बाल विवाह अपराध है तो बचपन में हुई शादी अवैध क्यों नहीं?



-अनंत प्रकाश

भारत में रहने वाले ज्यादातर लोगों को इस बात की जानकारी है कि भारतीय बाल विवाह कानून के तहत भारत में बाल विवाह को कानूनी मान्यता हासिल नहीं है। अगर आप बाल विवाह कराने की प्रक्रिया में शामिल होते हैं तो आपको सजा हो सकती है। बचपन में शादी के बंधन में बंधने वाले लोग वयस्क होकर अपनी शादी को खारिज करा सकते हैं और ऐसा कराने के लिए आपको अपने जिला न्यायालय में अर्जी देनी होती है। केंद्र और राज्य सरकारों ने बाल विवाह को रुकवाने के कानूनों में संशोधन किए हैं। कई स्तरों पर अधिकारियों को तैनात किया है, ताकि बाल विवाह रोके जा सकें और लोगों को इससे बाहर निकाला जा सके लेकिन इसके बावजूद एक 28 वर्षीय महिला ने अपनी शादी को खारिज करवाने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट में दस्तक दी है इस महिला ने कोर्ट से ये माँग भी की है कि दिल्ली में बाल विवाह को अवैध ठहराया जाए। दिल्ली हाई कोर्ट ने इस मामले में दिल्ली सरकार से जवाब मांगा है, लेकिन सवाल ये उठता है कि जब कानूनी रूप से भारत में बाल विवाह को मान्यता ही नहीं है तो हाई कोर्ट इस महिला की याचिका क्यों सुन रहा है। संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनिसेफ के मुताबिक़, 18 वर्ष की आयु से पहले बच्चों की शादी मानवाधिकार उल्लंघन की श्रेणी में आता है। लेकिन इसके बावजूद भारत समेत दुनिया भर में ये प्रथा जारी है। यूनिसेफ के मुताबिक, भारत में हर साल लगभग 15 लाख लड़कियों की शादी 18 वर्ष की उम्र से पहले हो जाती है दिल्ली हाई कोर्ट में अर्जी देने वाली महिला भी ऐसी ही तमाम लड़कियों में शामिल हैं। इस महिला की शादी साल 2010 में तब हो गई थी जब वह नाबालिग थी महिला की ओर से कोर्ट में जिरह करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता तनवीर अहमद बताते हैं, इस बच्ची की शादी 16 साल की उम्र में जबरन कर दी गई थी। उस वक्त इनका वैवाहिक जीवन शुरू नहीं हुआ था। लेकिन अब इन पर दबाव डाला जा रहा है कि वह अपनी शादीशुदा जिंदगी में वापसी करें। इस 28 वर्षीय महिला ने कोर्ट से आग्रह किया है कि उनके बाल विवाह को खारिज कर दिया जाए। लेकिन बाल विवाह कानून के मुताबिक, अब ये विवाह ख़ारिज नहीं हो सकता है तनवीर अहमद इसकी वजह बताते हुए कहते हैं, बाल विवाह कानून एक केंद्रीय कानून है। लेकिन इसे शेड्यूल सी में शामिल किया जा सकता है। इस वजह से राज्य इस कानून में संशोधन कर सकते हैं लेकिन इस कानून की दुविधा ये है कि एक तरह से ये एक तटस्थ कानून है जो कि समाज के हर तबके और धर्म पर लागू होता है। ये कानून बाल विवाह को एक आपराधिक कृत्य की श्रेणी में लेकर आता है। लेकिन इसी कानून की एक बात इसे मजाक का विषय बना देती है क्योंकि यही कानन एक तरह से बाल विवाह को स्वीकार्यता भी देता है, जब वह ये ऐलान करता है कि बाल विवाह से बचा जा सकता था। इस कानून के तहत बाल विवाह करने वाले महिला-पुरुष में से किसी एक को अपनी शादी खारिज कराने के लिए 18 साल की उम्र पार करने की तिथि से दो वर्ष के भीतर जाला न्यायालय में अर्जी देनी होती है तनवीर अहमद मानते हैं कि जब सरकार बाल विवाह को अनैतिक और आपराधिक कृत्य मानती है तो ऐसी शादियों को खारिज करने की जम्मेिदारी 18 साल के बच्चों पर क्यों डालती है वह कहते हैं, जब आपने एक कानून के तहत बाल विवाह को एक आपराधिक कृत्य करार दिया है और ये इस आधार पर किया गया है कि बाल विवाह अनैतिक है, गैरकानूनी है और एक बच्चे के मूल अधिकार का उल्लंघन है। लेकिन इसी कानून में आप बाल विवाह की वैधता स्वीकार करते हैं। आप बाल विवाह से होकर गुजरने वाले बच्चे पर जिम्मेदारी डालते हैं कि 18 की साल की उम्र पार करते ही कोर्ट जाए, वाद प्रस्तुत करें कि उसकी शादी अवैध ठहराई जाए। इसके बाद वह एक लंबी कानूनी लड़ाई लड़े जबकि उस समय उसे अपना करियर बनाने की ओर ध्यान देना था वरिष्ठ अधिवक्ता तनवीर अहमद और उनकी क्लाइंट ने दिल्ली सरकार से अपने कानून में संशोधन करने की माँग की है। लेकिन सवाल ये है कि ये मांग उठने की वजह क्या है?

