मप्र में फ्लॉप हो रही केन्द्र की आयुष्मान योजना

केन्द्र की आयुष्मान भारत योजना को मप्र में लागू किए 10 महीने हो चुके हैं, लेकिन प्रदेश में 86 निजी अस्पताल ही इससे नहीं जुड़ सके हैं। इससे इतर, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, झारखंड में मप्र की तुलना में कई गुना निजी अस्पताल इस योजना के तहत मरीजों का इलाज कर रहे हैं।
केंद्र सरकार की 6 0 और प्रदेश सरकार की 40 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ यह योजना पिछले साल सितंबर में लागू की गई थी। इसके बाद दूसरी सरकारी स्वास्थ्य सहायता योजनाएं बंद कर दी गई हैं। इस योजना में गरीब मरीजों का पांच लाख रुपए तक का इलाज नि:शुल्क करने का प्रावधान है। इसमें विभिन्न बीमारियों के इलाज की जो दरें तय की हैं, उन्हें कम बताकर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन और अन्य चिकित्सा संगठन इसका विरोध कर रहे हैं। डॉक्टरों का कहना है कि इस पैकेज में मरीजों का इलाज करना मुश्किल है। इसी कारण मप्र में सरकार अस्पतालों ने इस भी योजना से जुडऩे में रुचि नहीं दिखाई है। इस योजना में 1350 तरह के प्रोसिजर में से 6 50 के इलाज का जिम्मा सरकारी मेडिकल कॉलेज को दिया है। अन्य 700 तरह के प्रोसिजर निजी अस्पताल में करवा सकते हैं।


केवल 0.4 प्रतिशत मरीजों का इलाज
स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, प्रदेश में एक करोड़ 40 लाख परिवार आयुष्मान योजना के लाभार्थी हैं। इनमें से 0.4 प्रतिशत मरीजों के ही इलाज के बिल भुगतान के लिए दिल्ली के नेशनल हेल्थ अकाउंट (एनएचए) को भेजे गए हैं। इनमें 78 प्रतिशत क्लेम सरकारी अस्पतालों के हैं, जबकि 28 प्रतिशत निजी अस्पतालों के। अधिकारियों के मुताबिक 25 करोड़ रुपए के बिल पास हुए हैं। लगभग 40 करोड़ के बिल पेंडिंग हैं। एक तो पैकेज कम है और उस पर भुगतान की धीमी गति के कारण भी अस्पताल इसमें रुचि नहीं ले रहे हैं। किसी निजी अस्पताल को चार- पांच महीने तक पैसा नहीं मिलेगा तो उसका चलना मुश्किल हो जाएगा।
सरकारी को छूट, निजी से मांगा सर्टिफिकेट
मप्र में इस योजना के तहत जुडऩे वाले निजी अस्पतालों के लिए एनएबीएच से सर्टिफिकेट लेना अनिवार्य है। हालांकि अभी दो साल की छूट दी है। वहीं, सरकारी अस्पतालों को इस दायरे से बाहर रखा है। इस सर्टिफिकेटको अस्पतालों में सेवाओं की गुणवत्ता मापने का पैमाना माना जाता है। यह लंबी और खर्चीली प्रक्रिया है। इसलिए छोटे अस्पताल या नर्सिंग होम का इसके लिए तैयार होना मुश्किल है। 
मप्र में 100 निजी अस्पताल भी नहीं जुड़ पाए
प्रदेश में इक्का-दुक्का सुपर स्पेशिएलिटी अस्पताल ही इस योजना से जुड़े हैं। दिल की बीमारी के इलाज के लिए दो ही अस्पताल अनुबंधित हैं, जिनमें इंदौर का अरबिंदो अस्पताल शामिल है। यहां मरीज ज्यादा होने पर ऑपरेशन के लिए वेटिंग दी जा रही है। इसके अलावा जितने अस्पताल अधिकृत है, उनमें भी ज्यादातर अस्पताल आंखों की बीमारियों से संबंधित ही हैं। एक मरीज के दिल के ऑपरेशन के बाद किसी मरीज को कम से कम चार से पांच दिनों तक आईसीयू में रखना पड़ता है। इसलिए हफ्तेभर में चार ऑपरेशन ही हो पाते हैं। वेटिंग लिस्ट की बात करें तो यहां करीब 100 मरीज अब भी वेटिंग में हैं।