शिव आराधना का महापर्व महाशिवरात्रि


फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी शुक्रवान (21 फरवरी) को देवों के देव महादेव की आराधना का पर्व महाशिवरात्रि मनाया जा रहा है। इस बार 59 साल बाद महाशिवरात्रि पर शश योग बन रहा है। ज्योतिषियों के मुताबिक, इस दिन शनि और चंद्र मकर राशि, गुरु धनु राशि, बुध कुंभ राशि और शुक्र मीन राशि में रहेंगे। यह योग साधनासिद्धि के लिए खास है। इस दिन दान-पुण्य करने का भी विधान है, जो भी व्यक्ति भगवान शिव का पूरे श्रद्धा के साथ महाशिवरात्रि के दिन व्रत रखकर पूजा-अर्चना करता है, उसे विशेष कृपा की प्राप्ति होती है। वैसे तो हर महीने में शिवरात्रि होती है, लेकिन फाल्गन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि के रूप में मनाते हैं। इस बार महाशिवरात्रि पर शश योग बन रहा है। इसके पहले यह योग 1961 में बना था। इस दिन सर्वार्थसिद्धि योग भी बन रहा है। शिवरात्रि पर भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए भगवान का रुद्राभिषेक किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। इसी दिन शिवजी ने वैराग्य जीवन छोडकर गहस्थ जीवन में प्रवेश किया था। शिव जो वैरागी थे, वह गृहस्थ बन गए। पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाशिवरात्रि के दिन शिवजी पहली बार प्रकट हए थे। शिव का प्राकट्य ज्योतिर्लिंग यानी अग्नि के शिवलिंग के रूप में था।


शिवलिंग का रहस्य और पूजन के लाभ



व्यापक अर्थ में वह माना जाता है किलिंग के व्यक्त टोने से ही सष्टि की उत्पत्ति होती है। एक अमेिं यह भी माना जाता है कि वटी सभी प्राणियों के अतितका प्रमुख कारण और निवास स्थान है। शारत्रों में कहा जाता है लिंगपरमानंद बकाण है जिससे कमसा ज्योति की उत्पति हुई है। शिवजी देवताओं के भी फम देवता है पतियों के भी पायापति है पर परमपूज्य एवं भुवनेा हैं। जिनमें वह सारा शि व्याप्त है और वोइस शिका की से भी परे हैं। भगवान शिव की विधि विधाएं बरमांड प्रतीक हैं। उनपर विराजमान नामाजवासना का प्रतीक है, गंगा अध्यात्मका प्रतीक है, वंदना ज्योति का प्रतीक है, तीन नेत्र अग्नि का प्रतीक है मुंशाला निसावा का प्रतीक है।पाधीन काल से ठगार सरकेवरों का युद्ध घोष मममतादेवीरता है और इसी कारण शिवको बुद्धका देवता मी का भया है।