समस्त सृष्टि को विनाश से बचाने के लिए शिव ने पिया विष


सावन मास शुरू हो रहा है। श्रावण का अर्थ है श्रवण करने का समय। चातुर्मास, जिसमें हरि कथा का श्रवण किया जाता है। लेकिन, चातुर्मास का पहला महीना 'हर' यानी शिव की उपासना का महीना है। सावन शिव को प्रिय है क्योंकि ये शीतलता प्रदान करता है। हर वो चीज जो शीतलता दे, वो शिव को प्रिय है। भागवत महापुराण में कथा है समुद्र मंथन की। देवता और दानवों ने मिलकर जब समुद्र को मथा तो सबसे पहले हलाहल विष निकला। विष इतना विनाशक था कि सारी सृष्टि में हाहाकार मच गया। भगवान विष्णु ने देवताओं को सलाह दी, जाकर भोलेनाथ को मनाएं, वो ही इस विष को पी सकते हैं। शिव ने विष पिया। गले में अटकाकर रख लिया। पूरा कंठ नीला पड़ गया और तब शिव का एक नाम पड़ा नीलकंठ। हलाहल से उत्पन्न हो रही अग्नि इतनी तेज थी कि शिव का शरीर पर इसका असर होने लगा। भगवान को ठंडक मिले इसके लिए उन पर जल चढ़ाया गया। शिव प्रसन्न हो गए। तब से शिव पर जल चढ़ाने की परंपरा शुरू हो गई। सावन इस कारण शिव को प्रिय है क्योंकि इस पूरे मास में हल्की फुहारें आसमान से बरसती हैं।