सन् 1631 में हुआ था बाबा हाजी अली शाह बुखारी की दरगाह का निर्माण

बाबा हाजी अली शाह बुखारी की दरगाह पूरे विश्व के श्रद्घालुओं के आस्था का केंद्र है। इस दरगाह पर सभी धर्मो के लोग अपनी मनोकामना पूरी होने के लिए बाबा से मन्नते मांगते हैं। ये दरगाह सांप्रदायिक सद्भाव के प्रसिद्घ है। दरगाह से युक्त ये मस्जिद मुंबई के वर्ली समुद्र तट के छोटे द्वीप पर स्थित है। शहर के मध्य में स्थित ये पवित्र दरगाह मुंबई की मान्यता प्राप्त सरहद है। सुन्नी समूह के बरेलवी संप्रदाय द्वारा इस मंदिर की देखरेख की जाती है। संत हाजी अली और उनके भाई अपनी माता की अनुमति से भारत आये थे । वे भारत में मुंबई के वर्ली इलाके में रहना शुरू किये। कुछ समय बाद उनके भाई अपने मूलनिवास स्थान को लौटने लगे तब संत हाजी अली ने अपनी माता के नाम एक पत्र भेजा। इस पत्र में उहोंने लिखा कि अच्छे स्वाथ्य का ध्यान रखते हुए मैं अब स्थायी रूप से यहां पर रहूंगा और इस्लाम का प्रचार करूगा इसलिए मुझे क्षमा करें। अपनी मृत्यु तक उहोंने अपने अनुयायीयों और लोगों को ज्ञान और इस्लाम की शिक्षा दी।



हाजी अली का इतिहास
मुस्लिम सुफी वली संत हाजी अली की दरगाह की स्थापना 1631 ई में की गयी थी। इसका निर्माण हाजी उसमान रनजीकर, जो तीर्थयात्रियों को मक्का ले जाने वाले जहाज के मालिक थे, ने कराया था। हाजी अली एक धनी मुस्लिम व्यापारी थे उहोंने अपनी मक्का की तीर्थ यात्रा से पहले सारे धन को त्याग दिया था। मक्का की यात्रा के दौरान ही उनकी मृत्यु हो जाती है। ऐसी मान्यता है कि मृत्यु के बाद उनका शरीर जोकि एक ताबूत में था, बहते हुए मुंबई वापस आ जाता है। एक दूसरी मान्यता के अनुसार संत हाजी अली की दरगाह स्थल पर डूब जाने से मृत्यु हो गयी थी।
क्या है मान्यता
ऐसी मान्यता है कि जो भी व्यक्ति संत हाजी अली से सच्चे मन से प्रार्थना करता है उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है। यहां बहुत बड़ी संख्या में श्रद्घालू मनोकामना पूर्ण होने पर बाबा को धन्यवाद देने आते हैं। पीर बाबा की बहन ने भी उनके नक्से कदम पर चलते हुए इस्लाम की तपस्या में लग गयी। वर्ली की खाड़ी से थोड़ी दूर पर उनका मकबरा बना हुआ है।