भोपाल. कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया का एक और दौरा पूरा हो गया। उनकी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित भाजपा नेताओं से मुलाकात भी हो गई, लेकिन उनके समर्थकों के मंत्री बनने का मामला जहां का तहां अटका है। सिंधिया ने पहले की तरह फिर सरकारी टाइप घिसा-पिटा बयान दिया कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष, मुख्यमंत्री तथा संगठन जब तय करेगा, मंत्रिमंडल विस्तार हो जाएगा। उनके कट्टर समर्थक गोविंद सिंह राजपूत एवं तुलसी सिलावट फिर मनमसोस कर रह गए। अब मंत्री बनने एवं राजनीतिक नियुक्ति के इंतजार में बैठे सिंधिया समर्थक विधायकों एवं पूर्व विधायकों में ही बेचैनी नहीं हैं, उनके साथ जुड़े अन्य समर्थक भी इसी स्थिति से गुजर रहे हैं। निकाय एवं पंचायतों के चुनाव नजदीक हैं। उन्हें लग रहा है कि जब सिंधिया के साथ जुड़े राजपूत एवं सिलावट जैसे मंत्री नहीं बन पा रहे तो निकाय और पंचायत चुनावों में टिकट के लिए महाराज क्या कर पाएंगे। उन्हें लगने लगा है कि स्थानीय चुनाव में भाजपा पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं-नेताओं को ही तवज्जो देगी। लिहाजा, वे अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर चिंतत होने लगे हैं। सिंधिया से उनके मोहभंग के हालात बनने लगे हैं। इसलिए डैमेज कंट्रोल के तहत सिंधिया को जल्दी कुछ करना होगा।
सड़क छाप भाषा का इस्तेमाल कितना जरूरी
पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के कार्यकाल में माफिया के खिलाफ कार्रवाई चल रही थो, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी इसे जारी रखे हुए हैं। कमलनाथ माफिया को खत्म करने की बात कर रहे थे, शिवराज भी यही दावा कर रहे हैं। कार्रवाई भले चीन्ह-चीन्ह कर हो रही है, लेकिन इसके खिलाफ कोई नहीं है। आखिर, जिनकी संपत्ति में बुलडोजर चल रहा है वे हैं तो गुंडे-माफिया। संपत्ति भी गैरकानूनी तरीके से कमाई गई है, लेकिन इस समय कार्रवाई से भी ज्यादा चर्चा में है, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की भाषा। सभाओं में वे जिस भाषा का उपयोग कर रहे हैं, उसे सड़क छाप की श्रेणी में माना जाता है। आमतौर पर गुंडे-मवाली ऐसी भाषा बोलते हैं। जैसे, होशंगाबाद जिले में शिवराज ने कहा, 'अपन खतरनाक गूड में हैं। गुंडों, सुन लो रे! मध्यप्रदेश छोड़ देना, वर्नां 10 फीट नीचे जमीन में गाड़ दूंगा।Ó इससे पहले भी वे माफिया के खिलाफ कारवाई को लेकर इसी तरह की भाषा बोलते आ रहे हैं। लोग सवाल उठा रहे हैं कि मुख्यमंत्री जैसे पद पर बैठे नेता को क्या ऐसी भाषा का इस्तेमाल करना जरूरी है। यह सवाल इसलिए भी क्योंकि शिवराज शालीन नेता हैं। उनसे ऐसी भाषा की उम्मीद नहीं की जाती।
माफिया के संरक्षणदाताओं पर मेहरबानी क्यों
मुख्यमंत्री लगातार ललकार रहे है कि गुंडे-माफिया प्रदेश छोड़कर चले जाएं वर्ना उन्हें जमीन के इतना नीचे गाड़ा जाएगा कि वे बाहर नहीं आ पाएंगे। हालांकि मुख्यमंत्री सहित हर कोई जानता है कि जिसने प्रदेश में संपत्ति कमाई है। जिनका परिवार, घर यहां है, वे प्रदेश को छोड़कर जाने वाले नहीं। इसलिए ऐसी ललकार को जुमले से ज्यादा कुछ नहीं माना जा रहा। फिर भी प्रदेश में माफिया के खिलाफ कार्रवाई तो हो रही है। ऐसे में लोगों के अंदर सवाल