क्या कानून में कमजोरी है?

बाल विवाह कानून में बाल विवाह को अवैध ठहराए जा सकने की व्यवस्था है सरल शब्दों में कहें में तो अगर दो लोगों की शादी कम उम्र में होती है तो शादी अस्वीकार करने वाले शख्स को 20 साल की आयु सीमा पार करने से पहले कोर्ट जाकर अपनी शादी ख़ारिज करने के लिए आवेदन देना होगा ये एक ऐसी शर्त है जो कि बाल विवाह को अवैध ठहराए जाने की प्रक्रिया को बेहद कठिन बना देता है, क्योंकि भारत के जिन हिस्सों में बाल विवाह काफ़ी प्रचलित है, वहां 18 साल की उम्र पार करने के बाद भी युवाओं के लिए अपने परिवार के खिलाफ जाकर अपनी शादी तोडऩे के लिए कोर्ट जाना काफी मुश्किल होता है। यही नहीं, ऐसे में मामलों में दूसरे पक्ष की ओर से शादी को बनाए रखने के लिए केस लड़ा जाता है जिससे ये प्रक्रिया और भी ज्यादा दुष्कर हो जाती है। बाल विवाह के रोकथाम में वर्षों से काम कर रहीं सामाजिक कार्यकर्ता कति भारती इस शर्त को बाल विवाह कानून की बड़ी खामी मानती हैं। भारती कहती हैं, बाल विवाह को कानूनी रूप से अवैध करार दिए जाने की माँग उठाना जायज है। अगर ये माँग स्वीकार हो जाती है तो शोषित पक्ष को कोर्ट-कचहरी के चक्कर नहीं काटने होंगे। उनकी शादी स्वत: घर बैठे ही अवैध हो जाएगी, लेकिन अगर इसके सामाजिक पहलू की बात करें तो भले ही आपकी शादी अवैध कानूनी रूप से अवैध हो । लेकिन समाज में ये सिद्ध करने के लिए आपके पास एक कानूनी दस्तावेज होना चाहिए वो कहती हैं कि क्योंकि मान लीजिए कानूनन आपकी शादी अवैध भी रहती है। आप ये मानते रहें कि आपकी शादी अवैध है। लेकिन आपके घरवाले नहीं मानेंगे, आपके रिश्तेदार नहीं मानेंगे। आपका समाज ये बात स्वीकार नहीं करेगा और आपको पुलिस से सुरक्षा नहीं मिलेगी वो कहती हैं, ऐसे में मैं ये महसूस करती हूं कि शादी खारिज करने की प्रक्रिया सहज और सरल होनी चाहिए। ये प्रक्रिया ऐसी होनी चाहिए जैसी प्रक्रिया आधार कार्ड बनवाने की होती है, जिसमें आप अपनी जानकारी देते हैं और फिर आधार कार्ड आपके घर आ जाता है। कृति भारती के मुताबिक, दिल्ली हाईकोर्ट जाने वाली लड़की ने ये सही कहा कि कोर्ट जाना बेहद कठिन होता है और कोर्ट आने के बाद का दबाव बहुत बड़ा होता है। परिवार से लेकर रिश्तेदारों का दबाव रहता है। वो कहती हैं कि हमारे पास जो लड़कियां आती हैं, अपनी शादी अवैध करार दिए जाने के लिए। वे बेहद छोटी होती हैं। उनके लिए इन सभी चीजों को सहन करना बहुत मुश्किल होता है। इनके लिए सबका विरोध सहना बहुत कठिन होता है। क्योंकि आप ये कदम सभी अपनों के खिलाफ जाकर उठाते हैं। ऐसे में ये एक समस्या तो है लेकिन समाधान को लेकर गहन विचार करने की ज़रूरत है। क्योंकि आपके पास एक डॉक्यूमेंट की जरूरत होगी जो कि आपको एक कानूनी आधार दे सके लेकिन ये पहला मामला नहीं है जब कानूनन बाल विवाह को अवैध करार दिए जाने की माँग उठी हो। सुप्रीम कोर्ट भारत के सभी राज्यों से अपील कर चुका है कि इस मामले में कर्नाटक मॉडल को अपनाया जाए।