शिवजी ने बताया देवी पार्वती को गंगा स्नान का महत्व



कथा मिलती है कि सोमवती खान का पर्व था। गंगा घाट पर श्रद्धालुओं की भारी भीड थी। भोलेनाथ- पार्वती विचरण पर निकले थे। तभी आकाश से गुजरते समय मां पार्वती की नजर भीड़ की ओर गई। पार्वतीजी ने इतनी ज्यादा भीड़ का कारण शिवजी से पूछा। शिवजी ने बताया- आज सोमवती पर्व है। आज के दिन गंगा स्नान करने वाले लोग स्वर्ग जाते है। उसी लाभ के लिए स्नानार्थियों की भीड़ जमा है। पार्वतीजी का भीड़ को लेकर कौतूहल तो शांत हो गया। लेकिन उनके मन में एक सवाल भी आया। तब उन्होंने भोलेनाथ से पूछा कि गंगा स्नान करने वाले ये सारे लोग स्वर्ग चले गए तो क्या होगा? स्वर्ग में इतना वर्षों से लाखों लोग इस तरह गंगास्नान करके स्वर्ग पहुंच रहे हैं तो वे कहां हैं? स्वर्ग में उन्हें कहां स्थान मिला है? देवी भगवती के इस सवाल पर भोलेनाथ ने कहा कि शरीर को गीला करना एक बात है। लेकिन स्वर्ग प्राप्ति के लिए तो मन की मलिनता धोने का स्नान जरूरी है। तब माता पार्वती ने पूछा कि यह कैसे पता चलता है कि किसने शरीर धोया और किसने मन को पवित्र किया। शिवजी ने बताया कि यह उसके कर्मों से समझा जाता है। पार्वतीजी की शंका अब भी नहीं मिटी। शिवजी ने इस उत्तर से भी समाधान न होते देखकर कहा- चलो मैं तुम्हें अब सारी बात एक प्रत्यक्ष उदाहरण के माध्यम से समझाने का प्रयत्न करता हूं। लेकिन इसके लिए हमें एक स्वांग करना होगा। तब शिवजी ने कुरूप कोढ़ी का रूप लिया और राह में एक स्थान पर लेट गए। पार्वतीजी को अत्यंत रूपवती स्त्री का शरीर धरने को कहा। पार्वतीजी कुरुप कोढ़ी बने शिवजी के साथ स्नान के लिए जाते मार्ग के किनारे बैठ गई। स्नानार्थियों की भीड़ उन्हें देखने के लिए रुकती। ऐसी अलौकिक सुंदरी के साथ ऐसा कुरूप कोढ़ी। कौतूहल में सभी इस बेमेल जोड़ी के बारे में पूछताछ करते। पार्वतीजी शिवजी द्वारा रटाया विवरण सुनाती रहतीं। देवी पार्वती सभी को यह बताती कि यह कोढ़ी मेरा पति है। गंगा स्नान की इच्छा से आए हैं। गरीबी के कारण इन्हें कंधे पर रखकर लाई हूं। बहुत थक जाने के कारण थोड़े विराम के लिए हम लोग यहां बैठे हैं। राह में आते-जाते कई लोग तो देवी पार्वती को देखकर उन्हें अपने पति को छोड़कर अपने साथ चलने की बात कहते। तब पार्वतीजी को क्रोध आता, लेकिन शिवजी ने शांत रहने का वचन लिया था। वह यह सब बातें सुनकर सोच रही थी कि भला ऐसे भी लोग गंगा स्नान को आते हैं? ये स्वर्ग जाने की कामना रखते हैं। उनके चेहरे की निराशा देखते बनती थी। भोलेनाथ और माता पार्वती का यह क्रम संध्या तक चलता रहा। तभी एक सज्जन आए। पार्वतीजी ने रटा-रटाया विवरण उन्हें भी सुना डाला तो उनकी आंखों में आंसू भर आए। उन्होंने सहायता का प्रस्ताव किया और कोढ़ी को कंधे पर लादकर गंगा तट तक पहुंचाया। जो सत्तू साथ लाए थे उसमें से उन दोनों को भी खिलाया। साथ ही सुंदरी को बार-बार नमन करते हए कहा 'आप जैसी देवियां ही इस धरती की स्तंभ हैं। धन्य हैं आप जो इस प्रकार अपना धर्म निभा रही हैं। प्रयोजन पूरा हुआ। शिवपार्वती उठे और कैलाश की ओर चल पड़े। शिवजी ने रास्ते में कहा पार्वती, इतनों में एक ही व्यक्ति ऐसा था जिसने अपना मन धोया और स्वर्ग के लिए सुगम रास्ता बनाया। गंगा स्नान का महात्म्य तो सही है पर उसके साथ मन भी धोने की शर्त लगी है। तब माता पार्वती समझ गई कि आखिर क्यों इतनी संख्या में गंगा स्नान करने के बाद भी और गंगा का निर्मल महात्म्य होने के बाद भी स्वर्ग नहीं पहुंच पाते और क्यों गंगास्नान के पुण्यफल से वंचित हो जाते हैं।