काली माता का यह प्रसिद्ध मंदिर देवी मां के 52 शक्तिपीठों में से एक है। मान्यता है कि माता सती के पिता दक्ष ने यज्ञ में शिवजी का अपमान किया था। इससे दुखी होकर सती ने यज्ञ कुंड में कूदकर अपने शरीर का त्याग कर दिया था। इसके बाद शिवजी देवी के मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रह्मांड में भटकते रहे। इस दौरान जहां-जहां देवी के अंग गिरे थे, वहां-वहां शक्तिपीठ स्थापित हो गए। पावागढ़ में देवी सती के दाहिने पैर का अंगूठा गिरा था। यहां दक्षिणमुखी काली मां की मूर्ति है। ऐसी मूर्ति का तांत्रिक पूजा में बहुत अधिक महत्व माना जाता है। इस क्षेत्र में मान्यता प्रचलित है कि ये मंदिर श्रीराम के काल का है। यहां भगवान श्रीराम के पुत्र लव-कुश और विश्वामित्र आए थे। ऋषि विश्वामित्र ने इस मंदिर की स्थापना की थी। यहां बहने वाली नदी का नाम भी उन्हीं के नाम पर विश्वामित्री पड़ा है। पावागढ़ पहाडियों के नीचे चंपानेरी नगर है। इस नगरी को महाराज वनराज चावड़ा ने अपने मंत्री के नाम पर बसाया था। पावागढ़ पहाड़ी की शुरुआत चंपानेर से होती है। यहां बहुत ऊंचाई पर माची हवेली स्थित है। माता के मंदिर तक जाने के लिए माची हवेली से रोपवे की सुविधा उपलब्ध है। पैदल मंदिर तक पहंचने लिए लगभग 250 सीढ़ियां चलना पड़ती हैं। पावागढ़ से वडोदरा से लगभग 50 किमी की दूरी पर स्थित है। गुजरात के मुख्य शहरों में से एक बडोदरा है। देश के लगभग सभी बड़े शहरों से वडोदरा के लिए हवाई जहाज, रेल गाड्यां और बसें चलती हैं। वडोदरा से किसी भी निजी साधन या बस की मदद से पावागढ़ आसानी से पहुंच सकते हैं।
पावागढ़ में गिरा था देवी सती के दाहिने पैर का अंगूठा