सरकार और प्रशासन पर भारी, दागी आबकारी अधिकारी

भोपाल. सरकार को मोटा राजस्व देने वाला प्रदेश का आबकारी महकमा घपले-घोटालों में महारथ रखने वाले कतिपय अधिकारियों के कारण बदनामी का दंश झेल रहा है। खास बात तो यह है कि ऐसे अधिकारियों के खिलाफ शिकायतों और जांच में घोटाला साबित होने के बाद तो क्या अदालत के निर्देश के बावजूद कार्यवाही ठंडे बस्ते में डाल दी जाती है। इंदौर के आबकारी उपायुक्त विनोद रघुवंशी ऐसे ही अधिकारी हैं जिनके खिलाफ न्यायालय द्वारा कार्यवाही के आदेश दिए जाने के बाद भी सरकार और विभाग दोनों ही संरक्षण देते प्रतीत हो रहे हैं। मामला भोपाल से जुड़ा है, जहां जिला आबकारी अधिकारी रहते रघुवंशी ने एक ठेका समूह की पार्टनरशिप डीड बदल दी थी, जबकि दूसरा मामला इंदौर में 42 करोड रुपए के आबकारी घोटाले का है। न्यायालय ने रघुवंशी पर धोखाधड़ी का प्रकरण दर्ज करने के निर्देश दिए थे, लेकिन न्यायालय के आदेश की अवहेलना करते हुए उन्हें जिला आबकारी अधिकारी से पदोन्नत कर उपायुक्त बना दिया गया।

रघुवंशी ने कूटरचित दस्तावेजों से इस तरह की थी धोखाधड़ी

चहेतों को लाभ पहुंचाने में दक्ष रघुवंशी पर शराब माफिया से नजदीकी के आरोप लगते रहे हैं। इसी नजदीकी के चलते रघुवंशी ने वर्ष 2002-03 में भोपाल में एक समूह द्वारा ठेके के लिए प्रस्तुत डीड में चहेतों को उपकृत करने की मंशा से बदलाव कर दिया। दरअसल तब एक समूह द्वारा पार्टनरशिप डीड बनाकर टेंडर के लिए शासन को प्रस्तुत की गई थी, लेकिन विनोद रघुवंशी द्वारा डीड में अपने स्तर पर बदलाव कर दूसरी डीड रख दी गई और इसमें समूह के एक पक्षकार का नाम हटा दिया था। इसका प्रभाव यह हुआ कि ठेका नई डीड के आधार पर हो गया और समूह का एक पक्षकार जिनका नाम रघुवंशी ने डीड से हटाया था वह ठगे गए। मामले की शिकायत हुई, जांच में रघुवंशी दोषी भी पाए, लेकिन कार्यवाही नहीं हुई तो पीडि़त पक्षकार ने अदालत की शरण ली यहां रघुवंशी के खिलाफ धोखाधड़ी का प्रकरण दर्ज कर कार्यवाही का फैसला सुनाया गया था।

अदालत के आदेश की अवहेलना

पक्षकार की याचिका पर प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट भोपाल ने आरोपी अधिकारी विनोद रघुवंशी के खिलाफ सुनियोजित तरीके से कूटरचित दस्तावेज तैयार करने के आरोप में धारा 420 और 120 के तहत प्रकरण दर्ज कर कार्यवाही के निर्देश दिए थे, लेकिन विभाग द्वारा अदालत के आदेश की अवहेलना करते हुए आबकारी विभाग ने दो सीनियर अफसरों की टीम बना कर शिकायत की जांच कराई थी। तत्कालीन एडिशनल कमिश्नर भरत कुमार व्यास और डी.आर. जौहरी की दो सदस्यीय टीम ने जांच के बाद विभाग को रिपोर्ट दी, जिसमें रघुवंशी को दोषी माना था, लेकिन तत्कालीन आबकारी आयुक्त ने जांच दल की रिपोर्ट को यह कहकर अमान्य कर दिया कि रघुवंशी द्वारा किया गया कृत्य विभागीय कामकाज संपादन का हिस्सा है। न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी भोपाल ने रघुवंशी पर कानूनी कार्यवाही करने संबंधी जो फैसला दिया था उसके खिलाफ रघुवंशी ने लोक सेवक होने के नाते सुरक्षा के लिए हाईकोर्ट का द्वार खटखटाया, लेकिन हाईकोर्ट ने पूरे मामले का बारीकी से अध्ययन करने के बाद निर्णय दिया कि रघुवंशी को सीआरपीसी की धारा 197 के अधीन सुरक्षा की कोई पात्रता नहीं है। उनके द्वारा किया गया कृत्य विभागीय या शासकीय कार्य संपादन का हिस्सा नहीं है। भोपाल न्यायालय ने धोखाधड़ी का प्रकरण दर्ज करने के निर्देश दिए, उच्च न्यायालय ने सीआरपीसी की धारा 197 के अधीन प्रकरण दर्ज करने से पूर्व शासन की अनुमति लेने की सुरक्षा देने से इंकार कर दिया इसके बावजूद रघुवंशी पर कार्यवाही नहीं की जाकर न्यायालय की अवहेलना की जा रही है। 

विभाग में चर्चाओं में विनोद

घपलों-धोटालों से बोली-दामन जैसा साथ रखने वाले रघुवंशी विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों तथा अन्य रसूखदार लोगों से संपर्क साधने, उन्हें उपकृत कर संरक्षण प्राप्त करने में दक्ष माने जाते हैं। यही कारण है कि तमाम शिकायतों और आरोपों के बावजूद कार्यवाही की बजाए उन्हें पदोन्नति और अहम् पदों पर जिम्मेदारी से नवाजा जाता रहा है। भोपाल और इंदौर में पद स्थापना के दौरान करोड़ों रुपयों के घोटाले को अंजाम देने वाले रघुवंशी को पहले राज्य स्तरीय उडऩदस्ते का प्रभारी बनाया फिर आबकारी मुख्यालय ग्वालियर में एडिशनल कमिश्नर के पद पर पदस्थ किया और ज्वाइन नहीं करने पर उनके पसंदीदा इंदौर में पोस्ट कर दिया। आला अफसरों के साथ उनके मेलजोल की चर्चाएं महकमे में पहले भी आम थी लेकिन रघुवंशी इन दिनों आबकारी आयुत के मुख्य सलाहकार माने जाते हैं। परस्पर जुगलबंदी और आए दिन की एकांती मेल मुलाकातों की चर्चा आबकारी मुख्यालय से बाहर निकलकर इंदौर-भोपाल के साथ जिलों तक में चटखारों का विषय बनी हुई है।