गोबिंद सिंह के साहिबजादों को वजीर खान ने दीवार में जिन्दा चुनवा दिया



पंजाब के जिला फतेहगढ़ साहिब में स्थित सरहिंद का भारतीय इतिहास में अपनी अलग पहचान है। यह वही धरती जहाँ श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबजादों बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह साहिब को सरहिंद के सुबा वजीर खान ने दीवार में जिंदा चुनवा दिया था। यह दौर था मुगलिया सल्तनत के सबसे क्रूर शासक औरंगजेब का। युगों-युगों तक याद रखी जाने वाली शहादत गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबजादों को 25/26 दिसंबर 1704 को बहुत कम उम्र में मिली। सिख धर्म में इसे शाका सरहिंद के नाम से जाना जाता है। यहां प्रतिवर्ष 24 से 26 दिसंबर को इसी शहीदी स्थल पर जोड़ मेला आयोहित किया जता है। इस मेले में देश दुनिया हजारों की संख्या में संगत पहुंचती है।

यह है इतिहास

सन् 1704 में किला श्री आनंदपुर साहिब पर पहाड़ी राजाओं और मुगलों ने हमला बोल दिया। लगभग आठ महीने तक पहाड़ी राजाओं और मुगलों की सेनाओं ने किले की घेरा बंदी कर रखी थी। यहां भयंकर युद्ध हुआ। आनंदपुर साहिब से चलकर जब गुरुजी अपने परिवार तथा सिंहों समेत सरसा नदी के किनारे पहुंचे तो सरसा में भयानक बाढ़ आई हुई थी। पीछे मुगलों की दुश्मन फौज थी। नदी पार करते समय गुरुजी का परिवार बिखर गया। गुरुजी का रसोइया गंगू माता गुजरी व छोटे साहिबजादों को अपने साथ गांव सहेड़ी में ले आया। लेकिन यहां उसने गुरु साहिब के साथ धोखा किया और फिर उसने लालच में आकर माता जी व साहिबजादों को गिरफ्तार करवा दिया। माता जी व साहिबजादों को गिरफ्तार करके सरहिंद के सूबेदार सूबा वजीर खान के पास लाया गया। यहां उन्हें ठंडे बजे में कैद करके रखा गया। अगले दिन उन्हें कचहरी में पेश किया गया। यहां सूबेदार वजीन खान ने साहिबजादों को मुस्लिम धर्म स्वीकार करने के लिए कई तरह के लालच दिए, डराया लेकिन साहिबजादों ने अपना धर्म छोडऩा मंजूर नहीं किया। इन सात और दस साल के दोनों साहिबजादों को दो दिन कचहरी में पेश किया जाता रहा। परंतु साहिबजादे नहीं माने। अंत में वजीर खान ने साहिबजादों को जिंदा ही दीवार में चिनवाकर शहीद करने का फतवा जारी करवा दिया।

दीवान टोडरमल ने किया अंतिम संस्कार

साहिबजादों को वजीर खान का आदेश पर 13 पौष के दिन दीवार में चिनवाया गया। जब साहिबजादे दीवारों में बेहोश हो गए तो उन्हें बाहर निकाल कर शहीद कर दिया गया। यह बात जब माता गुजरी जी को पता चली वह भी श्री अकाल पुरख के चरणों में जा विराजीं। शहीदी के बाद दीवान टोडरमल ने माता जी तथा साहिबजादों के पवित्र शरीर का अंतिम संस्कार करने की अनुमति मांगी। लेकिन क्रूर वजीर खान ने कहा कि जितनी जगह तुम्हें संस्कार के लिए चाहिए उस पर स्वर्ण मुद्राएं खड़ी करके रखी जाएं। दीवान टोडरमल ने अपनी सारी दौलत से यह जगह खरीदी और अंतिम संस्कार किया।

गुरु गोविंद सिंह ने ही सिखों को पंच ककार दिये और इन्होंने ही खालसा पंथ की स्थापना की

शौर्य और साहस के प्रतीक श्री गुरु गोबिंद सिंह का जन्म पौष महीने के शुक्लपक्ष की ससमी तिथि को बिहार के पटना साहिब में हुआ था। इनके बचपन का नाम गोविंद राय था। पिता गुरु तेग बहादुर जी की शहादत के बाद से वे 9 साल की उम्र में ही दसवें सिख गुरु बनाए गए थे। इन्हें दशमेश पिता का दर्जा भी मिला हुआ है। एक आध्यात्मिक गुरु होने के साथ-साथ गुरु गोविंद सिंह निर्भयी योद्धा, कवि और दार्शनिक भी थे। गुरु गोबिंद सिंह ने ही आदिग्रंथ यानी गुरु ग्रंथ साहिब को गुरु की गद्दी दी। इसके साथ ही सिखों को पंच ककार धारण करने का आदेश भी इनका ही दिया हुआ है।