नगरीय निकाय चुनाव से पहले फिर निकला मेट्रो का जिन्न
भोपाल. भोपाल मेट्रो प्रोजेक्ट ने सवा साल का सफर पूरा कर लिया है। बीते साल 26 सितंबर 2019 को मेट्रो प्रोजेक्ट का तत्कालीन मुख्यमंत्री कमल नाथ ने शिलान्यास किया था। तब वर्ष 2023 तक मेट्रो के संचालन के लिए डेढ़ साल में सिविल वर्क पूरा करने का दावा सरकार का था। तय डेडलाइन में यह काम पूरा हो पाना मुश्किल है। पर्पल कॉरिडोर लाइन-टू के पहले सिविल वर्क एम्स से लेकर सुभाष नगर तक 6.22 किमी लंबे एलीवेटेड रूट के लिए 220 पिलर में से आधे का निर्माण कार्य पूरा हुआ, लेकिन नगरीय निकाय चुनाव में मेट्रो का श्रेय लेने की होड़ दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों में शुरू हो गई है। कांग्रेस मेट्रो का श्रेय लेना चाहती है तो भाजपा का भी कहना है कि मेट्रो पर पिछले कार्यकाल में ही काम शुरू हो गया था।
ऐसे में नगरीय निकाय चुनाव में मेट्रो भी चुनावी मुद्दा होगा। मेट्रो का भोपाल में काम तेज गति से चल रहा है, लेकिन 2023 के पहले चरण के मार्ग पर मेट्रो चल पाएगी, इस पर संदेह बना हुआ है, लेकिन भाजपा और कांग्रेस में श्रेय लेने की होड़ मची हुई है। भोपाल नगर निगम पर कब्जा जमाने को लेकर कांग्रेस उत्साहित है। पिछले दो चुनावों से नगर सरकार पर भाजपा का कब्जा है। ऐसे में कांग्रेस ने नगरीय निकाय चुनाव की तैयारियों को लेकर न सिर्फ काम शुरू कर दिया है, बल्कि प्रत्याशी चयन के लिए समिति भी बना दी है। टिकट देने के लिए फॉर्मूला तय कर दिया है। प्रभारी और सह प्रभारी लगातार दौरे कर कांग्रेस पदाधिकारियों की बैठकें ले रहे हैं।
ऐसे में भोपाल के मेट्रो प्रोजेक्ट को लेकर हबीबगंज रेलवे फाटक स्थित गणेश मंदिर से लेकर डीबी मॉल तक बाधाएं दूर नहीं हो पाई हैं, इसमें बिजली के खंभे व लाइन की शिफ्टिंग, अतिक्रमण, रेलवे की जमीन व बीआरटीएस के विवाद जैसे मामले बाधाएं बने हुई है। इतना ही नहीं, हबीबगंज रेलवे फाटक के पास रेलवे पटरी को पार करना है, लेकिन अब तक रेलवे से भोपाल मेट्रो के अधिकारी अनुमति नहीं पा सके हैं। पर्पल लाइन की कुल लंबाई 14.99 किमी में 8.7 किमी का रूट सुभाष नगर से करोंद तक बचा हुआ है। इस हिस्से में सिविल वर्क करने के लिए टेंडर की तैयारी की जा रही है। नगरीय विकास एवं आवास विभाग ने मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन को हरी झंडी भी दे दी है। अधिकारियों ने बताया कि टेंडर जारी करने से पहले टेक्निकल बिट जारी की गई है, इसमें देश की कई बड़ी कंपनी भाग लेंगी। मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन के पत्र के बाद जिला प्रशासन ने भूमि आवंटन, अतिक्रमण, बिजली व पानी की पाइप लाइन को लेकर रिपोर्ट भी तैयार की थी।
मेट्रो के अधिकारियों का कहना है कि चिन्हित बाधाओं को दूर करने के लिए जिला प्रशासन, नगरीय विकास विभाग के अधिकारी व कॉर्पोरेशन के अधिकारियों की बैठक हो चुकी है। भोपाल रेलवे स्टेशन के छह नंबर प्लेटफॉर्म के पास भूमिगत मेट्रो स्टेशन के लिए लगभग 24 मीटर की खाली जमीन को अधिग्रहित किया जाना है।
धीमी गति से हो रहा काम
यदि दूसरे शहर में मेट्रो की बात की जाय तो नागपुर मैट्रो रेल का भूमिपूजन 31 मई 2015 को हुआ था और 21 अप्रैल 2018 से 6 किलोमीटर की राइड शुरू कर दी गई। पहली कमर्शियल लाइन 9 गार्च 2019 को शुरू हुई और 20 किलोमीटर के एरिया में मेट्रो ट्रेन चलने लगी। भोपाल मैट्रो कब तक पटरी पर दौड़ेगी, यह कह पाना मुश्किल है, लेकिन चुनाव में जरूर ये मुद्दा अहम बन गया है।
अड़चनें नहीं हुईं दूर
भोपाल में मेट्रो सिविल वर्क के दूसरे चरण के टेंडर की तैयारी शुरू हो गई है। राजधानी में मेट्रो का पहला सिविल वर्क छह माह के अंदर पूरा होने की उम्मीद अधिकारी जता रहे हैं। इस सिविल वर्क में एम्स से सुभाष नगर तक मेट्रो संचालन के लिए एलीवेटेड रूट का निर्माण कराया जा रहा है। यह काम मेट्रो पर्पल कॉरिडोर लाइन-2, एम्स से करोंद तक 14.99 किमी रूट के तहत किया जा रहा है, लेकिन इस राह की अड़चनों को मेट्रो के अधिकारी दूर नहीं कर पाए हैं। सुभाष नगर के पास बसी आजाद नगर झुग्गी बस्ती को हटाया नहीं जा सका है तो डीबी मॉल के सामने मेट्रो राह में 440 वॉल्ट वाली बिजली लाइन के ट्रांसफॉर्मर को भी शिफ्ट नहीं किया जा सका है।
2013 से दौड़ रहा है मेट्रो मुद्दा
मध्यप्रदेश की बीजेपी सरकार ने 2013 के विधानसभा चुनाव में यह दावा किया था कि 2018 तक भोपाल और इंदौर के एक हिस्से में मेट्रो पटरी पर दौडऩे लगेगी। घोषणा के 8 साल बाद मेट्रो तो पटरी पर नहीं आ पाई, लेकिन हर चुनाव में मेट्रो का मुद्दा जरूर दौड़ता दिखाई दिया। अब जबकि नगरीय निकाय चुनाव सिर पर हैं, उससे पहले एक बार फिर मेट्रो का जिन निकल आया है।
दो बार भूमि पूजन
मध्य प्रदेश में होने वाले नगरीय निकाय चुनाव से पहले दो बड़े शहरों भोपाल और इंदौर के सबसे बड़े प्रोजेट मेट्रो रेल को गति देने की बात सत्ताधारी दल भाजपा फिर कहने लगी है। मेट्रो का श्रेय लेने की होड़ कांग्रेस ने भी शुरू कर दी है। जैसे ही नगरीय निकाय चुनाव की सुगबुगाहट तेज हुई तो एक बार फिर मेट्रो का मुद्दा उठने लगा है।