उठ रहा है कि यह माफिया जिनके संरक्षण में फला-फूला, जिन अफसरों-मंत्रियों- नेताओं की मदद से अवैध संपत्ति अर्जित की, क्या वे माफिया के साथ बराबर के भागीदार एवं दोषी नहीं है। माफिया को मदद कर इन्होंने भी अकूत अवैध संपत्ति कमाई है। यदि वे बराबर के दोषी हैं तो सरकार उन्हें चिन्हित कर कार्रवाई क्यों नहीं कर रही। उनके भवनों एवं संपत्ति पर बलडोजर क्यों नहीं चलाया जा रहा। लोगों की अपेक्षा है कि मुख्यमंत्री अगले चरण में इन संरक्षणदाताओं के खिलाफ भी अभियान चलाए, ताकि भविष्य में कोई माफिया को पनपाने में मदद की जुर्रत न कर सके।
नरोत्तम की भविष्यवाणी पर सज्जन की मुहर
प्रदेश में जब 28 विधानसभा सीटों के अचनाव के लिए प्रचार अभियान चल रहा था, तब से ही प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा भविष्यवाणी कर रहे थे कि उस चुनाव में हार के बाद कमलनाथ दिल्ली चले जाएंगे। उप चुनाव निवट जाने के बाद से कमलनाथ भोपाल में ही है। प्रदेश अध्यक्ष के साथ नेता प्रतिपक्ष पद का दायित्व भी उनके पास है। फिर भी नरोत्तम अपने दावे पर कायम है। उनका कहना है कि कमलनाथ चाहे जो करें, लकिन प्रदेश की राजनीति नहीं करेंगे। कमलनाथ ने अब तक दिल्ली जाने की बात नहीं कहीं। इसके विपरीत उप चुनाव के बाद हुई कांग्रेस विधायक दल की बैठक में उन्होंने कहा था कि वे प्रदेश में ही रहकर राजनीति करेंगे। उन्होंने संगठन के पुनर्गठन एवं निकाय चुनावों की तैयारी प्रारंभ कर दी थी। पर अब नरोत्तम की भविष्यवाणी सच साबित होतो दिख रही है। उनके दावे पर कमलनाथ के कट्टर समर्थक पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा ने मुहर लगा दी है। उन्होंने कहा है कि कमलनाथ की दिल्ली में जरूरत है। नेतृत्व केंद्र में उन्हें कोई महत्वपूर्ण जबाबदारी सौंप सकता है। अहमद पटेल एवं मोतीलाल वोरा के निधन के बाद कमलनाथ जैसे नेता की दिल्ली में जरूरत है। ऐसा हुआ तो नरोत्तम की भविष्यवाणी सच सावित होना तय है।
कमल नाथ के सर्वे और दावे पर सवाल
कांग्रेस के अंदर पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ की कार्यशैली पर सवाल उठाने वाले पार्टी नेताओं की संख्या बढ़ती जा रही है। वजह मुख्यमंत्री बनने के बाद हर मोर्चे पर उनका लगातार असफल होना है। अब चंबल-ग्वालियर अंचल के पूर्व मंत्री लाखन सिंह यादव मैदान में आए हैं। उन्होंने सार्वजनिक तौर पर एक सभा में आरोप लगाया कि सर्वे के आधार पर टिकट देने के कारण पार्टी की उपचुनावों में हार हुई है। यदि टिकट वितरण में सावधानी बरती जाती तो नतीजे कुछ और आते। यादव ने कहा कि पहले सर्वे के आधार पर टिकट दिए गए, इसके बाद खुद कमलनाथ ने दावा किया कि 28 में से 27 सीटें जीतेंगे। उन्होंने कहा कि जब इतना बड़ा नेता यह कहेगा तो कोई क्या सवाल उठाएगा। पर सर्वे और दावा सब फेल हो गया। लाखन सिंह की गिनती कमलनाथ के समर्थक नेताओं में होती रही है। उनके कारण ही वे सिंधिया के साथ नहीं गए। हालांकि लाखन के बयान को युकां के चुनाव से जोड़कर भी देखा जा रहा है। उनका बेटा संजय यादव भी युकां प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव लड़ रहा था, लेकिन कमलनाथ सहित किसी बड़े नेता का उसे समर्थन नहीं मिला। इसलिए लाखन भले सच बोल रहे हों, लेकिन उनके बयान को इस चुनाव से उपजी पीड़ा का नतीजा भी माना जा रहा है।