पृथक विंध्य प्रदेश, भाजपा में तनातनी



भोपाल. मध्य प्रदेश में बीजेपी की पार्टी से हटकर मैहर से बीजेपी एमएलए ने अलग विंध्यप्रदेश बनाने का संघर्ष छेड़ा तो मध्य प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर उबाल आ गया है। इस मांग पर बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने उन्हें बुलाकर पार्टी लाइन से हटकर कोई बात नहीं करने की हिदायत दी थी, इसके बावजूद भी नारायण त्रिपाठी ने अलग विंध्य प्रदेश की मांग को लेकर संघर्ष करने की तैयारी कर ली है। मैहर से एमएलए त्रिपाठी, पार्टी लाइन से हटकर कुछ दिनों से समर्थन जुटाने में लगे हैं। हाल ही में उन्होंने सतना जिले के उचेहरा में भी सभा की थी और तब उन्होंने ये तक कहा था कि पार्टी छोड़ हर व्यक्ति प्रमोशन चाहता है। हम सपा में थे और कांग्रेस में गए तो प्रमोशन मिला। कांग्रेस से भाजपा में आए तो प्रमोशन मिला। इस बारे में यह भी कयास लगाया जा रहा है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में आने के बाद से ही नारायण त्रिपाठी खुद को असुरक्षित महसुस कर रहे हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि सिंधिया के साथ उनके धुर विरोधी श्रीकांत चतुर्वेदी भी बीजेपी में आ गए हैं, जो कभी कांग्रेस के नेता रहे हैं। दरअसल, मध्य प्रदेश के गठन से पहले विंध्य अलग प्रदेश था जिसकी राजधानी रीवा थी। आजादी के बाद सेंट्रल इंडिया एजेंसी ने पूर्वी भाग की रियासतों को मिलाकर 1948 में विंध्य प्रदेश बनाया था। विंध्य क्षेत्र पारंपरिक रूप से विंध्याचल पर्वत के आसपास का पठारी भाग माना जाता है। विंध्य प्रदेश में 1952 में पहली बार विधानसभा का गठन भी हआ था। विंध्य प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री पंडित शंभुनाथ शुक्ला थे, जो शहडोल के रहने वाले थे।

    वर्तमान में जिस इमारत में रीवा नगर निगम है, वो विधान सभा हुआ करती थी। विंध्य प्रदेश करीब चार साल तक अस्तित्व में रहा। 1 नवंबर 1956 को मध्य प्रदेश के गठन के साथ ही यह मध्य प्रदेश में मिल गया था। मध्य प्रदेश के रीवा, सतना, सीधी, सिंगरौली, अनुपपुर, उमरिया और शहडोल जिले विंध्य क्षेत्र में ही आते हैं, जबकि कटनी जिले का कुछ हिस्सा भी इसी में माना जाता है। बता दें कि 1 नवंबर 1956 में मध्य प्रदेश का गठन हुआ था। इसके बाद से विंध्य को अलग प्रदेश बनाए जाने की मांग उठने लगी थी। विधानसभा के तत्कालीन अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी भी अलग प्रदेश बनाए जाने के पक्षधर थे। तिवारी ने विंध्य प्रदेश की मांग को लेकर विधानसभा में एक राजनीतिक प्रस्ताव भी रखा था जिसमें उन्होंने कहा था कि मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के विंध्य और बुंदेलखंड क्षेत्र को मिलाकर अलग विंध्य प्रदेश बनाया जाना चाहिए। हालांकि इस मुद्दे पर ज्यादा चर्चा नहीं हुई और बात आई-गई हो गई, लेकिन विधानसभा में प्रस्ताव आने के बाद कभी-कभी यह मांग दोबारा उठती रही। कई बार छोटेमोटे आंदोलन भी हुए सन् 2000 में केंद्र की एनडीए सरकार ने झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड प्रदेश बनाने के गठन को स्वीकृति दी थी। उस समय भी श्रीनिवास तिवारी के पुत्र दिवंगत संदरलाल तिवारी ने एक बार फिर मुद्दा गर्मा दिया था। उस समय एनडीए सरकार को एक पत्र लिखा था। मध्य प्रदेश की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने विधानसभा से एक संकल्प पारित कर केंद्र सरकार को भेजा था, लेकिन तब केंद्र ने इसे खारिज कर केवल छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना को हर झंडी दे दी थी।