त्रिलोकीनाथ मंदिर में दो धर्मों के लोग एक साथ करते हैं पूजा


हिमाचल प्रदेश के लाहौल और स्पीति जिले के त्रिलोकीनाथ गांव में प्रसिद्ध मंदिर है। जहां बरसों से दो धर्मों के लोग एकसाथ पूजा करते हैं। त्रिलोकीनाथ मंदिर, 2760 मीटर की ऊंचाई पर त्रिलोकीनाथ गांव में सड़क के अंत में सफ़ेद रंग का सुंदर मंदिर दिखाई देता है। यही नहीं इस मंदिर को कैलाश और मानसरोवर के बाद सबसे पवित्र तीर्थ स्थान भी माना जाता है। लाहौल और स्पीति जिले में चंद्रभागा नदी के किनारे बसा हुआ छोटा सा कस्बा उदयपुर कई चीजों के लिए मशहूर है। लेकिन यहां मौजूद त्रिलोकीनाथ मंदिर इसको कई ज्यादा मशहूर करता है। यह मंदिर बहुत ही खास माना जाता है क्योंकि यहां हिंदू त्रिलोकनाथ देवता की भगवान शिव के रूप में पूजा करते हैं और बौद्ध आर्य अवलोकीतश्वर के रूप में पूजा करते हैं। माना जाता है की यह दुनिया का इकलौता एसा मंदिर है, जहां एक ही मूर्ति की पूजा दो धर्मों के लोग एक साथ करते हैं।



भगवान शिव का हैं रूप
हिंदू धर्म के लोगों का मानना है कि, इस मंदिर का निर्माण पांडवों द्वारा करवाया गया था। वहीं बौद्धों के विश्वास के अनुसार पद्मसंभव 8वीं शताब्दी में यहां पर आए थे और उन्होंने इसी जगह पर पूजा की थी। स्थानीय लोगों के अनुसार मंदिर से जुड़े कई रहस्य जुड़े हुए हैं। जिनके बारे में आज तक कोई नहीं जान पाया। इसी से जुड़ा एक किस्सा कुल्लू के राजा से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि वह भगवान की इस मूर्ति को अपने साथ ले जाना चाहते थे, लेकिन मूर्ति इतनी भारी हो गई कि इसे उठाया ही नहीं जा सका। संगमरमर की इस मूर्ति की दाईं टांग पर एक निशान भी है। माना जाता है कि यह निशान उसी दौरान कुल्लू के एक सैनिक की तलवार से बना था। मंदिर को कैलाश और मानसरोवर के बाद सबसे पवित्र तीर्थ स्थान माना जाता है।
अगस्त के महीने में लगता है मेला
अगस्त के महीने में त्रिलोकीनाथ के दर्शन करने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। क्योंकि इस माहीने में पोरी मेला आयोजित होता है, जिसमें कई लोग शामिल होने आते हैं। पोरी मेला त्रिलोकीनाथ मंदिर और गांव में प्रतिवर्ष मनाया जाने वाला तीन दिनों का भव्य त्यौहार है, जिसमें हिंदू और बौद्ध दोनों बड़े उत्साह के साथ शामिल होते हैं। इस पवित्र उत्सव के दौरान सुबह-सुबह, भगवान को दही और दूध से नहलाया जाता है और लोग बड़ी संख्या में मंदिर के आसपास इक_ा होते हैं और ढ़ोल नगाड़े बजाए जाते हैं। इस त्यौहार में मंदिर के अन्य अनुष्ठानों का पालन भी किया जाता है। स्थानीय मान्यता के अनुसार भगवान शिव इस दिन घोड़े पर बैठकर गांव आते हैं। इसी वजह से इस उत्सव के दौरान एक घोड़े को मंदिर के चारों ओर ले जाया जाता है। एक भव्य मेला भी आयोजित किया जाता है, जो यहां आसपास के शहरों के व्यापारियों को एक साथ लाता है। इस मेले में आपको हस्तशिल्प, स्थानीय भोजन और अन्य उत्पादों का एक समृद्ध संग्रह मिलेगा।