किसान आंदोलन के बीच चम्पारण की याद

-  नरेंद्र तिवारी (एडवोकेट)

बड़वानी.
 
देश की राजधानी दिल्ली किसान आंदोलन से आंदोलित नजर आ रही है। एक माह से चल रहे इस आंदोलन के परिणाम क्या निकलते है? इस बारे में अभी कह पाना मुश्किल है, किन्तु यह तो कहा ही जा सकता है। इस आंदोलन की गूंज खेतो तक सुनाई देने लगी है, केंद्र सरकार द्वारा आंदोलन को अनदेखा करना, किसानों में मतभेद पैदा करना, ओर आंदोलन को बदनाम करने की कोशिशें किसान सहित सम्पूर्ण देश देख रहा है। दिल्ली में जारी किसान आंदोलन की खबरों के मध्य भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के इतिहास में चर्चित चम्पारण किसान आंदोलन के इतिहास पर नजर दौड़ाई तो पाया कि 1917 में चम्पारण सत्याग्रह ने ही देश मे सत्याग्रह ओर अहिंसक आंदोलन की पृष्ठभूमि को तैयार किया था।

  उत्तर बिहार में नेपाल से सटे हुए चम्पारण जिले में नील की खेती की प्रथा प्रचलित थी।इस श्रेत्र में बागान मालिकों को जमीन की ठेकेदारी अंग्रजों द्वारा दी गयी थी।बागान मालिको ने तीन कठिया प्रणाली लागू कर रखी थी। तीन कठिया प्रणाली के अनुसार हर किसान को अपनी खेती के लायक जमीन के 15 प्रतिशत भाग में नील की खेती करनी पड़ती थी। दरअसल नील को नगदी फसल माना जाता था। नगदी अर्थात जिसको बेचने से अच्छी-खासी आमदनी होती थी। परंतु किसान खुद के उगाए नील को बाहर नही बेच सकता था, उन्हें बाजार से कम कीमत पर बागान मालिक को बेचना पड़ता था। यह किसानों पर अत्याचार था, उनका आर्थिक शोषण किया जा रहा था। नील की खेती किसानों की जमीन की उर्वरता को भी कम कर रही थी।
 जब नील के भाव गिरने लगे तो बागान मालिको को घाटे का सामना करना पड़ा। इस घाटे की भरपाई अंग्रेजो के इशारे पर बागान मालिक किसानों से करने लगे, किसानों पर नये-नये कर आरोपित किये गए। यदि किसान नील की खेती नही करना चाहता है तो उसे अपने मालिक को एक बड़ी राशि तवान के रूप में देनी पड़ेगी,किसानों से बेगार लिया जाता था,चम्पारण के किसानों की स्थिति अत्यधिक दयनीय थी।
  इसी दौरान 1916 के लखनऊ कांग्रेस अधिवेशन में मोहनदास करमचंद गांधी लखनऊ आए थे। यहां एक बहुत सीधे सादे किन्तु जिद्दी शख्स ने उन्हें चम्पारण के किसानों की पीड़ा ओर अंग्रेजो के अत्याचार से अवगत कराया ओर इसे दूर करने का आग्रह किया। यह शख्स बार-बार मिलकर चम्पारण के किसानों की पीड़ा के बारे में चम्पारण चलने का आग्रह गांधी जी से करते रहे जिनका नाम था राजकुमार शुक्ल जिनके आग्रह ने गांधी को चम्पारण जाने और वहां के किसानों की समस्याओं को समझने के लिए बाध्य किया और चम्पारण सत्याग्रह की महत्वपूर्ण घटना घटित हुई। गांधी ने 1917 के चम्पारण आंदोलन में सत्याग्रह ओर अहिंसा के अस्त्र पहली बार आजमाए।सत्याग्रह ओर अहिंसा के इन अचूक अस्त्रों ने चार माह में ही असर करना शुरू कर दिया और चम्पारण के किसान बागान मालिको ओर अंग्रेजो के दासता से मुक्त हुए।
   चम्पारण का किसान आंदोलन  भारत के राजनैतिक इतिहास में काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। इस आंदोलन से ही राजेन्द्र प्रसाद,आचार्य कृपलानी,मजहरुल हक,ब्रजकिशोर प्रसाद जैसी विभूतियां देश को मिल पाई। गांधी जी को महात्मा की उपाधि से इसी सत्याग्रह के बाद विभूषित किया गया यही से गांधी जी ने एक वस्त्र धारण करना तय किया था।इस पूरे घटनाक्रम का उल्लेख अपनी आत्मकथा सत्य के प्रयोग में नील का दाग में करते हुए गांधीजी ने लिखा लखनऊ अधिवेशन से पहले तक चम्पारण का नाम भी नही जानता था।नील की खेती होती है।इसका तो बिल्कुल ख्याल भी नही के बराबर था। इसके कारण हजारो किसानो को कष्ट भोगना पड़ता है। इसकी भी मुझे जानकारी नही थी।
   चम्पारण का किसान आंदोलन  औपनिवेशिक कानून के खिलाफ उठी देश की पहली आवाज बन कर उभरा था। जिसे सत्याग्रह ओर अहिंसा के अस्त्रों से लड़ा गया था।
    दिल्ली में जारी किसान आंदोलन के दौरान चम्पारण सत्याग्रह का जिक्र करने के पीछे शायद मंशा भी यही है कि सभी प्रदेशो के किसानों की समस्याऐ  अलग-अलग है। इसे खेत मे जाए बगैर समझना मुमकिन नही है। तो क्या भारत के सभी किसानों की समस्या का हल सरकार द्वारा पारित किसानों के नए कानून में समाहित है? पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, बिहार,यूपी के किसानों नजर आ रहा आक्रोश उनकी स्थानीय समस्याओ के कारण है।
 चम्पारण सत्याग्रह सरकार को तो यह सबक देता ही है कि खेती के कानून राज्यो को अपनी सुविधा एवं परिस्थितियों के अनुसार लागू करना चाहिए केंद्र को खेती का विषय राज्य की इच्छा पर छोड़ देना चाहिए।
वहीं चम्पारण दिल्ली के किसान आंदोलनकारियों को यह भी पाठ पढाता है कि सत्याग्रह ओर अहिंसा से ही आंदोलन सफलता की राह तय कर पाएगा। इन उपायों को आजमाए इसके विपरीत उपायों को रोके भी ओर करने वालो का बहिष्कार भी करे। दिल्ली का किसान आंदोलन अब तक सही दिशा में है। जिसने सत्याग्रह ओर अहिंसा के उपायों का सहारा लिया है। चम्पारण किसान आंदोलन की तरह दिल्ली का आंदोलन भी किसानों की समस्याओं को निजात दिलाने वाला हो, सरकार और किसान बैठकर किसानों की समस्या का उचित निराकरण  कर पाए ऐसी आशा की जानी चाहिए।सत्याग्रह ओर अहिंसा के साधनों का प्रयोग आंदोलन कारी ओर सरकार दोनो को समान रुप से करना चाहिए।