हिन्दू वर्ष के अंतिम माह की अंतिम अमावस्या होती है फाल्गुन अमावस्या

पितरों की आत्मा की शांति के लिए बहत ही महत्वपूर्ण है फाल्गुन अमावस्या



फाल्गुन मास जो कि अल्हड़पन और मस्ती के लिये जाना जाता है और हिंदू वर्ष का अंतिम मास होता है। फाल्गुन माह में पड़ने वाली अमावस्या ही फाल्गुन या कहें फाल्गुनी अमावस्या कहलाती है। जो इस वर्ष फाल्गुनी अमावस्या अंग्रेजी कलेंडर के अनुसार 6 मार्च 2019 को दिन बुधवार को पड रही है। अमावस्या से पहले महाशिवरात्रि का पावन पर्व मनाया जाता है। यह अमावस्या पितरों को मोक्ष दिलाने वाली होती है। इस दिन गंगा स्नान बहुत ही शुभ माना जाता है। यह हिंदू वर्ष की अंतिम अमावस्या भी होती है। अमावस्या से पहले यानि फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष चतुर्दशी पर भगवान शिवशंकर भोलेनाथ की आराधना के पर्व महाशिवरात्रि के रूप में मनाई जाती है।


हिंदू धर्म में आस्था रखने वालों के लिये वैसे तो प्रत्येक मास की अमावस्या का बहुत महत्व होता है लेकिन फाल्गुनी अमावस्या का अपना ही एक विशेष माहात्म्य है। अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिये किये जाने वाले दान,तर्पण, श्राद्ध आदि के लिये यह दिन बहुत ही भाग्यशाली माना जाता है।


मान्यता है कि जो मृत्यु पर्यन्त मृत आत्माएं पितृ लोक पंहुचती हैं। यह उनका एक प्रकार से अस्थाई निवास होता है और जब तक उनके भाग्य का अंतिम निर्णय नहीं होता उन्हें वहीं रहना पड़ता है। इस अवधि में उन्हें भूख और प्यास की अत्यंत पीड़ा सहन करनी पड़ती है क्योंकि वे स्वयं कुछ भी ग्रहण करने में समर्थ नहीं होते। उनकी इस पीड़ा का निवारण तभी होता है जब भू लोक से उनके सगे-संबंधि, परिचित या कोई भी उन्हें मानने वाला उनके लिये श्राद्ध दान तर्पण करता है। वैसे श्राद्ध पक्ष में हमेशा उसी तिथि को श्राद्ध किया जाता है जिस तिथि को दिंवगत आत्मा इस लोक से पर लोक गमन करती है लेकिन यदि यह संभव न हो और किसी कारण वह तिथि मालूम न हो तो प्रत्येक मास में आने वाली अमावस्या को यह किया जा सकता है।


साल में 12 अमावस्याएं आती हैं यदि निरंतरता में प्रत्येक अमावस्या को आप ऐसा नहीं कर पाते हैं तो कुछ अमावस्याएं विशेष तौर पर सिर्फ श्राद्ध कर्म के लिये शुभ मानी जाती हैं।
फाल्गुन मास की अमावस्या उन्हीं में से एक है।


इस तिथि का है विशेष धार्मिक महत्व


शिवरात्रि एक अंधकारपूर्ण रात होती है, क्योंकि इसके ठीक बाद अमावस्या की रात आती है। लेकिन शिवरात्रि का अंधकार हमें एक ऐसी रोशनी देती है जो जिंदगी में अमावस के हर पल में प्रकाश बांटती रहती है। हिन्दु पंचांग में कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि को अमावस्या के नाम से जाना जाता है। इस तिथि का देवता पितृदेव को माना गया है। इस तिथि पर सूर्य और चंद्रमा समान अंशों पर और एक ही राशि में स्थित होते हैं। धार्मिक मान्यता है कि कृष्ण में दैत्य और शुक्ल पक्ष में देवता सक्रिय अवस्था में होते हैं। अमावस्या तिथि पर पितरों को प्रसन्न किया जाता है। फाल्गुन अमावस्या के दिन व्रत, स्नान और पितरों का तर्पण किया जाता है। इस दिन पीपल के वृक्ष का दर्शन करना भी बेहद शुभ माना जाता है। पितरों की शांति के निमित्त अनुष्ठान किए जाते हैं। इसके महत्व का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि यह अमावस्या पितरों को मोक्ष दिलाने वाली होती है। पितरों की शांति के लिए किए जाने वाले दान, तर्पण, श्राद्ध आदि के लिए यह दिन बहुत ही अच्छा माना जाता है। यदि निरंतरता में प्रत्येक अमावस्या को आप पितरों हेतु श्राद्ध नहीं कर पाते हैं तो कछ अमावस्याएं विशेष तौर पर सिर्फ श्राद्ध कर्म के लिए शभ मानी जाती हैं। फालान मास की अमावस्या उन्हीं में से एक है। सिर्फ श्राद्ध कर्म ही नहीं बल्कि कालसर्प दोष के निवारण हेत भी अमावस्या का विशेष होता है। फाल्गनी अमावस्या पर कई धार्मिक तीर्थों पर फालान मेलों का आयोजन भी होता है। साथ ही इस दिन गंगा मान बहत ही शुभ माना जाता है। यह भी माना जाता है कि इस दिन संगम पर देवताओं का निवास होता है।


