उत्खनन के निदेशक प्रो. एके सिंह ने बताया कि यह एक जीवंत मंदिर रहा होगा। इस पर बहुत सालों तक जल चढ़ाया गया होगा जिससे कि यह घिस गया है। इसका अरघा एक वर्ग मीटर का है। उत्तर की ओर से आए पानी के बहाव ने मंदिर को ज्यादा क्षतिग्रस्त किया है। मंदिर का मलबा गिरने से अरघा उत्तर की ओर झुक गया होगा। अब तक इसके आधे भाग का उत्खनन हुआ है। इस मंदिर का गर्भगृह दो वर्ग मीटर से बड़ा है। गुप्त काल की ईटों से बने मंदिर कम मिलते हैं। बभनियांव का यह मंदिर उनमें से एक है।
प्रो. सिंह ने संभावना जताई है कि जब उत्तर की ओर दूसरा गड्ढ़ा खोदा जायेगा तब शायद किसी पशु के मुख वाली आकृति के प्रणाल मिल सकते हैं। मंदिर का विस्तार जानने के लिए तीसरे गड्ढ़े का एक फीट उत्खनन किया गया लेकिन यहां पर अब भी पटाव साफ किया जा रहा है। बारिश की आशंका को देखते हुए उत्खनन दल ने पहले गड्ढ़े को मोटी काली पालीथीन से ढक दिया गया है। बारिश का पानी गड्ढ़ों में मिले पुरावशेषों को नुकसान पहुंचा सकता है। उत्खनन में प्रो. एके सिंह,डा. रवि शंकर,डा. संदीप सिंह, फोटोग्राफी और ड्राइंग की टीम के सदस्य लगे रहे।