शिवसेना का भाजपा और पीएम मोदी पर कटाक्ष- दिल्ली में बोलना-डोलना काम नहीं कर पाया
 




 

नई दिल्‍ली : शिवसेना (Shiv Sena) ने अपने मुखपत्र सामना (Saamna) के जरिए एक बार फिर केंद्र सरकार को सीएए, कश्मीर, अनुच्छेद 370, कश्मीरी पंडितों और उनके वाराणसी दौरे को लेकर एक बार फिर से घेरा है. सामना में कहा गया है कि ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने यही कहा कि किसी भी परिस्थिति में सीएए और कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का जो हमारा फैसला है, उसे रद्द नहीं करेंगे. यहां तक कि दिल्ली चुनाव के लिए भाजपा का प्रचार का भी यही मुद्दा था, लेकिन वह चला नहीं.. बल्कि हुआ यह कि दिल्ली में लोगों ने इस प्रचार का दुष्‍प्रभाव किया. प्रधानमंत्री ने वाराणसी में भी यही भाषण दिया. वाराणसी में यह भाषण चल सकता है, क्योंकि वाराणसी का माहौल अलग है’.




सामना में आगे कहा गया है कि सवाल सिर्फ इतना है कि प्रधानमंत्री पर अनुच्छेद 370 और सीएए का फैसला रद्द करने का दबाब कौन डाल रहा है? प्रधानमंत्री और भाजपा को इसे स्पष्ट करना चाहिए वे इस मुद्दे पर धूल ना उड़ाएं. कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाना देश हित में है. इस पर हल्ला मचाने की जरूरत नहीं है. सामना में आगे लिखा है कि कुछ लोग कह रहे हैं कि कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटा कर कश्मीर को फिर से भारत से जोड़ दिया गया है, लेकिन ऐसा कहना गलत है. हमारे वीर सैनिकों के शौर्य के कारण, यह भूभाग हमेशा हिंदुस्तान का था और हमेशा ही रहेगा. कश्मीरी पंडितों को लेकर सामने में कहा गया है कि अनुच्छेद 370 हटाने के बाद भी कश्मीरी पंडितों का अब तक क्या हुआ? कितने कश्मीरी पंडितों की अब तक घर वापसी हुई? सामना में कहा गया है कि प्रधानमंत्री से इन सब सवालों का जवाब मांगा जाता है तो वह कहते हैं कि हम कश्मीर से अनुच्छेद 370 नहीं हटाएंगे. हम कहते हैं कि निर्णय वापस मत लो, लेकिन कम से कम शब्दों के खेल में तो मत उलझाओ. अभी प्रधानमंत्री को अपने किए हुए वादे को पूरा करने में कोई दबाव डाल रहा है तो हमें बताएं.


संपादकीय में लिखा है कि अब बात करें नागरिकता संशोधन कानून की तो इसको लेकर नागरिकों के मन में जो भी संशय है उसको अगर दूर कर दिया जाए तो यह मामला भी शांत हो जाएगा. अवैध घुसपैठियों पर निशाना साधते हुए सामना में लिखा गया है कि बांग्लादेशी और पाकिस्तानी घुसपैठियों को देश से लात मारकर बाहर निकालना चाहिए. इस पर पूरा देश एक मत है और ऐसा निर्णय लेना सरकार का कर्तव्य है. हमारा सिर्फ इतना ही कहना है कि सरकार काम करें बोलना-डोलना कम करें. दिल्ली में यह बोलना-डोलना काम नहीं कर पाया.