राजनैतिक हिंसा लोकतंत्र की ज्ञात शत्रु

-  नरेंद्र तिवारी 'एडवोकेट'

    यह सुनकर बड़ा आश्चर्य होता है की दुनियाँ को शांति और अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले देश भारत मे जहां महात्मा गांधी, रवीन्द्रनाथ टैगौर, पण्डित जवाहरलाल नेहरू, पण्डित दीनदयाल उपाध्याय, एपीजे अब्दुल कलाम, अटलबिहारी वाजपेयी, जयप्रकाश नारायण, राममनोहर लोहिया जैसी अनेको राजनैतिक हस्तियों ने देशसेवा और जनसेवा के लिए शांतिपूर्ण साधनों के इस्तेमाल पर जोर दिया हो,जिस देश ने अंग्रेजी हुकूमत से आजादी प्राप्त करने के लिए अहिंसक आंदोलनों को लड़ाई का महत्वपूर्ण हथियार बनाया हो। जिस धरती पर श्रीराम, नानकदेव, महावीर स्वामी, गौतम बुद्ध, ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के आध्यात्मिक विचार हिंसा का निषेध करते हुए मानवसेवा एवं विश्व कल्याण की भावना का पाठ पढ़ाते हो, उस देश मे राजनैतिक दलों के कार्यकर्ता अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए एक दूसरे पर हमला करते है, इन  हमलों में कार्यकर्ताओ की जाने भी चली जाती है, गम्भीर चोटें भी आती है, राष्ट्रीय संपत्ति का नुकसान भी होता है। आखिर सियासी दलों के हिंसा पर उतारू कार्यकर्ताओ में हिंसा का विचार क्यों आता है? क्या यह भावना देश सेवा और जनसेवा की पवित्र भावनाओं से ओतप्रोत रहती है? जिसकी प्रबलता के कारण ये राजनैतिक कार्यकर्ता इस हद तक पहुच जाते है? कैसे वह एक दूसरे की जान के दुश्मन बन जाता है। उनमें इतनी आक्रमकता, गुस्सा, या वैमनस्यता  का भाव आता कहा से है और किन कारणों से आता है।
    राजनैतिक हिंसा का ताजातरीन घटनाक्रम बंगाल में घटित हुआ जहां भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के काफिले पर हुई पत्थर बाजी की घटना में राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय सहित नेतागण चोटिल हुए, घटना के जो वीडियो सामने आ रहे है, उसे देखकर लगता है। हमला सुनियोजित था, पत्थर पूर्व से एकत्रित कर रखे गए थै। वाहन के काफिले को रोकने के लिए यातायात भी अवरुद्ध किया गया था।उक्त घटना बेहद निंदनीय है,जो लोकतंत्र की प्रतिष्ठा के अनुकूल नही कही जा सकती है।
    भारत मे राजनैतिक हिंसा का होना पीड़ादायक है,समय के साथ राजनीति में कटुता,गुस्सा,असहिष्णुता के भाव बढ़ रहे है।अब वह दिन नही रहे जब नेता अपने विरोधियों का भी सम्मान किया करते थे, एक दूसरे की बातों को ध्यानपूर्वक सुनते थे, आपस मे परस्पर सहयोग की भावनाएं थी, सौहार्दपूर्ण वातावरण था। आज राजनैतिक माहौल बदल गया है, कोई किसी को सुनने को तैयार नही है, आक्रमकता बढ़ गयी है, छोटी छोटी बातों पर राजनैतिक कार्यकर्ता हिंसा करने लगते है
    दरअसल राजनीति में अब सेवा का भाव कम हो गया है, राजनीति एक लाभप्रद व्यवसाय हो गयी है,नेतागिरी चमकते ही सम्पत्ति में गुणात्मक वृद्धि का चमत्कार राजनीति में ही सम्भव है,यहां तक कि बड़े-बड़े व्यवसायिक राजनैतिक दलों को चंदा देते है और उनसे व्यापारिक लाभ प्राप्त करते है। यही कारण है कि राजनीति पर अपराधियो का कब्जा हो गया है, सत्ता पाने के लिए कुछ भी कर गुजरने के इस भाव से राजनीति में मूल्यहीनता व्याप्त हो गयी है। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार 2014 में राजनैतिक हिंसा में 2400 जाने गयी थी, जबकि साम्प्रदायिक दंगों में 2000 लोग मारे गए थे।राजनैतिक हत्याओं के मामले में पश्चिमबंगाल, बिहार, महाराष्ट्र, केरल प्रमुख राज्य है।
    राजनीति का अपराधीकरण देश के लिए चिंता का विषय है,चुनावी सुधारो के बावजूद भी सांसद और विधानसभाओ ने आपराधिक प्रवृत्ति के नेताओ की संख्या लगातार बढ़ रही है, चुनावो में धनबल ओर बाहुबल के सहारे अपनी राजनीति चमकाने वाले नेताओ की एक ऐसी टीम भी होती है,जो इन नेताओ की कृपा से ही बड़े-बड़े ठेके प्राप्त करती है, लाभ कमाती है और चुनावो के दौरान इन नेताओं पर खर्च करती है। नेताओ की यह टीम बाहुबलियों से भी भरपूर होती है जो सत्ता प्राप्ति के लिए हिंसा का सहारा लेने से भी गुरेज नही  करती है। राजनीति में जाति और धर्म का सहारा लेकर सत्ता पर बने रहना भी राजनैतिक हिंसा का महत्वपूर्ण कारण बन चुका है। राजनीति में व्याप्त हिंसा को रोकने के लिए चुनाव आयोग ने बहुत से प्रयास भी किये जिसका  मामूली असर भी दिखाई दिया है। साम्प्रदायिक दंगों के पीछे नेताओ की भूमिका अनेको बार उजागर हुई है। राजनीति में आपराधिक नेताओ का अब भी बोलबाला है, धनबल बाहुबल से चुनाव में विजय होने की प्रवृत्ति बढ़ रही है, धर्म, जाति, सम्प्रदाय की भावनाओं को उभार कर चुनावी सफलता प्राप्त करने के इन हथकंडो को रोक लगाकर ही राजनैतिक हिंसा को रोका जा सकता है। प्रजातन्त्र में किसी भी प्रकार की हिंसा के लिए कोई जगह नही है।हिंसा के यह घटनाक्रम निंदनीय है। इन्हें रोकने के लिए ठोस उपायों की आवश्यकता है, जब तक राजनीति शुद्ध सेवा के भाव से नही होगी, राजनैतिक हिंसा को रोक पाना सम्भव नही है। इस हेतु चुनाव आयोग के साथ-साथ देश के तमाम राजनैतिक दलों को भी सार्थक पहल करना होगी हिंसा का लोकतंत्र में कोई स्थान नही है। राजनैतिक हिंसा लोकतंत्र का ज्ञात शत्रु है।