क्या कानून में कमजोरी है?
बाल विवाह कानून में बाल विवाह को अवैध ठहराए जा सकने की व्यवस्था है सरल शब्दों में कहें में तो अगर दो लोगों की शादी कम उम्र में होती है तो शादी अस्वीकार करने वाले शख्स को 20 साल की आयु सीमा पार करने से पहले कोर्ट जाकर अपनी शादी ख़ारिज करने के लिए आवेदन देना होगा ये एक ऐसी शर्त है जो कि बाल विवाह को अवैध ठहराए जाने की प्रक्रिया को बेहद कठिन बना देता है, क्योंकि भारत के जिन हिस्सों में बाल विवाह काफ़ी प्रचलित है, वहां 18 साल की उम्र पार करने के बाद भी युवाओं के लिए अपने परिवार के खिलाफ जाकर अपनी शादी तोडऩे के लिए कोर्ट जाना काफी मुश्किल होता है। यही नहीं, ऐसे में मामलों में दूसरे पक्ष की ओर से शादी को बनाए रखने के लिए केस लड़ा जाता है जिससे ये प्रक्रिया और भी ज्यादा दुष्कर हो जाती है। बाल विवाह के रोकथाम में वर्षों से काम कर रहीं सामाजिक कार्यकर्ता कति भारती इस शर्त को बाल विवाह कानून की बड़ी खामी मानती हैं। भारती कहती हैं, बाल विवाह को कानूनी रूप से अवैध करार दिए जाने की माँग उठाना जायज है। अगर ये माँग स्वीकार हो जाती है तो शोषित पक्ष को कोर्ट-कचहरी के चक्कर नहीं काटने होंगे। उनकी शादी स्वत: घर बैठे ही अवैध हो जाएगी, लेकिन अगर इसके सामाजिक पहलू की बात करें तो भले ही आपकी शादी अवैध कानूनी रूप से अवैध हो । लेकिन समाज में ये सिद्ध करने के लिए आपके पास एक कानूनी दस्तावेज होना चाहिए वो कहती हैं कि क्योंकि मान लीजिए कानूनन आपकी शादी अवैध भी रहती है। आप ये मानते रहें कि आपकी शादी अवैध है। लेकिन आपके घरवाले नहीं मानेंगे, आपके रिश्तेदार नहीं मानेंगे। आपका समाज ये बात स्वीकार नहीं करेगा और आपको पुलिस से सुरक्षा नहीं मिलेगी वो कहती हैं, ऐसे में मैं ये महसूस करती हूं कि शादी खारिज करने की प्रक्रिया सहज और सरल होनी चाहिए। ये प्रक्रिया ऐसी होनी चाहिए जैसी प्रक्रिया आधार कार्ड बनवाने की होती है, जिसमें आप अपनी जानकारी देते हैं और फिर आधार कार्ड आपके घर आ जाता है। कृति भारती के मुताबिक, दिल्ली हाईकोर्ट जाने वाली लड़की ने ये सही कहा कि कोर्ट जाना बेहद कठिन होता है और कोर्ट आने के बाद का दबाव बहुत बड़ा होता है। परिवार से लेकर रिश्तेदारों का दबाव रहता है। वो कहती हैं कि हमारे पास जो लड़कियां आती हैं, अपनी शादी अवैध करार दिए जाने के लिए। वे बेहद छोटी होती हैं। उनके लिए इन सभी चीजों को सहन करना बहुत मुश्किल होता है। इनके लिए सबका विरोध सहना बहुत कठिन होता है। क्योंकि आप ये कदम सभी अपनों के खिलाफ जाकर उठाते हैं। ऐसे में ये एक समस्या तो है लेकिन समाधान को लेकर गहन विचार करने की ज़रूरत है। क्योंकि आपके पास एक डॉक्यूमेंट की जरूरत होगी जो कि आपको एक कानूनी आधार दे सके लेकिन ये पहला मामला नहीं है जब कानूनन बाल विवाह को अवैध करार दिए जाने की माँग उठी हो। सुप्रीम कोर्ट भारत के सभी राज्यों से अपील कर चुका है कि इस मामले में कर्नाटक मॉडल को अपनाया जाए।