चालीस करोड़ के घोटोले में नहीं मिल रही अभियोजन की स्वीकृति

भ्रष्टाचारियों को बचाने में लगा सहकारिता विभाग

भोपाल. प्रधानमंत्री ऋण माफी योजना के तहत करीब चार हजार फर्जी किसानों के नाम पर 40 करोड़ रुपए डकारने वाले जिला सहकारी बैंक तथा सेवा सहकारी समितियों के पदाधिकारियों के खिलाफ न्यायालय में चालान पेश करने के लिए सहकारिता विभाग अनुमति नहीं दे रहा है। मामला 2008 का जिला सहकारा बैंक होशंगाबाद का है। ईओडब्ल्यू ने धोखाधड़ी के मामले में अपराध दर्ज किया था।

ईओडब्ल्यू सूत्रों के मुताबिक केन्द्र सरकार द्वारा 2008 में प्रधानमंत्री ऋण माफी योजना के तहत गरीब किसानों के ऋण माफ करने की योजना प्रारंभ की थी। इस योजना के तहत होशंगाबाद जिला सहकारी बैंक तथा हरदा, टिमरनी, खिड़किया आदि कस्बों की 18 सेवा सहकारी समितियों के तत्कालीन पदाधिकारियों (सहायक सेवा प्रबंधक) ने करीब चार हजार ऐसे किसानों के नाम ऋण माफी योजना में शामिल कर लिए जो समितियों के सदस्य ही नहीं थे। इनके नाम से करीब चालीस करोड़ रुपए ऋण माफी के नाम पर जमा कराकर उक्त राशि हड़प ली गई। इस मामले में ईओडब्ल्यू में शिकायत की गई थी। ईओडब्ल्यू ने बैंक तथा सेवा सहकारी समितियों से ऋण माफी वाले किसानों की तलाश की तो किसान ही नहीं मिले और अधिकांश फर्जी किसानों के मामले सामने आए। फर्जी फोटो तथा अन्य दस्तावेजों के आधार पर उन्हें सदस्य बनाया गया और बैंक खाते खोले गए। कई ऐसे किसान भी थे, जो सेवा सहकारी समितियों के सदस्य तो थे, लेकिन उनके ऋण ही माफ नहीं किए और उनके नाम की राशि भी हड़प ली। यह पूरा घोटाला बैंक अधिकारी और सेवा सहकारी समितियों के पदाधिकारियों की मिलीभगत से किया गया। जांच उपरांत ईओडब्ल्यू ने बैंक के तत्कालीन महाप्रबंधक, शाखा प्रबंधक समेत सेवा सहकारी समितियों के तत्कालीन 20 सहायक प्रबंधकों के खिलाफ धोखाधड़ी, पद का दुरुपयोग आदि के तहत अपराध दर्ज किया था। सेवा सहकारी समिति तथा बैंक द्वारा जिन किसानों के नाम ऋण माफी के तहत चालीस करोड़ रुपए जमा कराकर हड़पे गए, उनमें अधिकांश तो किसान ही नहीं थे। उनको योजनाबद्ध तरीके से सहकारी समितियों में फर्जी सदस्य बनाया और उनके बैंक खाते खोले गए। इन खातों में ऋण की राशि जमा कराई और स्वयं ने निकालकर हड़प ली।
    सूत्रों का कहना है कि सेवा सहकारी समितियों के कुछ सहायक शाखा प्रबंधकों ने राशि भी जमा कर दी थी, लेकिन मामला तो धोखाधडी और पद के दुरुपयोग करना अनिवार्य है। न्यायालय द्वारा निर्णय लिया जाएगा। ईओडब्ल्यू ने कई साल पहले इस मामले में अभियोजन का प्रस्ताव सहकारिता विभाग को भेजा, लेकिन अभियोजन की स्वीकृति देने में आना-कानी की जा रही है। विभाग को लगातार रिमांड लेटर भी भेजे जा रहे हैं। ईओडब्ल्यू के विवेचक निरीक्षक द्वारा बार-बार विभागीय अधिकारियों को पत्राचार कर अभियोजन की स्वीकृति मांगी जा रही है, लेकिन विभाग चुप्पी साधे है।