चंद्रमा की उपासना का पर्व है फाल्गुन मास


फाल्गुन मास चंद्र देव की आराधना के लिए सबसे सही और उपयुक्त समय होता है, योंकि यह चंद्रमा का जन्म माह माना जाता है। हिन्दू धर्म के अनेक देवताओं में से एक हैं चंद्र देवता। चंद्र के देवता भगवान शिव है। शिव जी ने उन्हें अपने सिर पर धारण कर रखा है। चंद्रमा का गोत्र अत्रि तथा दिशा वायव्य है। चंद्र का दिन सोमवार है तथा उन्हें जल तत्व का देव भी कहा जाता है। चंद्रमा का जन्म फाल्गुन में मास में होने के कारण इस महीने चंद्रमा की उपासना करने का विशेष महत्व है। इस पूरे महीने भर में चंद्र देव के साथ-साथ, भोलेनाथ, भगवान श्री कृष्ण की उपासना विशेष फलदायी होती है। तंत्र ज्योतिष में तो ये कहावत है कि चंद्रमा का पृथ्वी से ऐसा नाता है कि मानो मां-बेटे का संबंध हो, जैसे बच्चे को देख कर मां के दिल में हलचल होने लगती है, वैसे ही चंद्रमा को देख कर पृथ्वी पर हलचल होने लगती है, चंद्रमा जिसकी सुंदरता से मुग्ध हो
कवि रसीली कविताओं और गीतों का सृजन करते हैं वहीं भारतीय तंत्र शास्त्र इसे शक्तियां अर्जित करने का समय माना जाता है। आकाश में पूरा चांद निकलते ही कई तांत्रिक सिद्धियां प्राप्त करने में जुट जाते हैं। चंद्रमा प्राकृतिक तौर पर बहुत सूक्ष्म प्रभाव डालता है जिसे साधारण तौर से नहीं आंका जा सकता लेकिन कई बार ये प्रभाव बहुत बढ़ जाता है जिसके कई कारण हो सकते हैं। ज्योतिष शास्त्र इसके संबंध में कहता है कि चंद्रमा का आकर्षण पृथ्वी पर भूकंप, समुद्री आंधियां, तूफानी हवाएं, अति वर्षा, भूस्खलन आदि लाता हैं। रात को चमकता पूरा चांद मानव सहित जीव-जंतुओं पर भी गहरा असर डालता है। शास्त्रों के अनुसार भी चंद्रमा मन का कारक है। चंद्रमा दिल का स्वामी है। चांदी की तरह चमकती रात चंद्रमा का विस्तार राज्य है। इसका कार्य सोने चांदी का खजाना शिक्षा और समृद्धि व्यापार है। चंद्रमा के घर शत्रु ग्रह भी बैठे तो अपने फल खराब नहीं करता। प्रकृति की हलचल में चंद्र के प्रभाव विशेष होते हैं। मनुष्य का मन और समुद्र से उठने वाली लहरे दोनों का ही निर्धारण चंद्रमा से ही होता है। माता और चंद्र का संबंध भी गहरा होता है। भारतीय ज्योतिष पर आधारित दैनिक, साप्ताहिक तथा मासिक भविष्यफल भी व्यक्ति की जन्म के समय की चंद्र राशि के आधार पर ही बताए जाते हैं। किसी व्यक्ति के जन्म के समय चंद्रमा जिस राशि में स्थित होते हैं, वह राशि उस व्यति की चंद्र राशि कहलाती है।