मुंबई की प्रसिद्ध कालवा देवी सिद्धपीठ

कालवा देवी के नाम से यह सुप्रसिद्ध मंदिर जिला मुख्यालय से पश्चिम दिशा में २ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कालवा देवी का यह मंदिर पूर्व में मुंबई के आजाद मैदान में स्थापित था। आज से लगभग ३०० वर्ष पूर्व रघुनाथ कृष्ण जोशी ने जहां पर माता की स्थापना की थी। उनके देहांत के उपांत २२५ वर्ष पूर्व अंगे्रज शासकों ने उनको वहां से स्थानांतरित कर कालवा में स्थापित किया। यह मंदिर मुख्यत: कालिका देवी का है जो धीरे-धीरे कालवा देवी के नाम से प्रसिद्ध हो गया। आज इस मंदिर की देखभाल जोशी घराने की सातवीं पीढ़ी कर रही थी। महाकाली की मूर्ति स्वयंभू एवं जाग्रत है। बाद में इनके बगल में महालक्ष्मी एवं सरस्वती देवी की स्थापना की गई। अपनी शक्ति एवं प्रभाव के कारण इस मंदिर की ख्याति दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।



मंदिर की साज-सज्जा
मंदिर के गर्भगृह में माताजी का दिव्य स्वरूप स्थापित है। गर्भगृह में ६ फुट ऊंचे चांदी के सिंहासन पर तीन देवियों के साथ माता की प्रतिमा अति सुंदर एवं दिव्य स्वरूप में विराजमान है। सिंहासन के मध्य भाग में श्री माता कालवा देवी, दाएं श्री लक्ष्मी जी तथा बाएं श्री सरस्वती जी की प्रतिमा २ फुट ऊंची है। देवियों के मस्तक पर मणि मुकुट शोभित है। लाल वस्त्र, सोने के आभूषण, कान में सुवर्ण कुंडल, नाक में सुवर्ण नथनी तथा फूलों के हार से माता शोभायमान हैं, जिनका दर्शन करने से मन में अति शांति प्राप्त होती है। गर्भगृह का द्वार चांदी का है। इस माता के दर्शन परमपूज्य श्री गगनगिरी महाराज बिंगुली, श्री राहुल महाराज इंदौर के, श्री नाना महाराज एवं बहुत से महात्मा एवं धर्म पंडितों ने किया है। भक्तगणों को माता के दर्श के लिए सुलभता प्राप्त हो, इसलिए इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया जाने वाला है। मंदिर का शिखर ७ फुट ऊंचा गुंबद आकार में है, जिस पर लाल ध्वज फहरा रहा है। मंदिर के परिसर में अन्य कई देवी-देवताओं के चित्र दीवार पर टंगे हैं। माता का मुख पूर्व दिशा की ओर है। 
मंदिर में संपन्न होने वाले उत्सव
कालवा देवी में नवरात्रि उत्सव पर परंपरागत धार्मिक रिवाज से पूजा की जाती है एवं चढ़ावा चढ़ाने वाली सुहागिनों की हमेशा भीड़ लगी रहती है। माताजी कुछ समाजपंथों की कुल देवी होने की वजह से बहुत से भक्तगण माताजी से मन्नत मांगने आते हैं। दूसरे काली के मंदिरों में मांस का भोग चलता है, किंतु इस देवी को मांस का भोग नहीं चलता। नवमी की यहां कोहला काटा जाता है।
मंदिर का व्यवस्थापन
मंदिर प्रात: 6 बजे खुलता है। प्रात: 6.30 बजे मंदिर आरती, शाम को 7.30 बजे संध्या आरती, रात्रि ९ बजे शयन आरती होती है। इसके उपरांत 9 बजकर 10 मिनट पर मंदिर के कपाट बंद हो जाते हैं। पुजारियों की संख्या 3 है, कर्मचारी 4 हैं। फूल, प्रसाद एवं नारियल की दुकानें ४ हैं। मंदिर का क्षेत्रफल लगभग ४० डिसमिल में ह। सामान्य दिनों में प्रतिदिन लगभग ५००-७००, मंगलवार एवं शुक्रवार को २,००० के आसपास प्रतिदिन, चैत्र नवरात्र में ९ दिन मेला लगता है, जिसमें भक्तों की संख्या २५ हजार के आसपास पहुंच जाती है। दिसंबर एवं जनवरी में यहां कृष्णपक्ष की अमावस्या में बड़ी शोभायात्रा का आयोजन होता है, जिसमें लगभग १० लाख भक्त दर्शन करते हैं। संपूर्ण वर्ष में औसतन ४०-५० लाख भक्त दर्शन करते हैं।