मकर संक्राति : नवजीवन का बोध भरने वाला वैदिक पर्व


     

    मकर संक्रांति ऐसा ही एक वैदिक पर्व है जो हमारे लौकिक जीवन को देवजीवन की ओर मोड़ता है। सूयोर्पासना का यह पर्व हमें प्रबोधित करता है कि हम जड़ता व आलस्य त्याग कर स्फूर्तिवान बनें। यह ऋतु पर्व हमारे भीतर नवजीवन का बोध भरकर हमें चैतन्य, जागृत व जीवंत सक्रिय बनाता है। जानना दिलचस्प हो कि समूचे विश्व में भारत की ज्ञान ध्वजा लहराने वाले स्वामी विवेकानंद का जन्म मकर संक्रांति के दिन ही 12 जनवरी को हुआ था। 

    एकमात्र सूर्य ही ऐसे प्रत्यक्ष देवता हैं जो सतत क्रियाशील रहकर हम धरतीवासियों का भरण पोषण करते हैं। इसीलिए हमारे ऋषिगणों ने सूर्य को विराट पुरुष की संज्ञा दी है। हमारे यहां सूर्य की उपासना विविध रूपों में आदिकाल से होती रही है। दिलचस्प तथ्य है कि सिर्फ हिंदू ही नहीं पारसी, इस्लाम व ईसाई धर्म में भी सूर्य को चेतना का केंद्र माना गया है। आल्लामा इकबाल ने आफताब की स्तुति के रूप में गायत्री मंत्र का बड़ा सुंदर अनुवाद उर्दू में किया है। ईसाई धर्म में भी रविवार का दिन पवित्र घोषित कर इस दिन आराधना व दान को पवित्र फलदायी बताया गया है। 

    अब वैज्ञानिक भी यह मानने लगे हैं कि सूर्य ऊर्जा व संवेदना का सघनपुंज है।। पुराणकार कहते हैं कि जब दिवाकर मकरस्थ होते हैं, तब सभी समय, प्रत्येक दिन एवं सभी देश व स्थान शुभ हो जाते हैं। मकर संक्रांति के शुभ मुहर्त में सूर्यदेव का सामीप्य पाकर हमारी धरती माता आलदित हो उठती हैं। समूची प्रकृति में एक नई ऊर्जा का संचार हो जाता है। इस दिन तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गई है। शास्त्रकार कहते हैं कि इस दिन सूर्योपस्थान के उपरांत यज्ञ में दिए। हव्य व दान को ग्रहण करने देवगण धरती पर आते हैं। मकर संक्रांति यानी पृथ्वी पर जीवंतता व जागृति का शुभारंभ। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन देवलोक में भी दिन का आरंभ होता है। इसलिए इसे देवायन भी कहा जाता है। इस दिन देवलोक के दरवाजे खुल जाते हैं। इसलिए मकर संक्रांति के अवसर पर दान-धर्म और जप-तप करना बहुत ही उत्तम माना गया है। इस दिन स्नान का भी बेहद महत्व है। आज के दिन लोग पवित्र नदियों में स्नान करके सूर्य को अर्घ्य देते हैं। मकर संक्रांति बेशक एक खगोलिया घटना है, लेकिन यह हमारी जिंदगी से सीधे तौर पर जुड़ी हुई है। 

    वैदिक मान्यता के अनुसार इस दिन से खरमास (पौष माह) के समापन के साथ रुके हुए विवाह, मुंडन, गृह निर्माण आदि मंगल कार्य पुन: शुरू हो जाते हैं। यह स्नान पर्व मूल रूप ऋतु चक्र परिवर्तन और नई कृषि उपज से जुड़ा है। सूर्यदेव की कृपा से धरतीमाता हम सबके भरण- पोषण के लिए अपनी कोख से नवान का उपहार देती हैं। इसी खुशी में हमारे अन्नदाता मकर संक्रांति का पर्व मनाकर भगवान सूर्य को धन्यवाद देने के साथ उनसे अनुकंपा का आशीर्वाद मांगते हैं। देश के विभिन्न प्रांतों में जितने रूप इस त्योहार को मनाने के प्रचलित हैं, उतने किसी अन्य पर्व के नहीं। कहीं लोहड़ी, कहीं खिचड़ी, कहीं पोंगल, कहीं संक्रांति और कहीं उत्तरायणी। उत्तर प्रदेश, बिहार व मध्य प्रदेश में मकर संक्रांति का पर्व मुख्य रूप से खिचड़ी पर्व के रूप में मनाया जाता है।