नाथ-दिग्गी का ही रहा संघर्ष, कहाँ गया गाँधी परिवार?*
 

मध्य प्रदेश की सियासत में बीते दिनों हाई वॉल्टेज ड्रामा चला, बैंगलुरू-जयपुर तक परेड चली, कभी कांग्रेस की बाज़ी तो कभी भाजपा की बाज़ी, कभी सिंधिया की सियासत तो कभी शिवराज-नरोत्तम के गणित। इसी बीच कांग्रेस की विदाई भी हो गई,  कमलनाथ की सत्ता चली गई। ठीक राज्यसभा चुनाव के पहले कांग्रेस ने एक बड़ा राज्य खो दिया, पर न दस जनपथ के माथे पर शिकन आई, न ही कांग्रेस के किसी राष्ट्रीय नेता ने कुछ कहा।



कमाल है साहब, मध्य प्रदेश को विजय बनाने में वाकई कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने जो योगदान दिया वह तो अपना परिणाम दे ही गया परंतु दिल्ली ने  वर्तमान हालात पर अपनी चुप्पी साध कर यह भी दिखा दिया कि केवल कमलनाथ और दिग्गी राजा के ही संघर्ष की हार हुई, इससे कांग्रेस को कोई फ़र्क नहीं पड़ता।

बीते दो दिनों में न तो राहुल-सोनिया या प्रियंका ने कोई ट्वीट आदि किया न ही दिल्ली में कांग्रेस की ओर से कोई पत्रकार वार्ता हुई।

क्या लोकतांत्रिक देश के हृदय प्रदेश में हुए इस हाई वॉल्टेज खेल से क्या सचमुच गाँधी परिवार को कोई चिंता ही नहीं रही या फिर इसके पीछे कोई अन्य मक़सद है गाँधी परिवार का!

जो भी है पर यह समझ से परे है कि कांग्रेस के कोई भी राष्ट्रीय नेता का मध्य प्रदेश को लेकर कोई गंभीरता न बरतना और ग़ैर ज़िम्मेदाराना व्यवहार करके कमलनाथ-दिग्गी सहित 90 से अधिक विधायकों के मनोबल को भी कमज़ोर कर दिया है।

कमज़ोर नेतृत्व और लापरवाह वरिष्ठ नेताओं के चलते कांग्रेस के अन्य कार्यकर्ताओं के भी हौंसले कमज़ोर हो गए हैं।

कमज़ोर राष्ट्रीय नेतृत्व के चलते यह कदम लाखों कार्यकर्ताओं का भी मनोबल गिराने वाला कदम है।

यह संघर्ष अकेले नाथ-दिग्गी की जोड़ी का ही रहा और तकलीफ़ भी उन्हीं को है। इसीलिए शायद वो शेर नाथ-दिग्गी के वर्तमान हालात पर सही है-

 *'हमें तो अपनों ने लूटा ग़ैरों में कहाँ दम था,*

*मेरी कश्ती वहीं डूबी, जहाँ पानी कम था'*

 


*डॉ.अर्पण जैन 'अविचल'*