मानव देहधारी राम की ये पहचान ज्ञान का धनुष और विवेक का बाण!

ये कहना सर्वथा गलत है कि राम कभी थे। सच तो यह है कि राम थे हैं और आगे भी रहेंगे। प्रभु श्रीराम सर्वकाल में सर्व विद्यमान सत्ता का नाम है। राम हैं तभी तो हम हैं अन्यथा बिना राम के हमारा अस्तित्व ही कहां है ? यथार्थ में सम्पूर्ण मानवीय चेतना के स्फुटित प्राण हैं राम! जिन्हें जानने-पहचानने में हमें सदा सतर्कता बरतनी चाहिए। क्योंकि जीवन उन्हीं का सभंला, सफल हुआ है जिन्होंन राम को पहचाना है। जिन्होंने अपनी हर श्वांस को राम की श्वांस माना है। 

इसीलिए तो सद्गुरू स्वामी अवधेशानंद गिरीजी कहते हैं- भारत की भोर के पहले सुर हैं राम। फिर भी हम इस भीड़ भरे संसार में राम को खोजते फिरते हैं। जबकि ब्राह्मवेत्ता तत्वमनीषी कहते हैं- मेरे अंदर राम। तेरे अंदर राम। जड़ में राम चेतन में राम! फिर भी खोजते हो और राम को जानना ही चाहते हो, उनसे मिलना ही चाहते हो त-मानव देहधारी राम की ये पहचान। ज्ञान का धनुष और विवेक का बाण! अर्थात जो राम की खोज में निकल पड़े हैं उन्हें पहचानने में सहूलियत के लिए बता दें कि राम वह हैं जिनके मजबूत कंधे पर ज्ञान का धनुष शोभा पाता है और उनके हाथ में सदा विवेक बाण होता है। इसका वास्तविक अर्थ यही कि जिसके पास ज्ञान व विवेक है वही राम है अथवा उनका प्रतिनिधि है या परमभक्त है। क्योंकि ज्ञान और विवेक ही दो ऐसे सद्गुण हैं जो मनुष्य मात्र को लोभ, मोह, काम, क्रोध आदि विकारों व सभी तरह के दुर्गुणों से दूर रखने में सहयोग करते हैं। इसीलिए तो प्राचीन-पौराणिक युग से लेकर आज के इस युग में भी लोग ज्ञान के पीछे दौड़ते हैं। विवेक प्राप्ति के लिए सत्संग करते हैं। क्योंकि कहा भी गया है- बिन सत्संग विवेक ना होई। राम कृपा बिन सुलभ न सोई।। अर्थात बिना सत्संग के विवेक नहीं आता और बिना राम की कृपा के सत्संग नहीं होता। वास्तव में ज्ञान व विवेक ही हैं जो मानव जीवन को सार्थक व सफल बना सकते हैं। इसलिए आओ राम को मनाएं। उनसे ज्ञान व विवेक पाएं, जीवन सफल बनाएं।