श्री राम ने एक झटके में तोड़ दिया था भगवान शिव का पिनाक धनुष

कैलाशपति महादेव को कल्याण का देवता माना जाता है साथ ही वो बुराइयों और दुष्टों के संहार के देवता भी है। वो भस्म धारण करते हैं तो ब्रह्माण्ड की अथाह धनराशि भी उनके चरणों में समर्पित है। भोले भंडारी हैं तो अपनी क्रोधाग्नि की अग्नि में जलाकर भस्म भी कर देते हैं। भूतल से लेकर आसमान की गहराईयों तक अभय और सुरक्षाकवच देने वाले श्रीशिव विध्वंसक हथियारों के अधिपति भी है, जो बेहद संहारक और शत्रु को पराजित करने वाले हैं और जिनकी मदद से देवताओं ने असुरों पर विजय प्राप्त की है।



धनुष पिनाक : भोलेनाथ के पास पिनाक नाम का धनुष है। कहा जाता है कि पिनाक की टंकार से ही बादल फट जाते थे और धरती पर कंपन पैदा हो जाता था। पिनाक के एक तीर से शिव ने त्रिपुरासुर की तीनों नगरियों का विध्वंस कर दिया गया था। देवी और देवताओं के युग की समाप्ति के बाद इस धनुष को देवरात को सौंप दिया गया था। उल्लेखनीय है कि राजा दक्ष के यज्ञ में यज्ञ का भाग शिव को नहीं देने के कारण भोलेनाथ बहुत क्रोधित हो गए थे और उन्होंने सभी देवताओं को अपने पिनाक धनुष से नष्ट करने की ठान ली थी। पिनाक की एक टंकार से धरती का वातावरण भयानक हो गया था। बड़ी मुश्किल से उनका क्रोध शांत किया गया, उसके बाद उन्होंने यह धनुष देवताओं को दे दिया। देवताओं ने धनुष पिनाक राजा जनक के पूर्वज देवरात को दे दिया। राजा जनक के पूर्वजों में निमि के ज्येष्ठ पुत्र देवरात थे। शिव-धनुष उन्हीं की धरोहरस्वरूप राजा जनक के पास सुरक्षित रखा था। इस धनुष को भगवान शंकर ने स्वयं अपने हाथों से बनाया था। उनके इस विशालकाय धनुष को कोई भी उठाने की क्षमता नहीं रखता था। लेकिन भगवान राम ने इसे उठाकर इसकी प्रत्यंचा चढ़ाई और इसे एक झटके में तोड़ दिया था।
शिव के चक्र : पौराणिक मान्यता के अनुसार सभी प्रमुख देवताओं के अपने अस्त्र-शस्त्र है और इनमें चक्रप्रमुख शस्त्र है। भगवान भोलेनाथ के पास भवरेंदु नाम का चक्र है, जबकि विष्णुजी के पास कांता चक्र और देवी दुर्गा के पास मृत्यु मंजरी नाम का चक्र है। इसी तरह सुदर्शन चक्र का आख्यान भी महादेव से शुरू होता है। मान्यता है कि सुदर्शन चक्र का निर्माण भगवान शंकर ने किया था। निर्माण के बाद इसको उन्होंने श्रीहरी को सौंप दिया। आवश्यकता होने पर उन्होंने सुदर्शन चक्र को देवी पार्वती को प्रदान किया। देवी पार्वती ने इसको परशुराम को सौंप दिया और परशुरामजी ने इस चक्र को श्रीकृष्ण को सौंप दिया।
पाशुपतास्त्र : पूरी सृष्टि के विनाश की क्षमता रखने वाला पाशुपतास्त्र भी शिव के प्रमुश हथियारों में से एक है। इसकी बनावट एक तीर के समान है और इसको चलाने में धनुष का प्रयोग करना पड़ता है। महाभारत में यह हथियार अर्जुन के पास था, लेकिन जनहित को ध्यान में रखते हुए उसने कभी इसका प्रयोग नहीं किया।
तीन प्रकार के कष्टों दैनिक, दैविक, भौतिक के विनाश का प्रतीक है त्रिशूल
महादेव के पास कई तरह के अस्त्र-शस्त्र थे। भगवान नीलकंठ ने इन सभी अस्त्र-शस्त्र को देवताओं को सौंप दिया था, लेकिन उन्होंने त्रिशूल को अपने पास रखा। शास्त्रोवत मान्यता है कि वह अत्यंत घातक और मारक शक्ति वाला हथियार है। त्रिशूल ३ प्रकार के कष्टों दैनिक, दैविक, भौतिक के विनाश का प्रतीक है। त्रिशूल में तीन तरह की शक्तियां सत, रज और तम समाई हुई है। प्रोटॉन, न्यूटॉन और इलेक्ट्रॉन। 


देवताओं और असुरों ने भी स्थापित किए शिवलिंग


देवादिदेव महादेव की कृपा से मनुष्य के दैहिक, दैविक और भौतिक सभी तरह के तापों से छुटकारा मिल जाता है। भस्मधारी महादेव की आराधना सात्विक तरीके से मन से करने पर वह मनचाहा वरदान देते हैं। सभी प्रमुख देवताओं की प्रतिमा, उनके चरण या विग्रह की पूजा का विधान है, लेकिन शिव ब्रह्माण्ड में इकलौते देवता हैं जिनकी प्रतिमा से ज्यादा उनके लिंग की पूजा की जाती है और शास्त्रों के मतानुसार शिवलिंग की पूजा से मानव के ग्रहदोषों से लेकर सारे दुखों का नाश होता है और वह धरती पर उपलब्ध सभी सुखों को भोग कर मोक्ष प्राप्त कर कैलाशवासी बनता है। शास्त्रों में विभिन्न तरह के शिवलिंग की पूजा का विधान बताया गया है, जिसमें धातु से लेकर पाषाण और मिट्टी तक के शिवलिंग शामिल है।


शास्त्रों में पूजा के अनुसार यानी किसके द्वारा शिवलिंग की स्थापना की गई है, शिवलिंग के छह प्रकार बताए गए हैं।
देव लिंग : जिस शिवलिंग को देवताओं के द्वारा या दूसरे किसी प्राणी के द्वारा स्थापित किया गया हो, उसको देवलिंग कहते हैं। इस तरह के शिवलिंग देवताओं के द्वारे पूजे जाते हैं।
आसुर लिंग : असुरों द्वारा पूजे जाने वाले लिंग को आसुर लिंग कहा जाता है। प्राचीनकाल में रावण आदि असूरों ने इस तरह के शिवलिगं की स्थापना कर मनचाहे फल की प्राप्ति की थी।
अर्श लिंग : इस तरह के लिंग की स्थापना ऋषि, मुनि और संतों के द्वारा की जाती थी। शास्त्रोक्त विधि-विधान से स्थापित किए गए ऐसे शिवलिंग संतों और उनके अनुयायियों के द्वारा पूजे जाते थे।
पुराण लिंग : पौराणिक काल में मानव के द्वारा स्थापित किए गए शिवलिंग को पुराण लिंग कहा जाता है।
मानव लिंग : प्राचीन काल में राजा-महाराजा, महापुरूषों और श्रेष्ठी वर्ग के द्वारा स्थापित किए गए लिंग मानव लिंग कहलाते हैं।
स्वयंभू लिंग : स्वयं धरती में से प्रकट हुए लिंग को स्वयंभू शिवलिंग कहा जाता है। भारत मे कई जगहों पर स्वयंभू शिवलिंग विद्यमान है, जिनकी शिवभक्त भक्तिभाव से पूजा-अर्चना करते हैं।