पुत्र पर आए सभी संकट दूर कर देता है बहुला चतुर्थी का व्रत

भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी या संकट चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। इसे संतान की रक्षा का व्रत भी कहा जाता है। भाद्रपद चतुर्थी तिथि को पुत्रवती स्त्रियां अपने संतान की रक्षा के लिए उपवास रखती हैं। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से संतान के ऊपर आने वाला कष्ट शीघ्र ही समाप्त हो जाता है। इस दिन चंद्रमा के उदय होने तक बहुला चतुर्थी का व्रत करने का बहुत ही महत्व है। वस्तुत: इस व्रत में गौ तथा सिंह की मिट्टी की प्रतिमा बनाकर पूजा करने का विधान प्रचलित है। इस व्रत को गौ पूजा व्रत भी कहा जाता है। जिस प्रकार गौ माता अपना दूध पिलाकर अपनी संतान के साथ-साथ, संपूर्ण मानव जाति की रक्षा करती है, उसी प्रकार स्त्रियां अपनी संतान को दूध पिलाकर रक्षा करती हैं। यह व्रत नि:संतान को संतान तथा संतान को मान-सम्मान एवं ऐश्वर्य प्रदान करने वाला है। 



बहुला गणेश चतुर्थी व्रत विधि
बहुला चतुर्थी के पवित्र दिन पर, भक्त सुबह जल्दी उठते हैं, एक पवित्र स्नान करते हैं और फिर गायों के साथ-साथ बछड़ों को नहलाते हैं और उनके छप्पर (गायों के रहने का स्थान) को साफ करते हैं। भक्त इस दिन बहुला चतुर्थी का उपवास रखते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, लोगों को चाकू से कटा हुआ या गेहूं से बना कुछ भी खाद्य पदार्थ उपभोग करने की अनुमति नहीं होती है। प्रार्थनाओं के लिए, भक्त भगवान कृष्ण या भगवान विष्णु के मंदिरों में जाते हैं। भक्त भगवान कृष्ण या भगवान विष्णु की मूर्तियों या चित्रों की पूजा करके घर पर प्रार्थनाएं भी कर सकते हैं। धूप, फल, फूल और चंदन का उपयोग देवता की पूजा के लिए किया जाता है। भक्त भगवान विष्णु और भगवान कृष्ण के मंत्रों का उच्चारण करते हैं एवं ध्यान लगाते हैं। संध्या के समय के दौरान, भक्त बछड़ों और गायों की पूजा करते हैं जिसे गोधुली पूजा के नाम से जाना जाता है। अगर भक्तों के पास कोई गाय नहीं है तो वे गाय और बछड़े की तस्वीर की भी पूजा कर सकते हैं और उनकी प्रार्थना कर सकते हैं।
बहुला और सिंह की कथा
जब भगवान विष्णु का कृष्ण रूप में अवतार हुआ तब इनकी लीला में शामिल होने के लिए देवी-देवताओं ने भी गोप-गोपियों का रूप लेकर अवतार लिया। कामधेनु नाम की गाय के मन में भी कृष्ण की सेवा का विचार आया और अपने अंश से बहुला नाम की गाय बनकर नंद बाबा की गौशाला में आ गई। भगवान श्रीकृष्ण का बहुला गाय से बड़ा स्नेह था। एक बार श्रीकृष्ण के मन में बहुला की परीक्षा लेने का विचार आया। जब बहुला वन में चर रही थी तब भगवान सिंह रूप में प्रकट हो गए। मौत बनकर सामने खड़े सिंह को देखकर बहुला भयभीत हो गई। लेकिन हिम्मत करके सिंह से बोली, हे वनराज मेरा बछड़ा भूखा है। बछड़े को दूध पिलाकर मैं आपका आहार बनने वापस आ जाऊंगी। सिंह ने कहा कि सामने आए आहार को कैसे जाने दूं, तुम वापस नहीं आई तो मैं भूखा ही रह जाऊंगा। बहुला ने सत्य और धर्म की शपथ लेकर कहा कि मैं अवश्य वापस आऊंगी। बहुला की शपथ से प्रभावित होकर सिंह बने श्रीकृष्ण ने बहुला को जाने दिया। बहुला अपने बछड़े को दूध पिलाकर वापस वन में आ गई। बहुला की सत्यनिष्ठा देखकर श्रीकृष्ण अत्यंत प्रसन्न हुए और अपने वास्तविक स्वरूप में आकर कहा कि हे बहुला, तुम परीक्षा में सफल हुई। अब से भाद्रपद चतुर्थी के दिन गौ-माता के रूप में तुम्हारी पूजा होगी। तुम्हारी पूजा करने वाले को धन और संतान का सुख मिलेगा।