने चौकीदार चोर है का नारा दिया और कोशिश की कि बीजेपी और नरेंद्र मोदी के खिलाफ मोर्चा खोल पाए, लेकिन नाकाम रही कांग्रेस का ये नारा उस वक्त दब गया जब बीजेपी ने मैं भी चौकीदार का नारा बुलंद कर दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकसभा चुनाव की अमूमन हर रैली में खुद को देश का चौकीदार बताया। इसका असर ये रहा कि बीजेपी का मैं भी चौकीदार कैंपेन सफल रहा।