सूर्य ने आद्र्रा नक्षत्र में किया प्रवेश, अब बदलेगा बारिश का प्रभाव, वातावरण में आएगी नमी

सूर्यदेव का आद्र्रा नक्षत्र में प्रवेश हो चुका है। आज 22 जून, शुक्रवार को सूर्यदेवता सुबह आद्र्रा नक्षत्र में प्रवेश कर चुके हैं और 6 जुलाई तक इसी नक्षत्र में रहेंगे। आद्र्रा नक्षत्र में सूर्य का प्रवेश हमारे वातावरण व मौसम में भी कई तरह के बदलाव लाएगा। इस प्रवेश से विभिन्न नक्षत्र और नामाक्षर वाले लोगों पर अलग-अलग प्रभाव पड़ेगा। कई लोगों के लिए शुभ फल और कई लोगों के लिए अशुभ फल की प्राप्ति होंगी।



हिंदू धर्म के अनुसार इस नक्षत्र को बरसात का प्रारंभ माना जाता है। कृषि कार्यों के लिए खास 10 नक्षत्रों में आद्र्रा को सबसे महत्वपूर्ण नक्षत्र माना जाता है। सूर्य का इन नक्षत्रों पर संचरण ही वर्षाकाल का प्रतीक होता है। ज्योतिषियों के आकलन के अनुसार इस बार आद्र्रा में सामान्य बारिश के ही आसार हैं। अत: इस साल सामान्य बारिश का अनुमान लगाया जा रहा है। कहा जाता है की सूर्य के आद्र्रा में होने से वातावरण में बारिश और नमी आती है। ज्योतिषाचार्य गुलशन अग्रवाल के अनुसार सूर्य के आकाश मंडल के 27 नक्षत्रों में छठे नक्षत्र आद्र्रा में प्रवेश होने से प्रकृति में नमी का कारक है।



देवताओं की करें पूजा


शिवपुराण और वृहत संहिता के अनुसार पीपल और पाकड़ के पौधे लगाने और पूजन से राहू, शनि और कालसर्प की शांति होती है। इस नक्षत्र में जन्में जातकों के ग्रह की शांति की पूजा पीपल और पाकड़ के पेड़ की छाया में करने से दोष खत्म होता है। वहीं इस नक्षत्र में जन्में जातक गुस्सैल होते हैं। निर्णय लेते समय मन की स्थिति दुविधापूर्ण हो जाती है, इन लोगों का स्वभाव संशयी होता है। इस नक्षत्र में मकान बनवाना और राज्याभिषेक शुभ होता है। नए वस्त्र धारण से स्वास्थ्य कमजोर संभावना होती है। इस नक्षत्र में आप तिल, गुड का दान कर सकते हैं।



मांसाहार आद्र्रा में वर्जित


मत्स्य पुराण और मनुस्मृति के अनुसार-दही, खटाई और मांसाहार आद्र्रा में वर्जित होते हैं और मक्खन और आम का सेवन लाभकारी होता है। आद्र्रा नक्षत्र में भगवान शिव और विष्णु के विशेष तिथि को पूजा करना अच्छा माना जाता है, और पूजा में भगवान को केले के पत्ते पर गुड़ की खीर, आम व लीची, खोवा की मिठाई का भोग लगाया जाता है।
कामाख्या में अम्बुवाची पर्व
सूर्य जब आद्र्रा में प्रवेश करता है तो धरती रजस्वला होती है, जो उत्तम वर्षा का प्रतीक है। इसी पवित्र समय में कामाख्या-तीर्थ में अम्बुवाची पर्व का आयोजन किया जाता है। यह नक्षत्र उत्तर दिशा का स्वामी है। आद्र्रा के प्रथम एवं चतुर्थ चरण का स्वामी बृहस्पति है तथा द्वितीय और तृतीय चरण का प्रतिनिधित्व शनि करता है।
अच्छी वर्षा का योग
इस वर्ष आद्र्रा के प्रवेश-काल के आधार पर ज्योतिषीय गणना के अनुसार अच्छी वर्षा का योग बन रहा है। इसका कारण यह है कि शनि वर्ष का अधिपति एवं आद्र्रा के दो चरणों का स्वामी भी है। शनिवार की रात्रि में आद्र्रा का प्रवेश उत्तम वर्षा की घोषणा है। इस नक्षत्र में 'हरि-हरÓ अर्थात् भगवान शिव एवं विष्णु को खीर और आम का भोग लगाकर पूजा की जाती है।
भगवान विष्णु के केशों में आद्र्रा नक्षत्र का निवास
वामन पुराण के अनुसार, नक्षत्र पुरुष भगवान विष्णु के केशों में आद्र्रा नक्षत्र का निवास है। महाभारत के शांतिपर्व के अनुसार, जगत् को तपाने वाले सूर्य और अग्नि व चंद्रमा की जो किरणें प्रकाशित होती हैं, सब जगतनियंता के 'केशÓ हैं। यही कारण है कि आद्र्रा नक्षत्र को जीवनदायी कहा जाता है। इसी नक्षत्र के पुण्य योग में सम्पूर्ण उत्तर भारत के राज्यों में खीर और आम खाने की परम्परा है। कृषिकार्य की शुरुआत इसी नक्षत्र में होने के कारण यह नक्षत्र सर्वाधिक लोकप्रिय नक्षत्र है।
आद्रा के मायने और महत्व
आर्द्रा का अर्थ नमी होता है। मान्यता है कि इन दिनों में पृथ्वी की खुदाई नहीं करनी चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि पृथ्वी रजस्वला होती है। इस दौरान  22 से 26 जून के बीच हर साल कामाख्या मंदिर के कपाट बंद रहते हैं। इस दौरान विश्व प्रसिद्ध अम्बुवाची मेला भी यहां लगता है। इस बार सूर्य का आर्द्रा में प्रवेश 22 जून को शाम 5 बजकर 7 मिनट, 30 सेकेंड पर वृश्चिक लग्न में हो रहा है। सूर्य इस दौरान आर्द्रा नक्षत्र में 6 जुलाई 2019 को शाम 4 बजे तक रहेंगे।
उत्तर भारत में आर्द्रा का महत्व
आर्द्रा नक्षत्र में सूर्य के प्रवेश के दौरान भगवान शिव और विष्णु की पूजा का विशेष महत्व है। उत्तर भारत में इस दिन भगवान को खीर और आम का भोग लगाने और खाने की परंपरा है।