सुख मनुष्य की स्वाभाविक मांग है जिसे प्राप्त करने का जतन जन्म से ही शुरू हो जाता है। उद्योग-उद्यम और कठोर परिश्रम से धनार्जन। लेकिन अकेला धन भी सुख उपलब्ध करा पाने में अक्षम है। ऐसे अनेकों लोग मिल जाएंगे जिनके यहां अपार धन-सम्पदा है लेकिन फिर भी सुख नहीं है। इसलिए कि घर में सुमति नहीं है और जब सुमति नहीं है तो घर में आपसी झगडा है और जहां झगड़ा है वहां शांति नहीं है। अब जहां शांति नहीं है तो फिर वहां सुख का अनुभव कैसे हो सकता है। अब प्रश्न उठता है कि मानव जीवन में सुख कैसे आए? इसके लिए लोग तीर्थ, मठ-मंदिरों में जाते हैं। किसी संत-फकीर का द्वार खटखटाते हैं ये सब ठीक है। इसले लोग राहत पाते हैं। लेकिन भारत के ऋषि-मुनि और साधक मानव जीवन के सम्पूर्ण समाधान के लिए हजारों वर्ष पूर्व एक ही सस्ता और सुंदर उपाय बता गये हैं- घर में श्री सत्यनारायण की कथा कराएं। सुमति, संपत्ति, सुख-शांति व सम्मान पाएं! वास्तव में अगर किसी के जीवन में अभाव घेर रहे हों, अशांति का अनुभव हो रहा हो तो इससे छुटकारे का एक ही उपाय है किसी योग्य कर्मकाण्डी ब्राह्मण को घर में बुलाकर श्री सत्यानारायण की कथा-अनुष्ठान सम्पन्न करवाएं। संत-ब्राह्मणों को भोजन कराकर उन्हें दान-सम्मान से विभूषित कराएं। तब तुम स्वयं अनुभव करोगे कि आपके घर-परिवार में सभी सदस्यों के बीच सुमति का वातावरण बनने लगा है। बिगड़े काम बनने लगे हैं और कल तक जो तुमसे विपरीत चल रहे थे वो अब तुम्हारी ओर आकर्षित होने लगे हैं। यह सब श्री सत्यनारायण की कथा का प्रभाव है। अगर कोई साधक परिश्रमपूर्वक कमाए धन से श्री सत्यनारायण की कथा करवाता है तो उसे धन-सम्पदा की प्राप्ति होती है। इसीलिए भारतीय सनातन परिवारों में सत्यानारायण की कथा प्राचीन परम्परा है। कई परिवारों में आज भी माह की अमावस-पूर्णिमा अथा किसी त्योहार-तिथि विशेष पर सत्यनारायण की कथा कराने की परम्परा है। वैसे आधुनिकता की चकाचौंध में श्री सत्यनारायण कथा का चलन पहले से थोड़ा कम दिखाई दे रहा है, लेकिन यह भी सत्य है कि घरों में बढ़ती अशांति व असंतोष का भी यही एक कारण है। लिहाजा सुख-शांति, सुमति व सम्मान प्राप्ति के लिए सत्य संकल्पी बनें और श्री सत्यनारायण की कथा अवश्य कराएं। क्योंकि कलियुग में कृतार्थ का यही सबसे सस्ता और सुलभ साधन है।
घर में श्री सत्यनाराण की कथा कराएं सुमति, संपत्ति, सुख-शांति व सम्मान पाएं!