6 प्रकार के शिवलिंग में विराजते हैं भगवान शिव


महादेव अनुरागी और 6 विरागी दोनों हैं। काशी उनकी प्रिय नगरी है तो वह कैलाशवासी भी है। महादेव ब्रह्माण्ड के अधिपति हैं और शमशानवासी भी है। भस्म रमाते हैं और धतूरे का सेवन करते हैं। देवादिदेव महादेव की उपासना से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है और इहलोक में सभी सुखों । को भोगने के बाद मोक्ष की प्राप्ति शिव का अर्थ शभ और होती है। भगवान शिव की लिंग रूप में पूजा का विधान है। लिंग का अर्थ ज्योतिपिंड पृथ्वीलोक में कई स्थानों पर स्वयंभू रूप में शिवलिंग विराजमान है। इन शिवलिंगों की आराधना से विशेष फल की प्राप्ति होती है। वहीं शास्त्रों में विभिन्न प्रकार के शिवलिंग के निर्माण और उनकी आराधना का विधान बताया गया है। इस तरह शास्त्रों में कहा गया है कि शिव का अर्थ शुभ और लिंग का अर्थ ज्योतिपिंड है। शिवलिंग को असीम ऊर्जा का स्त्रोत माना गया है। शास्त्रों में मुख्यत: 6 प्रकार के शिवलिंग बताए गए हैं। जो इस प्रकार है। देव लिंग: देव शिवलिंग की स्थापना मुख्यत: देवताओं के और देवतुल्य प्रणियों के द्वारा की जाती है और देवलिंग पृथ्वी पर देवताओं के द्वारा पूजित माने गए हैं। आसुर लिंग: असुरों द्वारा पूजित शिवलिंग को आसुर लिंग कहा जाता है। लंकापति रावण ने एक आसुर लिंग को स्थापित किया था। विजय के वरदान के लिए असुर शिव आराधना करते थे। असुर भी शिव के परम भक्त थे। अर्श लिंगः प्राचीन काल में वनों में कटिया बनाकर रहने वाले ऋषि-मनि अर्श लिंग की स्थापना कर इसकी पूजा करते थे। पुराण लिंग: पौराणिक काल के व्यक्तियों द्वारा जिस शिवलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा की जाती थी उसको पुराण लिंग कहा जाता है। मानव लिंग: पुराने समय में राजा-महाराजाओं और श्रेष्ठी वर्ग के द्वारा जिस शिवलिंग की स्थापना कर उसकी आराधना की जाती थी उसको मानव लिंग कहा जाता है। स्वयंभू लिंगः भगवान महादेव धरती की कुछ खास जगहों पर स्वयंभू लिंग रूप में प्रकट हुए हैं। इस तरह के शिवलिंग को स्वयंभू शिवलिंग कहा जाता है। स्वयंभू शिवलिंग की आराधना का विशेष महत्व बताया गया है।