तिल का प्रयोग करने से होता है ६ प्रकार के पापों का नाश

हिंदू धर्म में 12 मास में एकादशी के 24 व्रत पड़ते हैं। इनमें से कुछ का विशेष महत्व होता है। इन्हीं में एक है षटतिला एकादशी। षटतिला एकादशी माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को कहा जाता है। इस साल यह तिथि 20 जनवरी को पड़ रही है। इस दिन तिल का प्रयोग 6 प्रकार से करने पर पापों का नाश होता है और बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। तिल के 6 प्रयोग के कारण ही इसे षटतिला एकादशी नाम दिया गया है। पद्म पुराण में बताया गया है कि जो भी भक्त षटतिला एकादशी के दिन उपवास करते हैं, साथ ही दान, तर्पण और विधि-विधान से पूजा काते हैं उन्हें मोक्ष की पामि होती है और सभी पापों का अंत होता है।



एकादशी का महत्व


पुराणों में बताया गया है कि जितना पुण्य कन्यादान, हजारों वर्षों की तपस्या पुण्य कन्यादान, हजारों वर्षों की तपस्या और स्वर्ण दान से मिलता है, उससे अधिक फल एक मात्र षटतिला एकादशी का व्रत करने से मिलता है। इस व्रत को करने से घर में सुख-शांति का वास होता है। मनुष्य ता है। मनुष्य को भौतिक सुख तो प्राप्त होता ही है, मृत्यू के बाद मोक्ष की प्राप्ति भी होती है। इस दिन की गई पूजा का विशेष महत्व है।


व्रत की शुरुआत


व्यक्ति को सुबह स्नान करके भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। भगवान विष्णु को तिलि और उड़द मिश्रित खिचड़ी का भोग लगाना चाहिए। इस व्रत में तिल का जितने अधिक तरीके से प्रयोग होता है उतना ही फायदेमंद होता है। व्रत से एक दिन पूर्व ही व्रती को संयमित जीवन अपना लेना चाहिए। यानी एकादशी से पूर्व दशमी पर व्यक्ति को रात्रि का भोजन नहीं करना चाहिए। काम, क्रोध, लोभ और मोह की भावना को त्यागकर सच्चे मन से व्रत का संकल्प लें।


व्रत की दिनचर्या


षटतिला एकादशी का व्रत पूरे दिन निराहार रहकर किया जाता है। आवश्यकता के अनुसार फलों का सेवन कर सकते हैं। शाम के समय भगवान विष्णु का पूजन करें। तुलसी के समक्ष घी का दीपक जलाएं। अगले दिन द्वादशी पर व्रत का पारण करें। पारण से पहले ब्राह्मण दंपती को भोजन करवाएं और क्षमता के अनुसार दान-दक्षिणा दें। तत्पश्चात पारण कर सकते हैं।


पूजा विधि


नारदपुराण के अनुसार, ब्रह्म मुहूर्त में स्नान आदि से निवृत होकर भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए सबसे पहले व्रत का संकल्प करें और भगवान विष्ण की प्रतिमा या प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद गंगाजल में तिल मिलाकर तस्वीर पर छीटें दें और धूप-दीप कर घर में घट स्थापना करें। फिर विष्णु सहस्राम का पाठ करें और उनकी आरती उतारें। इस पाठ कर और उनका आरती उतार। इस दिन भगवान को तिल का भोग लगाएं। साथ ही तिलयुक्त फलाहार खिलाए। इस दिन दान का भी विशेष महत्व है इसलिए तिल का दान करें। बताया जाता है कि |माघ मास में जितना तिल का दान करेंगे उतने हजारों साल तक स्वर्ग में रहने का ग में रहने का अवसर प्राप्त होगा।


पौराणिक कथा


पद्म पुराण के अनुसार, एक महिला भगवान विष्णु की परम भक्त थी और वह पूजा, व्रत आदि श्रद्धापूर्वक करती थी। व्रत रखने से उसका मन और शरीर तो शुद्ध हो गया था। लेकिन उसने कभी भी अन्न का दान नहीं किया था। जब महिला मृत्यु के बाद बैकुंठ पहुंची तो उसे खाली करिया मिली। महिला ने बैकुंठ में भगवान विष्णु से पूछा कि मुझे खाली कुटिया ही मिली है? तब भगवान ने बताया कि तुमने कभी कुछ दान नहीं किया है इसलिए तुम्हें यह फल मिला। मैं तुम्हारे उद्धार के लिए एकबार तुम्हारे पास भिक्षा मांगने आया था तो तुमने मुझे मिट्टी का एक ढेला पकड़ा दिया। अब तुम षटतिला एकादशी का व्रत करो। जब महिला ने व्रत किया तो व्रत पूजन करने के बाद उसकी कुटिया अन्न-धन से भर गई और वह बैकुंठ में अपना जीवन हंसी-खशी बिताने लगी।


व्रत के लाभ


पटतिला एकादशी का व्रत करने से व्यक्तिको आरोग्य की प्राप्ति होती है। आयु में वृद्धि होती है। नेत्र के विकार दूर होते हैं। भगवान विष्णु औरतक्ष्मी माता प्रसन्न होकर धन संपदा में इसलिए वटिका आशीर्वाद देते हैं। तो महिलाएं यह |वत करती हैं, उन्हें अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। जोडे से राहत करने से दांपत्य जीवन सुखी होता है। इस दिन तिल से भरा कलश दान करने से आपके भंडार भरे रहते हैं।