क्या राजनीति में नहीं रुक सकेगी अपराधियों की इंट्री

हैदराबाद. कुछ विसंगतियों को शुरुआती अवस्था में ही यदि दूर नहीं किया गया तो बीतते समय के साथ वे असाधारण हो जाएगी और तब उन्हें नियंत्रित करना बहुत मुश्किल होगा। भारतीय लोकतंत्र में आपराधिक राजनीति चर्चा का एक बिंदु है। राजनीतिक दलों की आपराधिक राजनीति की बदरूपता ने देश के लोकतंत्र को सतही बना डाला है जो वास्तव में शर्मनाक है। चौदहवीं लोकसभा में अपराधिक रिकॉर्ड वाले प्रतिनिधियों की संख्या 24 फीसद थी जो 15वीं लोकसभा में 2014 बढ़कर 30 फीसद हो गई। 16वीं लोकसभा में कहा इसमें और बढ़ोतरी हुई और 34 फीसद हुई और वर्तमान लोकसभा में तो ऐसे सदस्यों की संख्या तो 43 फीसद हैं। इस खराब स्थिति में सुधार के लिए लोकहित याचिका के जरिए निवगन अदालत में लड़ाई चल रही है। इस पर केंद्र का सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश नवीनतम हलफनामा सोचने वालों को परेशान कर रहा है।

मोदी ने दिया था बयान

प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में वर्ष 2014 के अप्रैल में नरेंद्र मोदी ने एक बयान में कहा था कि भारतीय लोकतंत्र को आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों से मुक्त करने की आवश्यकता है, मैं राजनीतिक सफाई के लिए आया हूं। जब वर्ष 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने नियमन दिया था कि जेल में बंद लोग वोट देने का अधिकार खो देंगे और ऐसे लोगों को चुनाव लडने का अधिकार भी नहीं रहेगा तो तत्कालीन संप्रंग की सरकार इसे समाप्त करने के लिए युद्ध स्तर पर सक्रिय हो गई। 

चुनाव आयोग ने किया था स्पष्ट

जबकि चुनाव आयोग ने स्पष्ट कर दिया है कि दोषी लोक सेवकों को जीवनभर के लिए निष्कासित कर दिया जाना चाहिए तो केंद्र सरकार इससे सहमत हो गई और घोषणा की कि कानून के लिए हर कोई समान है, लेकिन काम इसके उल्ट किया। सरकार ने दावे के साथ कहा कि सरकारी सेवकों की सेवाएं कुछ-कुछ सेवा शर्तों के अधीन है, इसके विपरीत जनप्रतिनिधि देश और लोगों की सेवा के लिए प्रतिबद्ध है। केंद्र सरकार की ओर से कहा गया कि जनप्रतिनिधित्व कानून के नियमों और विनियमों में संशोधन की जरूरत नहीं है। केंद्र सरकार ने दोषी करार दिए गए नेताओं पर हमेशा के लिए प्रतिबंध अप्रत्यक्ष रूप से राजनीति में प्रवेश करने या किसी राजनीतिक दल में कोई प्रमुख पद स्वीकर करने से रोकने के लिए दायर किए गए मुकदमे में शामिल जनहित की पूरी तरह से अनदेखी की।

जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा पर डालें एक नजर

जनप्रतिनिधित्वकानून की धारा 8(3) यह कहती है किजो संसद सदस्य दोषी है और जिन्हें दो साल कारावास की सजा सुनाई गई है वह उसी तारीख से अयोग्य हो जाएगा और उसकी रिहाई की तारीख से उसे छह साल के लिए अयोग्य ठहराया जा सकता है। न्यायपालिका ने इस विवाद पर केंद्र सरकार का रुख पूछा कि संविधान के अनुच्छेद 14 की शर्तों के अनुसार यह अनुचित है कि एक जनप्रतिनिधि के दोषी होने पर उसे एकनिश्चित अवधि के लिए निष्कासित किया जाता है, जबकि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के साथ-साथ अन्य कानूनों के तहत दोषी पाए गए सरकारी मुलाजिमों को जीवनभर के लिए बर्खास्त कर दिया जाता है।