भोपाल. मप्र में होने वाले नगरीय निकाय चुनाव से पहले कांग्रेस पुराने फॉर्मूले को आजमाने की कोशिश में जुट गई है। 2018-19 और उसके बाद 2020 के 28 विधानसभा सीट के उपचुनाव में कांग्रेस ने सर्वे के आधार पर उम्मीदवारों को टिकट दिया था। 2018 के चुनाव में कांग्रेस का यह फॉर्मूला सफल साबित हुआ था, लेकिन उसके बाद 2019 और 2020 के उपचुनाव में भाजपा की प्लानिंग भारी पड़ गई। अब एक बार फिर से कांग्रेस नगर निगम चुनाव से पहले सर्वे करवाने जा रही है, ताकि महापौर, अध्यक्ष व पार्षद पद के जिताऊ उम्मीदवार की तलाश की जा सके। लंबे समय से अटके नगरी निकाय चुनाव को लेकर सुगबुगाहट तेज हो गई है। भाजपा और कांग्रेस ने नगरी रणनीति बनाना शरू कर दिया है। भाजपा ने बड़ा फैसला लेते हुए नगरीय निकाय चनाव में उम्र के बंधन को खत्म करने का फैसला लिया है। नगरीय निकाय चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस की अग्निपरीक्षा होगी। इससे पहले प्रदेश के 16 खर्च की सीमा तय नगरीय नगर निगमों में भाजपा का कब्जा था। 15 नगर निगम में नेता प्रतिपक्ष कांग्रेस का था, जबकि एक सिंगरौली नगर निगम में बीएसपी का नेता प्रतिपक्ष था। सभी नगरीय निकायों का कार्यकाल खत्म हो चुका है। प्रदेश में 278 नगरीय निकायों में सरकार ने प्रशासक नियुक्त कर दिए हैं। चुनाव के जरिए फिर से चुने हुए जनप्रतिनिधियों को बैठाने की तैयारी शुरू होती नजर आ रही है। कमल नाथ सरकार के समय भोपाल में दो नगर नगरीय निकाय चुनाव के लिए राज्य निर्वाचन आयोग निगम बनाने के फॉर्मूले पर कांग्रेस काम कर रही थी और यह फॉर्मूला कांग्रेस ने नगर निगम की सत्ता प्राप्त करने की मंशा से अपना रही थी, लेकिन सत्ता परिवर्तन के बाद से कांग्रेस की मंशा पर भाजपा ने पानी फेर दिया। इतना ही नहीं महापौर और अध्यक्ष का चुनाव भी पार्षद की बजाए, अब सीधे मतदाता करेंगे। ऐसे में अब कांग्रेस को भोपाल में महापौर पद के लिए जिताऊ उम्मीदवार और अन्य नगर निगम में भी महापौर पद व नगर आयोग ने चुनावी खर्च की सीमा तय कर दी है। पालिका में अध्यक्ष पद के अलावा जीतने वाले पार्षद उम्मीदवारों के नाम तय करने के लिए सर्वे का सहारा लेना पड़ रहा है। कांग्रेस में पार्षद पद के उम्मीदवारों का फैसला जिलाध्यक्ष के माध्यम से होगा तो महापौर व अध्यक्ष के नाम का फैसला पीसीसी करेगी। ऐसे में कमल नाथ सर्वे के माध्यम से यह देख लेना चाहते है कि जिलाध्यक्ष के माध्यम से आने वाले नाम और सर्वे में कितनी निकटता है। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मात्र एक सीट और 2020 में 28 विधानसभा सीट चुनाव में सिर्फ 9 सीट पर ही जीत हासिल हो सकी। फिर भी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाथ पुराना फॉर्मूला ही नगरीय निकाय चुनाव में आजमाने की तैयारी में हैं। कांग्रेस पार्टी ने नगरी निकाय चुनाव में उम्मीदवारों की तलाश में सर्वे शुरू कर दिया है। सिर्फ पार्टी निजी एजेंसियों से ही नहीं, बल्कि पार्टी स्तर पर भी सर्वे करा रही है। साथ ही पर्यवेक्षकों को नगरीय निकाय में भेज कर, वहां के स्थानीय मुद्दों और जिताऊ उम्मीदवार की सूची तैयार करने के निर्देश दिए हैं।
पहले अध्यक्ष और महापौर उम्मीदवारों के लिए सर्वे
कांग्रेस प्रवक्ता नरेंद्र सलूजा का कहना है नगरीय निकाय चुनाव में कांग्रेस पार्टी सर्वे के आधार पर ही उम्मीदवार तय करेगी। सर्वे शुरू हो चुका है। पर्यवेक्षकों को भी नगरीय निकाय में भेजा जा रहा है। सर्वे की रिपोर्ट और पविक्षकों की रिपोर्ट के आधार पर ही उम्मीदवार तय होंगे। फिलहाल पार्टी महापौर और अध्यक्ष पद के लिए सर्वे कर रही है। नगरीय निकाय में परिसीमन, आरक्षण का काम पूरा होने पर ही पार्षद स्तर पर पीडबैक जुटाया जाएगा।
छोटे शहरों में बड़ी जीत की उम्मीद
छोटे शहरों के चुनाव में बड़ी जीत की उम्मीद लगाकर बैठी कांग्रेस को अपने सर्वे पर भरोसा है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाव नगरीय निकाय चुनाव को भी पूरी गंभीरता से लेते हुए हर स्तर की तैयारी अभी से पूरी कर लेना चाहते हैं। वही कारण है कि कांग्रेस नेताओं के साथ बैठक कर रणनीति पर अभी से चर्चा होने लगी है, लेकिन कांग्रेस के लिए मुश्किल नगरीय निकाय चुनाव में जिताऊ चेहरे की है। यही कारण है कि एक बार फिर कांग्रेस सर्वे और पर्यवेक्षकों की रिपोर्ट के आधार पर आगे बढ़ती नजर आ रही है।
खर्च की सीमा तय
नगरीय निकाय चुनाव के लिए राज्य निर्वाचन आयोग ने चुनावी खर्च की सीमा तय कर दी है। साल 2011 की जनगणना के मुताबिक 10 लाख से ज्यादा जनसंख्या वाले नगर निगम में महापौर पद के लिए खर्च की सीमा 35 लाख रुपए और 10 लाख से कम जनसंख्या वाले नगर निगम के लिए 15 लाख रुपए सीमा रहेगी। इसी तरह एक लाख से ज्यादा जनसंख्या वाला नगर पालिका परिषद के लिए चुनावी खर्च की सीमा 10 लाख रुपए और 50 हजार से 1 लाख के बीच की पालिका के लिए 6 लाख खर्च सीमा तय की गई है।