पैसों का नहीं इंतजाम, योजना कैसे चढ़े परवान


भोपाल. आत्मनिर्भर मप्र का रोडमैप राज्य सरकार ने तैयार कर लिया है। इस रोडमैप के तहत अगले दो वर्ष में प्रदेश में सौर ऊर्जा का उत्पादन 10 हजार मेगावाट किया जाना है। इस योजना को परवान चढ़ाने के लिए और प्रदेश में परंपरागत बिजली के साधनों पर आम लोगों के साथ ही किसानों की निर्भरता को कम करने के लिए राज्य सरकार गैर परंपरागत बिजली के उत्पादन और दोहन को बढ़ावा दे रही है। ऐसी ही योजना है सोलर पंप योजना और रूफटॉप योजना , लेकिन सरकार के इस रोडमैप को पूरा करने में पैसों की कमी बड़ी बाधा बन गई है। अब सवाल यह है कि जब पैसों का ही इंतजाम नहीं, तो फिर योजना आखिर परवान कैसे चढ़ेगी? राज्य सरकार ने वर्ष 2022 तक प्रदेश में एक लाख सोलर पंप लगाने की योजना तैयार की है। यह योजना आत्मनिर्भर मप्र के रोडमैप का ही हिस्सा है, जिसके तहत प्रदेश में सोलर पंप को बढ़ावा दिया जाना है, जिससे कि किसानों को सस्ती और आसानी से बिजली सुलभ हो सके। इस समय प्रदेश में महज 20 हजार 500 सोलर पंप स्थापित गए हैं। इस लिहाज से देखें तो अगले दो वर्ष में मौजूदा क्षमता में पांच गुना तक बढ़ोतरी करना होगा यानी प्रतिवर्ष 50 हजार सोलर पंप लगाना होगा यह मौजूदा क्षमता से लाई गुना तक अधिक है। अब इतना अधिक लक्ष्य आखिर हासिल कैसे होगा, ऐसे समय जब नवीन एवं नवकरणीय ऊर्जा विभाग के पास पैसों का जबर्दस्त संकट है। किसानों की परंपरागत बिजली पर निर्भरता को समाप्त करने के लिए मुख्यमंत्री सोलर पंप योजना शुरू की गई थी योजना के तहत खेतों में पंप लगाने पर राज्य सरकार किसानों को अनुदान देती है, जिससे कि वे सोलर पंप लगाने के लिए प्रोत्साहित हों राज्य सरकार योजना के तहत कुल लागत का 50 फीसदी तक किसानों को अनुदान देती है, लेकिन इस योजना पर भी पैसों का संकट आ खड़ा हुआ है। राज्य सरकार के लिए यह योजना कितनी प्राथमिकता का विषय था, यह इससे ही समझा जा सकता है कि पिछले वर्ष इसके लिए 186 करोड़ 85 लाख रुपए से अधिक का इंतजाम किया गया था, लेकिन इस बार तो महज 50 करोड़ रुपए का ही इंतजाम किया गया है, जो कि पिछले वर्ष के मुकाबले 70 फीसदी तक कम है। यही स्थिति रूफटॉप योजना की भी है। प्रदेश में लोगों को बिजली के मामले में आत्मनिर्भर बनाने के लिए राज्य सरकार ने रूफटॉप योजना शुरू की थी। इस योजना के तहत शासकीय और अशासकीय भवनों के रूफ में सोलर के माध्यम से बिजली बनाई जाना थी। जिससे कि परंपरागत बिजली की निर्भरता को कम किया जा सके। योजना के तहत सभी जिला मुख्यालयों में स्थित बड़े शासकीय कार्यालयों को इस योजना के तहत स्वयं की बिजली का उत्पादन करना था। इसके लिये बाकायदा अनुदान देने का भी प्रावधान किया गया था। दरअसल सोलर के माध्यम से छत पर बिजली बनाने की तकनीक लगाने में खर्च अधिक आता है। इसे देखते हुए राज्य सरकार ने इसे प्रोत्साहित करने के लिए अनुदान भी देने की योजना तैयार की थी, लेकिन यह योजना भी परवान चढ़ने से पहले ही धराशायी हो गई है। जब सरकार ही सरकारी भवनों में रूफटॉप योजना पर अमल नहीं कर पा रही है तो फिर निजी भवनों में तो भुल ही जाएं। व्यावसायिक कॉम्पलेक्स सहित अन्य निजी भवनों में भी इस योजना के तहत घर की छतों पर बिजली पैदा की जाना थी। बताया गया था कि इस योजना के तहत जरूरत से ज्यादा बिजली का उत्पादन होने पर वह बिजली बेच भी सकेंगे, लेकिन जैसा होता है कि घोषणा करना और कागजों पर योजना तैयार करना हमेशा आसान होता है, उतना ही मुश्किल इन योजनाओं पर अमल करना होता है। रूफटॉप योजना के मामले में भी ऐसा हुआ है।


पैसों की कमी से बंद हो गई योजना


पिछले वर्ष उम्मीद बंधी थी कि यह योजना परवान चढ़ेगी और प्रदेश में सरकारी के साथ ही निजी भवनों में भी स्पटॉप की बिजली बनेगी, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। पिछले वर्ष रूफटॉप योजना के लिए 47 करोड़ 74 लाख रुपए से अधिक राशि का इंतजाम नवीन एवं नवकरणीय ऊर्जा विभाग के लिए किया गया था। इस राशि का प्रावधान करने के बाद भी प्रदेश में व्यापक स्तर पर रूफटॉप योजना को बढ़ावा नहीं मिल सका। अब तो इस योजना के दम तोड़ने की नौबत आ गई है। राज्य सरकार ने इस बार इस योजना के लिए राशि का इंतजाम ही नहीं किया है। केवल प्रतीकात्मक रूप से तीन हजार रुपये का इंतजाम कर उम्मीद की लौ जरूर बरकरार रखी है कि हो सकता है। भविष्य में यह योजना फिर धरातल पर उतर जाए, लेकिन फिलहाल तो यह बंद हो गई है।