किसानों के बहाने सियासी जमीन तलाश रही सपा

नई दिल्ली. नए कृषि कानूनों को लेकर किसान आंदोलन बढ़ता ही जा रहा है। किसान संगठन संसद का विशेष सत्र बुलाकर तीनों कृषि कानून वापस लेने की मांग पर अड़े हैं। यूपी में समाजवादी पार्टी किसानों के जरिए अपनी सियासी जमीन मजबूत करने की कवायद में है, जिसके लिए सपा किसानों के पक्ष में लामबंद हो गई है। कृषि कानून के खिलाफ सोमवार को सूबे के हर जिले में सपा कार्यकर्ता किसान यात्रा निकाल रहे हैं। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव भी अब लंबे समय के बाद जमीन पर उतरकर किसानों के हक में आवाज बुलंद करेंगे। किसान हितैषी होने के दावों के बीच मोदी सरकार के खिलाफ अब तक किसान कई बार सड़क पर उतर चुके हैं, लेकिन इस बार किसानों की नाराजगी कुछ ज्यादा ही है। मोदी सरकार द्वारा लाए गए कृषि सुधार कानून को किसान अपने हित में नहीं मान रहे हैं। इसके खिलाफ किसान एकजुट होकर आवाज बुलंद करने लगे हैं। किसानों की सबसे ज्यादा नाराजगी भले ही हरियाणा और पंजाब में देखने को मिल रही है, लेकिन यूपी के किसानों में भी गुस्सा कम नहीं है। पश्चिमी यूपी के किसानों ने दिल्ली बॉर्डर को पिछले दस दिनों से सील कर रखा है।

    यूपी के विपक्षी दल किसान आंदोलन में खाद पानी भी देने का काम कर रहे हैं। समाजवादी पार्टी ने किसान आंदोलन के बहाने किसानों की नाराजगी को उठाने की तैयारी की है। सपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता व पूर्व मंत्री अताउर्रहमान ने बताया कि किसान यात्रा के जरिए हमारी पार्टी केंद्र सरकार की नीतियों के बारे में किसानों को जागरूक करेगी। सपा नए कृषि कानूनों के खिलाफ सूबे के हर जिले में किसान यात्रा निकालेगी। यूपी के किसी जिले में साइकिल तो किसी में मोटरसाइकिल तो कुछ जिलों में बैलगाड़ी से सपा कार्यकर्ता यात्रा करेंगे। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इसके लिए किसानों की आय बढ़ाओ, खेती किसानी बचाओ का नारा दिया है। अखिलेश यादव ने खुद कन्नौज की लठिया विशिष्ट मंडी समिति में किसान आंदोलन का नेतृत्व करने का ऐलान किया। वहीं, कन्नौज डीएम राकेश मिश्रा ने सपा प्रमुख के किसान यात्रा को अनुमति नहीं दी है। साथ ही यूपी पुलिस प्रशासन ने लखनऊ के विक्रमादित्य मार्ग को सील कर रखा है जहां अखिलेश यादव का आधिकारिक आवास है। ऐसे में अब देखना है कि सपा प्रमुख कन्नौज किसान आंदोलन में शामिल होते हैं कि नहीं।

यूपी में किसान राजनीति

    नए कृषि कानून के खिलाफ अखिल भारतीय किसान यूनियन 8 दिसंबर को यूपी में  चक्का जाम करेंगे। किसान यूनियन के महासचिव धर्मेंद्र मलिक ने बताया कि यूपी में किसान मंगलवार को अपने-अपने गांव कस्बे और हाईवे का चक्का जाम करने का काम करेंगे। सरकार यदि हठधर्मिता पर अडिग है तो हम किसान भी पीछे हटने वाले नहीं है। किसान सड़क पर उतरकर संघर्ष का रास्ता अख्तियार करेगा और सरकार नहीं मानी तो किसान सत्ता से हटाना भी जानते हैं। उन्होंने कहा कि सपा ही नहीं, बल्कि तमाम राजनीतिक दलों ने किसानों की ताकत को समझते हुए अपना समर्थन कर रहे है। कृषि प्रधान उत्तर प्रदेश में लगभग 70 प्रतिशत वोटर किसान, मजदूर वर्ग ही है। अस्सी व नब्बे के दशक में जरूर टिकैत की भाकियू का प्रभाव बने रहने से किसान अपनी ताकत के आगे बड़े नेताओं को झुकने के लिए मजबूर करते रहे थे। भाकियू मुख्यालय मुजफ्फरनगर जिले के सिसौली में प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों को भी दस्तक देनी पड़ती थी। महेंद्र सिंह टिकैत के बाद किसान सियासत खत्म हुई, लेकिन नए कृषि कानून के खिलाफ जिस तरह का गुस्सा किसानों में दिख रहा है, उससे सरकार बैकफुट पर है। सूबे की सरकार किसानों में साधने की कवायद कर रही है, भारत बंद के दौरान पुलिस को सती नहीं बरतने की बात कही है। किसान आंदोलन बीजेपी के लिए चिंता का सबब बन गया है, क्योंकि 2022 का चुनाव में अब ज्यादा वक्त बचा नहीं है और पंचायत चुनाव सिर पर है, ऐसे में किसान आंदोलन की नाराजगी एक बड़ी चुनौती बन सकती है।

सपा के लिए किसान ही एक जरिया

उत्तर प्रदेश में किसान किंगमेकर की भूमिका में हैं, सूबे की 300 विधानसभा सीटें ग्रामीण इलाके की हैं। खासकर पश्चिम यूपी में तो किसान राजनीति की दशा  और दिशा तय करते हैं। वरिष्ठ पत्रकार अरविंद सिंह कहते हैं कि सपा की राजनीतिक आधार किसान और पशुपालक ही रहा है। हाल के दिनों में जिस तरह से बीजेपी ने ध्रुवीकरण के जरिए ग्रामीण इलाके में अपना राजनीतिक आधार बनाने में कामयाब हुई है और उपचुनाव में कांग्रेस जिस तरह से दो सीटों पर दूसरे नंबर पर रही है, उससे सपा की चुनौती खड़ी हो गई है। ऐसे में किसान आंदोलन के पक्ष में सपा का खड़ा होना एक मजबूरी बन गई है। अरविंद सिंह कहते हैं कि यूपी में किसान एक अहम भूमिका अदा करते हैं। मौजूदा समय में किसान जिस एमएसपी गारंटी कानून की मांग कर रहे हैं, वो किसी एक प्रदेश के लिए नहीं, बल्कि देश भर के किसानों के हित में है। यूपी में धान पर किसानों को एमएसपी नहीं मिल रहा है, जिसके चलते औसतन किसान 900 रुपये क्विंटल बेच रहे हैं। एमपी सरकार ने 128 लाख टन धान की खरीदारी की है जबकि यूपी सरकार ने 55 लाख टन की खरीदारी का लक्ष्य रखा था और सिर्फ 34 लाख टन ही खरीद सकी है। ऐसे में किसानों के अंदर गुस्सा बढ़ रहा है और 2022 के विधानसभा चुनाव में अब वक्त ज्यादा नहीं रह गया है, जिसके चलते सपा किसानों के बीच अपनी पैठ बनाने के लिए उनके पक्ष में खड़ी है।