इस जगत में उन्हीं का सबसे ज्यादा प्रभाव जिनमें पूज्यता के अभिमान का सर्वथा अभाव!

किसी व्यक्ति अथवा वस्तु में प्रभाव स्वाभाविक रूप से होता है तो कुछ अपने प्रभाव को और ज्यादा असरदार बनाने अनेक जतन करते हैं। कई लोगों की ऐसी चाहत होती है कि वे अति प्रभावी दिखें और लोग उनका आदर करें। इनमें से अनेक ऐसे भी होते हैं जो लोगों से उन्हें मिलने वाले आदर अर्थात मान-सम्मान से अहंकारी हो जाते हैं। स्वयं के समक्ष औरों को तुच्छ समझने लगते हैं। प्रभु प्रदत्त प्रभाव के प्रसाद का इस तरह से अहंकार करना उचित नहीं होता।

अक्सर देखने में आता है कि जो अपने मान-सम्मान से अहंकारी हो जाते हैं एक न एक दिन वे जितना अपने प्रभाव को खो बैठते हैं। यथार्थ तो यही है कि इस जगत में उन्हीं का सबसे ज्यादा प्रभाव। जिनमें पूज्यता के अभिमान का सर्वथा अभाव! प्रभावशाली वास्तव में व्यक्ति को अपनी पूज्यता का कभी अभिमान नहीं करना चाहिए। यदि कोई तुम्हारे ओज, ऊर्जा और औरा से प्रभावित है और तुम्हें कुछ विशेष समझकर नमस्कार-प्रणाम कर रहा है तो तुम भी जरा झुक जाओ। सरल बन जाओ, सहज हो जाओ। क्योंकि सामने वाला तुम्हें नहीं, बल्कि तुम्हारे अंदर बैठे परमात्मा को प्रणाम कर रहा है। उन परमात्मा को साक्षी मानकरक तुम पूर्णत: अहंकार शून्य हो जाओ तब तुम देखना कि लोग तुम्हारे पास और भी ज्यादा खिंचते चले आएंगे। तुम्हारा मान बढ़ाएंगे। तुम्हारे प्रति पूज्यता का भाव रखेंगे और समाज में श्रेष्ठा प्रदान करेंगे। इसके विपरीत तुम अहंकार करोगे तो एक दिन तुम्हारी प्रतिष्ठा और प्रभाव भंग हो जाएंगे। यहां यथार्थ यही है कि प्रभु कृपा से व्यक्ति जाएंगे। यहां यथार्थ यही है कि प्रभु कृपा से व्यक्ति जितना प्रभावी होता जाए उसे उतना सहज सरल होता जाना चाहिए। जिस तरह की फेड फलों से लदकर और भी झुकता जाता है। संसार के सबसे प्रभावशाली राम और कृष्ण जैसे महा अवतार भी भक्तों से मान पाकर सहज सरल रहते हैं। लिहाजा हमें अपनी पूज्यता और सम्मानित होने का कभी अभिमान नहीं करना चाहिए।