भीष्म पितामह नहीं चाहते थे अधर्मियों की ओर से महाभारत का युद्ध लड़े सूर्य पूत्र कर्ण



भीष्म पितामह जब युद्ध में बुरी तरह से घायल होकर बाणों की शैय्या पर लेट गए थे तो कौरवों की सेना का सेनापति कर्ण को बनाया गया और उन्हें पांडवों से युद्ध लडऩे को कहा गया। युद्ध में शामिल होने से पहले कर्ण के मन में कुछ प्रश्न आए और उनका जवाब मांगने के लिए वह भीष्म पितामह के पास पहुंचे। कर्ण ने भीष्म पितामह ये यह प्रश्न किया कि जब तक वह कौरवों की सेना के सेनापति थे, तब तक उन्होंने कर्ण को युद्ध में शामिल नहीं होने दिया। आखिर क्या वजह थी कि कर्ण के जितना महान और वीर योद्धा दुर्योधन की सेना में शामिल होकर भी युद्ध लडऩे से वंचित रहा। कर्ण के इस प्रश्न का भीष्म पितामह ने जो उत्तर दिया। भीष्म पितामह ने कर्ण को इस बात का उत्तर दिया कि आखिर उसे उन्होंने युद्ध में शामिल होने की आज्ञा क्यों नहीं दी? उन्होंने कहा कि वह यह नहीं चाहते थे कि तुम जैसा महान योद्धा और महान विचारों वाला व्यक्ति अधर्मियों की ओर से लड़े। उन्होंने कहा, 'मेरे सेनापति रहते मैं ऐसा नहीं होने देना चाहता था कि तुम सूर्यपुत्र होकर और धर्म के मार्ग पर चलने वाले व्यक्ति होते हुए भी अधर्म का पालन करते हुए कौरवों की ओर से युद्ध लड़ो। मैं नहीं चाहता कि मेरे रहते हुए तुम ऐसा अधर्मपूर्ण कार्य करो, इसलिए मैंने तुमको युद्ध में शामिल नहीं होने दिया।'

भीष्म पितामह का दूसरा उत्तर

कर्ण को युद्ध में शामिल नहीं करने के पीछे भीष्म पितामह ने जो दूसरा कारण बताया वह यह था कि वह यह नहीं चाहते थे कि कर्ण अपने भाइयों के खिलाफ युद्ध लड़े। जब भीष्म पितामह ने यह बात कर्ण को बताई कि वह इसलिए ऐसा नहीं होने देना चाहते थे, तो कर्ण को यह जानकर बहुत ही आश्चर्य हुआ कि भीष्म पितामह यह जानते थे कि कर्ण कुंती का ही पुत्र है। भीष्म पितामह यह नहीं चाहते थे कि उनके सामने भाई-भाई एक-दूसरे की जाने के दुश्मन बन जाएं।