शिवसेना का वार

भारत बंद रहा सफल, किसान नहीं बंगाल में जो बीजेपी कर रही वो 'अराजकता'

मुंबई. किसानों द्वारा बुलाए गए भारत बंद के मसले पर कई राजनीतिक दलों ने एकजुटता दिखाई और केंद्र सरकार से कृषि कानून वापस लेने को कहा। शिवसेना के मुखपत्र सामना में भी किसानों के भारत बंद को सफल करार दिया गया। सामना में लिखा गया कि बंद सफल हुआ, यह सत्य मोदी सरकार अथवा भाजपा प्रवक्ताओं को हजम नहीं होगा। जिसे सरकारी लोग कृषि सुधार कानून कहते हैं, वह किसानों की दृष्टि में काला कानून है। सामना में लिखा गया कि अगर किसान अपनी मांगें रखने के लिए संघर्ष करते हुए सड़कों पर उतरते हैं, ये अराजकता है, ऐसा सरकारी पक्ष को लगने लगता है, तब पिछले दरवाजे से तानाशाही की राह पर चल रहे हैं, इसका विश्वास रखें। 1975 में आपातकाल लादते समय विरोधियों के प्रति इंदिरा गांधी की ऐसी ही नीति थी, विरोधी देश में अराजकता फैला रहे हैं, ऐसा उनका कहना था। इस अराजकता का अर्थ क्या था? शिवसेना ने कहा कि बंद का आह्वान किया है किसान संगठनों ने, इसमें किसी भी राजनैतिक पार्टी का संबंध नहीं है। विपक्ष ने सिर्फ किसानों को समर्थन दिया है, इसमें क्या गलत किया। असल में, भारतीय जनता पार्टी ने फिलहाल पश्चिम बंगाल में जो राजनीतिक बवाल किया है, हजारों लोगों को सड़क पर उतारकर जो दहशत मचाई है, जातीय, धार्मिक उन्माद मचाया है, रक्तपात और हिंसाचार कराने की धमकी दी जा रही है असल में उसी पर अराजकता शब्द लागू होता है। सामना में कहा गया कि विदेशी राष्ट्रप्रमुखों ने भी हिंदुस्तान के किसान आंदोलन का समर्थन किया है। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन टूडो ने 'कनाद्य एक शांतिपूर्ण आंदोलन करने वालों के अधिकार का समर्थन करता है' ऐसा कहते हुए किसान आंदोलन को समर्थन दिया है। 36 ब्रिटिश सांसदों ने भी आंदोलन को समर्थन दर्शाया है, इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र के महासचिव और प्रवक्ता एंटोनियो गुटरेस ने लोगों को शांतिपूर्ण ढंग से आंदोलन करने का अधिकार है', ऐसी टिप्पणी की है। लेख में लिखा गया कि किसानों के आंदोलन में चीन व पाकिस्तान ने मदद की तो है ही, परंतु उनके द्वारा आर्थिक सहयोग भी हो रहा है, ऐसी छरछरी छोड़कर भाजपा ने अपने ही दिमाग का दिवालियापन दिखा दिया है। अब दिल्ली में हिंदुस्तान बंद से पहले पांच आतकियों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है।