पढ़ाई में पिछडऩे से मन:स्थिति पर पड़ रहा है असर

कोरोना काल में 15 फीसदी लड़कियों ने छोड़ा स्कूल

नई दिल्ली. केंद्र सरकार ने भले ही कोविड-19 महामारी के बीच ही राज्यों को क्रमबद्ध तरीके से स्कूल खोलने की इजाजत दे दी है, लेकिन स्कूलों में दोबारा बच्चों को लाना स्कूल के साथ ही शिक्षकों के लिए बड़ी चुनौती साबित हो रही है। खासकर उन बच्चों को पढ़ाई की बराबरी के स्तर पर लाना और मुश्किल हो रहा है जो तकनीक के अभाव में अन्य सुविधा संपन्न छात्रों से पिछड़ चुके हैं। नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ एजुकेशनल प्लानिंग (न्यूपा) के पूर्व कुलपति प्रोफेसर आर. गोविंदा ने कहा कि स्मार्ट फोन या लैपटाप नहीं होने से गरीब तबके के छात्रों में पढ़ाई छूटने और बाकी साथियों से पिछडऩे को लेकर बहुत तनाव है। आज ज्यादातर छात्रों के पास स्मार्ट फोन और लैपटाप नहीं है। इससे पढ़ाई के अभाव में छात्र स्कूल छोड़ रहे हैं। स्कूल छोडऩे वालों में लड़कियों की संख्या ज्यादा रहती है प्रो. गोविंदा ने बताया कि हर वर्ष करीब 30 प्रतिशत छात्र आठवीं कक्षा तक भी नहीं पहुंच पाते हैं। हर साल करीब पांच फीसदी गरीब बच्चे स्कूल छोड़ देते हैं। कोरोना काल में ऐसे और खासकर गरीब छात्रों की परेशानी काफी बढ़ गई है। गरीब अभिभावक अपने बच्चों को मोबाइल, लैपटॉप, इंटरनेट का संसाधन ही नहीं उपलब्ध करा सके। इस स्थिति में गरीब माता पिता सोचते हैं कि एक बच्चे को ठीक से पढ़ाओ और दूसरे को छोड़ दो। लडकियों के मामले में यह प्रवृत्ति कुछ ज्यादा दिखाई देती है। अनुमान के हिसाब से कोरोना काल में आठवीं कक्षा तक की 15 प्रतिशत लड़कियों ने स्कूल छोड़ दिया है।