गणेश को पूजिए, गीता को बांचिए गाय को पालिए, गरीब को संभालिए!

जो अपने जीवन को दुर्लभ और महान बनाना चाहते हैं जो अपने बड़े सपनों को सार्थक करना चाहते हैं वे अपना हर काम शास्त्रोक्त विधान से आरंभ करें। शत् प्रतिशत सफलता के लिए यही सबसे जरूरी है और कार्य आरंभ का यही एक श्रेष्ठ विधान है। जिसके तहत भारत के श्रेष्ठ सनातनी साधक सबको यही एक जीवन मंत्र देते हैं- गणेश को पूजिए, गीता को बांचिए। गाय को पालिए, गरीब को संभालिए। अर्थात अपने श्रेष्ठ संकल्प के अनुरूप जो भी कार्य आरंभ करो उसके शुभारंभ में गणेश आह्वान जरूर करो। यहां गणेश बुद्धि के प्रतिमान हैं। ज्ञान की मूर्ति हैं जिनको प्रसन्न किये बिना कभी कोई कार्य शुरू भी हो जाए, लेकिन सफल तो नहीं हो सकता। क्योंकि किसी कार्य की सफलता के लिए बुद्धि और ज्ञान का होना अत्यंत जरूरी है जो कि श्रीगणेश जी के पास हैं। अब जब हमारी पूजा से श्री गणेश प्रसन्न होते हैं तो हमारी बुद्धि गौ पालन अर्थात गौ सेवा के लिए प्रेरित करती है। गाय सार्थक उद्यम में सौ प्रतिशत सफलता की प्रतीक है। जब कोई गाय की सेवा करता है, उसे संरक्षण देता है तब यह मत समझो कि हम गाय को पाल रहे हैं, बल्कि यह समझो कि गाय हमें पाल रही है।..और यह सच भी है गाय ही हम सबको सदियों से पालती आ रही है। गाय को भारत के लोग गौमाता कहते हैं। अब जब ये गौ माता किसी पर प्रसन्न होती हैं तो वो व्यक्ति जो भी बड़ा कार्य कर रहा होता है उसमें सफल बनाती हैं और समाज में सम्मानित करती हैं। तब ऐसे सफल व सम्पन्न लोगों को गरीब को गले लगाने के लिए प्रेरित करती हैं। भगवान श्रीकृष्ण तो स्वयं ही गौमाता के महान सेवक थे जिन पर गौमाता की कृपा बरसती थी और उन्हीं की प्रेरणा से श्रीकृष्ण गरीब ग्वालबालों को गले लगाते थे। सुदामा जैसे गरीब ब्राह्मण के चरण पखारते थे और द्वारिका के राजमहल में सबसे ऊंचे सिंहासन पर बैठाते थे। यही वो श्रीकृष्ण हैं जो वक्रतुण्ड महाकाय...अर्थात प्रथम देव श्रीगणेश का आह्वान करते हुए जीवन युद्ध रूपी महाभारत के धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में अर्जुन के माध्यम से संसार को श्रीमद्भगवत गीता सुनाते थे। जिस गीता का यही मूलमंत्र है- कर्मण्येवाधिकारस्ते महाफलेषु कदाचन:...। अर्थात कर्म करो फल की इच्छा मत करो। यह मूलमंत्र किसी जाति धर्म से हटकर मानव मात्र के लिए है। जिसके अनुसरण से मानव जीवन सफल और सार्थक बन जाता है।