प्रदेश में अगर लागू हो गई प्रस्तावित शराब नीति तो

मध्यप्रदेश में गली-गली खुल जाएंगी शराब दुकानें

भोपाल. प्रदेश में गुणवत्तायुक्त शराब महंगी होने के कारण तेजी से फल-फूल रहा अवैध और जहरीली शराब का कारोबार सरकार के गले की फांस बन गया है। पहले उज्जैन और हाल ही में मुरैना में जहरीली शराब पीने से हुई मौतों के बाद प्रदेश की आबकारी नीति में एक बार फिर बदलाव की सुगबुगाहट सुनाई दे रही है। जहरीली शराब से हुई मौतों के मामले की जांच के लिए गठित कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रदेश में शराब का महंगा होना एवं लायसेंसी दुकानों का कम होना अवैध शराब बनाने और बेचने के कारोबार का प्रमुख कारण है। प्रदेश में एक भी शराब की नई दुकानें खुलने देने और धीरे-धीरे दुकानों की संख्या कम करने की पक्षधर सरकार एक बार फिर दुकानों की तादाद बढ़ाने की तैयारी कर रही है। प्रदेश में फिलहाल शराब की 3300 वैध दुकानें हैं। इनमें 800 दुकानें अंग्रेजी शराब की है, जबकि शेष देशी शराब की है। कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि मध्यप्रदेश में एक लाख की आबादी पर लायसेंसी शराब की चार दुकानें है। जबकि राजस्थान में एक लाख की आबादी पर 17, महाराष्ट्र में 21 और उत्तरप्रदेश में एक लाख की आबादी पर शराब की 12 वैध, दुकानें संचालित हैं। अवैध शराब के कारोबारियों को नेस्तनाबूद करने में जुटी सरकार वैध शराब दुकानों की संख्या बढ़ाने की तैयारी कर रही है। अगर आबादी के अनुपात में महाराष्ट्र की तर्ज पर लायसेंसी दुकानों की संख्या बढ़ा दी गई तो प्रदेश में शराब की 16 हजार अधिक दुकानें खुलेंगी। अगर राजस्थान का फार्मला अमल में लाया गया तो 13 हजार जबकि उत्तर प्रदेश का फार्मूला अपनाने पर प्रदेश में देशी और विदेशी शराब दुकानों की संख्या 10 हजार हो जाएगी। 

    फिलहाल देशी-विदेशी शराब की 3300 दुकानें हैं, अगर महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के औसत फार्मूले के हिसाब से भी दुकानों की संख्या बढ़ाई जाती है तो प्रदेश में शराब दुकानों की संख्या में मौजूदा से तीन गुना इजाफा होना तय है। ऐसी स्थिति में प्रदेश में चाय और दूध की तरह गली-गली शराब की दुकानें हो जाएगी। मध्यप्रदेश में अवैध या ज़हरीली शराब का कारोबार रोकने के लिये अगर लायसेंसी शराब दुकानें बढ़ाई जाती हैं तो इसका लाभ राजस्व के रुप में भी होगी। सूत्रों का कहना है कि सरकार को इसमें कोरोना के कारण हुए आर्थिक नुकसान की भरपाई का भी विकल्प नजर आ रहा है। शराब पर लगने वाले एसाईज़ टैस पर केवल राज्य सरकार का अधिकार होता है और उन्हें केंद्र को कोई हिस्सा नहीं देना होता। मध्य प्रदेश में शराब की दुकानों की नीलामी से वित्त वर्ष 2019-20 में 8521 करोड़ का राजस्व प्राप्त हुआ था। 2020-21 में सरकार ने विभाग को 9300 करोड़ रू. का टारगेट दिया था, लेकिन कोरोना के कारण नीलामी महज 6500 करोड़ रू. में हो सकी। अब 2021-22 में सरकार दुकानों की संया बढ़ाकर इसका अवैध कारोबार रोकने के साथ ही राजस्व बढ़ाने की तैयारी कर रही है।  

शिवराज सरकार शराब प्रेमी है : कमल नाथ

प्रदेश में जहरीली शराब के मामले बढ़ते जा रहे है और सरकार अवैध शराब की बिक्री करने वालों की धरपकड़ करने की बात कह रही है। इस मामले में पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ ने ट्विटर पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर प्रहार किया। उन्होंने लिखा है कि कितना शर्मनाक बात है कि जो भाजपा चुनाव के पूर्व शराबबंदी की बात करती थी, वो आज मध्य प्रदेशको सराय के दलदल में झोंकने की तैयारी कर रही हैं। अब जहरीली शराब के नाम पर शराब दुकानों को बढ़ाने की तैयारी की जा रही हैं। मैं तो शुरू से ही कहता आया हूं कि मध्यप्रदेश में भले लोगों को राशन नहीं मिले, लेकिन सरकार शराब जरूर उपलब्ध करा रही है। कोरोना महामारी में भी भले धार्मिक स्थल, आयोजन, वैवाहिक कार्यक्रम बंद रहे, कफ्र्यू लगा रहा, लेकिन शराब की दुकाने देर रात तक चालू रही। प्रदेश की शिवराज सरकार शराब प्रेमी सरकार है और शराब की दुकानें व शराब के व्यवसाय को बढ़ाने के लिए नित नए निर्णय लेने का काम करती रहती है। कमल नारा ने लिया है कि यदि प्रदेश में शराब की दुकाने बढ़ाई गई तो कांग्रेस चुप नहीं बैठेगी। हम सदन से लेकर सड़क तक इस जनविरोधी निर्णय का खुलकर विरोध करेंगे।