श्रीकृष्ण के जन्म से पहले शेषनाग ने बलराम के रूप में लिया था जन्म

जन्माष्टमी से कुछ दिन पहले यानी आज 21 अगस्त बुधवार को बलराम जयंती मनाई जा रही है। श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम को शेषनाग का अवतार माना जाता है। हर साल भाद्रपद्र महीने के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को इनकी जयंती के रूप में मनाया जाता है।



पौराणिक कथाओं अनुसार जब-जब धरती पर अधर्म बड़ा है तब-तब भगवान विष्णु ने अवतार लिया है और उनका साथ किसी न किसी रूप में शेषनाग ने दिया है। द्वापर युग में श्रीकृष्ण के जन्म से पहले उनके शेषनाग ने बलराम के रुप में जन्म लिया। बलराम जंयती को हलषष्ठी और हलछठ के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन हल और बैलों की विशेष पूजा की जाती है। बलराम भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई थे। बलराम ने भी द्वापर युग में ही जन्म लिया था। बलराम जंयती के दिन धरती से पैदा होने वाले अन्न को ग्रहण किया जाता है। इस दिन गाय दूध और दही का सेवन करना निषेध माना जाता है। अगर कोई ऐसा करता है तो उसे जीवन में अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
दुर्योधन के पुत्र से तय हुआ था बलराम की पुत्री वत्सला का विवाह
बलराम और रेवती के दो पुत्र हुए जिनके नाम निश्त्थ और उल्मुक थे। एक पुत्री ने भी इनके यहां जन्म लिया जिसका नाम वत्सला रखा गया। माना जाता है कि श्राप के कारण दोनों भाई आपस में लड़कर ही मर गये। वत्सला का विवाह दुर्योधन के पुत्र लक्ष्मण के साथ तय हुआ था, लेकिन वत्सला अभिमन्यु से विवाह करना चाहती थी। तब घटोत्कच ने अपनी माया से वत्सला का विवाह अभिमन्यु से करवाया था।
जयंती का महत्व
बशास्त्रों के अनुसार द्वापर युग में शेषनाग ने भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम के रूप में जन्म लिया था। बलराम का अस्त्र हल है इसलिए बलराम को हलधर भी कहा जाता है। इसके अलावा बलराम ने मूसल को भी धारण किया है। बलराम जंयती के अन्य नाम भी है। इस जंयती को हलषष्ठी और हरछठ भी कहा जाता है। बलराम जंयती के दिन धरती से पैदा होने वाले अन्न को ग्रहण किया जाता है। इस जयंती को दूध और दही का सेवन नहीं किया जाता। यह दिन संतान संबंधी परेशानियों के लिए भी उत्तम माना जाता है। जिन महिलाओं को संतान की प्राप्ति नहीं होती वह इस व्रत को पूरे विधि विधान से करती हैं। संतान संबंधी परेशानियों के निवारण के लिए बलराम जंयती काफी शुभ मानी जाती है।
पूजा एवं विधि



  • बलराम जंयती के दिन महिलाओं को महूआ की दातुन से दांत साफ करने चाहिए।

  • इस दिन पूरे घर को भैंस गोबर से लिपा जाता है।

  • बलराम जंयती के दिन भगवान गणेश और माता गौरा कि पूजा की जाती है।

  • बलराम जंयती पर महिलाएं तालाब के किनारे या घर में ही तालाब बनाकर, उसमें झरबेरी, पलाश और कांसी के पेड़ लगाती हैं।

  • अतं मे महिलाएं बलराम जंयती की कथा सुनती हैं।


कौन थे बलराम
पुराणों के अनुसार बलराम को भगवान श्री कृष्म का बड़ा भाई माना जाता है। बलराम शेषनाग के ही अवतार थे। बलराम को अत्याधिक शक्तिशाली भी माना जाता था। बलराम ने ही दुर्योधन और भीम को गदा युद्ध सीखाया था। बलराम भी श्री कृष्ण की तरह ही देवकी की संतान थे। बलराम देवकी की संतान थे। कंस देवकी के सभी बच्चों की हत्या कर देता था। देवकी और वासुदेव के तप के बल पर यह सांतवा गर्भ वासुदेव की पहली पत्नी के गर्भ में स्थापित हो गया। लेकिन वासुदेव की पहली पत्नी के आगे यह समस्या थी कि वह इस बच्चे को कैसे पाले। क्योंकि उस समय वासुदेव कंस की करागार में बंद थे। इसलिए बलराम के जन्म लेते ही उन्हें नंद बाबा के यहां पलने के लिए भेज दिया।
बलराम कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक गांव एक ग्वालिन स्त्री गर्भवती थी। उसके प्रसव में कुछ समय ही बाकी था। लेकिन वह अपनी स्थिति की परवाह न करते हुए भी दूध दही को बेचने के लिए निकल पड़ी। घर से कुछ दूर जाने पर पर ही उसे प्रसव पीड़ा शुरु हो गई और उसने झरबेरी की ओट में एक बच्चे को जन्म दे दिया। उसी दिन हल षष्ठी भी थी। वह ग्वालिन थोड़ी देर आराम करने के बाद फिर से अपने काम पर चली गई। इससे हल षष्ठी का व्रत करने वाले लोगो का व्रत खंडित हो गया। ग्वालिन की इस गलती के कारण झरबेरी के नीचे लेटे उसके बच्चे को किसान का हल लग गया। किसान ने जब उस बच्चे का रोना सुना तो वह अत्यंत ही दुखी हुआ और बच्चे को झरबेरी के कांटों से टांके लगाकर भाग गया। जब ग्वालिन वापस लौटी तो उसे अपने बच्चे मृत पाया । अपने बच्चे को देखकर अपना किया हुआ पाप याद आया। उसने तुरंत ही लोगों को जाकर पूरी बात बताई और अपने बच्चे की दशा के बारे में भी बताया। उसके इस प्रकार से क्षमा मांगने पर सभी गांव वालों ने उसे क्षमा कर दिया। जब ग्वालिन वापस उसी स्थान पर आई तो उसका बच्चा जिंदा था और वह खेल रहा था।