नरेंद्र तिवारी 'एडवोकेट'
सेंधवा (बड़वानी). मध्यप्रदेश में सीसीआई की कपास खरीदी की प्रक्रिया से कपास उधोग पुनः गुलजार होता दिखाई दे रहा है। निमाड़ अंचल के खरगोन, बड़वानी, बुरहानपुर, खण्डवा एवं धार जिलो की मंडियों में सीसीआई की खरीदी से मंडियाँ एवं जिनिंग फैक्ट्रियाँ आबाद दिखाई दे रही हैं। बड़वानी जिले का सीमावर्ती शहर सेंधवा सफेद सोने यानी कपास उधोग के बड़े केंद्र के रूप में पहचान रखता है। एक जमाने में इस शहर में 60 से 70 जिनिंग फैक्ट्रियां संचालित होती थी। रातभर कारखाने चलते रहते थे। इन जिनिंगो मे हजारों श्रमिको को रोजगार भी मिलता था अनेकों अन्य व्यवसाय भी फल फूल रहे थे।
यह सिलसिला 1985 से 2000 तक जारी रहा फिर अचानक कपास उधोग को जैसे नजर सी लग गयी, लगातार जिनिंगो-प्रेसिंगो की संख्या कम होने लगी। यह संख्या हर साल घटी ओर वर्तमान में 15 से 20 कारखाने चालू स्थिति में है। इन कारखानों को सीसीआई की खरीदी ने पुनः गुलजार कर दिया है। ऐसा सतही तौर पर नजर आ रहा है। कपास उधोग पर छाए काले बादल क्या छटने लगे है? क्या सीसीआई की खरीदी तक ही यह बहार कायम है? इन प्रश्नों पर गौर करना बेहद जरूरी है। निमाड़ अंचल में कपास उधोग का जीवित रहना किसानो, मजदूरो, व्यवसायियों के लिए बहुत जरूरी है, औधौगिक तरक्की से ही असल उन्नति का एहसास होता है।
निमाड़ अंचल में कपास की बड़ी मंडियों में खरगोन ओर सेंधवा की कपास मंडी हमेशा सुर्खियों में रही है।खरगोन मंडी निमाड़ की कपास उपज से चलती रही है। जबकि सेंधवा की मंडी 80 प्रतिशत महाराष्ट्र से आई कपास पर ही निर्भर रहने के कारण एवं प्रदेश सरकार की कपास उधोग के प्रति अस्पष्ट नीति के परिणामस्वरूप कपास व्यसाय कम होता चले गया। इस स्थिति में शहर के व्यवसायी महाराष्ट्र में अपना कारोबार करने लगे यह क्रम लगातार बढ़ते चले गया इसी प्रकार के हाल बुरहानपुर, खण्डवा के कपास व्यवसाय के भी रहे खरगोन के अनेकों व्यापारी भी महाराष्ट्र व्यवसाय करने चले गए।
सफेद सोने के कारोबार में प्रादेशिक पहिचान रखने वाले सेंधवा शहर के औधौगिक श्रेत्र वरला रोड़ पर विगत एक माह से कपास से भरे वाहनों की लंबी कतारें देखने के बाद अनेको पुराने व्यापारियों को 90 का दशक याद आ गया। शहर की कृषि उपज मंडी में भी वीरानी छाई हुई थी उक्त वीरानी को सीसीआई कि खरीदी ने दूर जरूर किया है। सीसीआई की खरीदी से गुलजार दिख रहे कपास कारखानों का यह दौर लगातार कायम रहेगा या यह तात्कालिक शोर है इस विषय पर मध्यांचल कॉटन जिनर एन्ड ट्रेड एशोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष मनजीत सिंह चावला ने बताया कि सीसीआई की खरीदी से किसानों को अच्छे भाव मिल रहे है जिससे श्रेत्र का किसान कपास की फसल के प्रति आकर्षित होगा जिससे इस व्यवसाय में निमाड़ आत्मनिर्भर बनेगा। उन्होंने निमाड़ के कपास व्यवसाय के पुनरुत्थान के लिए सरकार द्वारा महाराष्ट्र की तरह आकर्षक सब्सिडी दिए जाने, बिजली की दरों को घटाए जाने पर बल दिया। उनका यह भी कहना था कि सीसीआई की खरीदी सेअनुबंधित जिनिंग फैक्ट्रियों को जॉब कार्य मिला है शेष जिनिंगो को इसका लाभ नही मिल रहा है।
सीसीआई की कपास खरीदी के बाद से शहर में जिनिंग फैक्ट्रियों में चहल-पहल बढ़ गयी है। कपास के ऊंचे-ऊंचे ढेर दिखाई देने लगे है और श्रमिको को भी कामकाज मिलता दिख रहा है।सीसीआई के सहायक प्रबन्धक मधुसूदन पाटीदार के अनुसार कपास खरीदी की शुरुआत से 26 नवम्बर तक 66 हजार 552 क्विंटल कपास की खरीदी की जा चुकी थी। इस खरीदी से शहर की 9 जिनिंग फेक्ट्रियो में जॉब कार्य किये जा रहे थे, जिसमे गाँठो का निर्माण किया जाना शामिल है। किसानों को भुगतान में देरी की समस्या पर उनका कहना था कि इसमें सुधार किया जा रहा है।
श्रेत्र का कपास उधोग महाराष्ट्र राज्य पर आश्रित है। जो शहर के व्यापार का करीब 80 प्रतिशत है। युवा व्यवसायी प्रिंस मंगल कहते है कि सेंधवा विधानसभा में कृषक कपास की पैदावार कम करते है, जिसके पीछे सिंचाई के साधनों का अभाव है। इसके साथ ही कपास योग्य जमीन का अभाव भी है।
श्री मंगल के अनुसार महाराष्ट्र में सरकार खरीदी करती है जिसमे किसानों को लंबे समय तक भुगतान नही मिलता है, नकदी की आस में कृषक महाराष्ट्र से सीमा स्थित शहर सेंधवा पहुचते है।
सीसीआई के प्रति किसानों का आकर्षण कपास के भाव के कारण भी है जो 5400 से 5700 रु तक है।सीसीआई को लम्बा चलने के लिए किसानों को अतिशीध्र भुगतान करना होगा सेंधवा सहित खेतिया में भुगतान में देरी से किसान चिंतित है।
अब जबकि सीसीआई ओर व्यापारियों के भाव मे अंतर कम होता जा रहा है महाराष्ट्र में भी सीसीआई खरीदी शुरू करने जा रही उसके बाद क्या सेंधवा मंडी में महाराष्ट्र का कपास इस गति से आता रहेगा यह प्रश्न भी विचारणीय है।
श्रेत्र में कपास उधोग को विकास के नवीन रास्तो की तलाश है। फिलहाल सीसीआई की खरीदी ने मंडी, जिनिग-प्रेसिंग, किसानो एवं
श्रमिको के कार्य मे तेजी ला दी है। निमाड़ के कपास व्यवसाय को जिन सुविधाओ की दरकार है उसे लेकर प्रदेश सरकार ने तत्परता दिखानी चाहिए क्योंकि श्रेत्र की व्यापारिक उन्नति से ही निमाड़ अंचल में खुशहाली लाई जा सकती है।